Thursday, February 27, 2014

सर्वे भवन्ति सुखिन:




अब्भी जबलपुर पहुंचे। प्लेटफ़ार्म पर आदेश लटका है- गर्व करो कि आप संस्कारधानी में हैं। आदेश पालन करके बाहर निकले। सूरज भाई के बाहर ही छत पर बैठे निगरानी सरीखी कर रहे थे। लपककर मिले। देखते हैं सडके धुला दी हैं। बताया तीन दिन से पानी से धुला रहे हैं सड़कें। हमने सकुचाकर कहा इत्ता भी भाव देना ठीक नहीं है भाई जी !

सूरज भाई मुस्कराये फ़िर हंसने लगे! बोले अरे यार ये भगवान शंकर के सम्मान में हो रहा है सब! आज उनका जन्मदिन है न! इसलिये तीन दिन से साफ़-सफ़ाई चल रही है। माहौल को वातानुकूलित बनाने के लिये गर्मी भी कुछ कम गयी है।

देख रहे हैं सूरज भाई जरा कमजोर दिख रहे हैं। स्लिम-ट्रिम टाइप। शायद डाइटिंग पर हैं। दुबले हो रहे हैं ताकि चन्द्रमा सरीखे दिखने लगें। जब जरूरत हो तब शिव जी के मस्तक पर चन्द्रमा की जगह विराज सकें। थोड़ी देर चन्द्रमा का काम संभाल लेंगे तो उसको भी आराम मिल जायेगा। सूरज और चांद में ये सब चलता रहता है। एक-दूसरे का काम निपटाते रहते हैं। जबरदस्त सहयोग का भाव। कवि रमेश यादव ने लिखा भी है:

रवि की संध्या में चिता जली,
बेटा अम्बर का चला गया।
चिंता थी वंश चलाने की ,
इकलौता वंशज चला गया।
अम्बर ने वंश चलाने को ,
चुपचाप गोद ले लिया लिया चांद।

ये पीला वासन्तिया चांद।

राजा का जन्म हुआ था
उसकी माता ने चांद कहा,
एक भिगमंगे की मां ने भी,
अपने बेटे को चांद कहा।
दुनिया भर की माताओं से,
आशीषें लेकर जिया चांद।

ये पीला वासन्तिया चांद।

हमारे देखते-देखते किरणें , रश्मियां सब खिलखिलाती हुयी वहीं आ गयीं। एक किरण ने उलाहना देते हुये कहा -"आप कहां चले गये थे इत्ते दिन। दादा अकेले बोर हो रहे थे इत्ते दिन यहां। "

हमने बताया कि सूरज दादा से हमारी तो रोज मुलाकात होती थी कानपुर में।

लेकिन दादा ने तो बताया नहीं मुझे मुलाकात के बारे में। दादा! आप गन्दे हो कहकर वह मुंह फ़ुलाकर अपनी सहेलियों के साथ घास की पत्तियों के पास खेलने चली गयी।

देखा तो वह घास की पत्ती पर फ़िसलपट्टी की तरह फ़िसल रही थी। घास की पत्ती पर फ़िसलते हुये किरण जब नीचे उतरती है तो पत्ती मारे खुशी के चमकने लगती है। लगता है उसके गुदगुदी सरीखी हो रही है पूरे बदन में और वह लहालोट हो रही है खिलखिलाते हुये। देखा-देखी बाकी सब किरणें भी घास की पत्तियों की फ़िसलपट्टियां पर धमाचौकड़ी करने लगीं। पेड़ों पौधों पर बैठे पक्षी चहचहाते हुये वाह-वाह कर रहे हैं। अंग्रेजी जानने वाले पक्षी ’वन्स मोर’,’वन्स मोर’ कह रहे हैं। एक ने तो चिल्ला के ’वाऊ’ भी कह दिया।

सूरज भाई हमारे साथ चाय की चुस्की लेते हुये यह सब कौतुक देख रहे हैं। आज वे श्लोक भी पढ रहे हैं:

सर्वे भवन्ति सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्ति मा कस्चिद दु:ख भाग भवेत।

अपन आमीन कहते हुये स्टेटस अपडेट कर रहे हैं।

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Tuesday, February 25, 2014

कभी तो हंस लिया करो पाजी


कल सूरज भाई से मुलाक़ात नहीं हुयी . आज ज़रा जल्दी ही आ गए. अपन भी चाय बना के बैठे थे. सूरज भाई चाय पीते हुए साथ में टहलने लगे. पास के मंदिर से कीर्तन की आवाज आ रही है. भजन गठबंधन सरकार के दलों की तरह अलग-अलग कामनाएं कर रहे हैं. ताल-मेल के अभाव में उनकी मंशा साफ़ नजर नहीं आ रही है. लेकिन ये पक्का है वे भजन हैं भजन के अलावा और कुछ नहीं.

सडक पर कुछ बच्चियाँ साइकिल पर स्कूल जा रही हैं. सफ़ेद सलवार और नीले स्वेटर में चमकती हुयी. सफ़ेद दुपट्टा उनके गले पर V का आकार बना रहे हैं. बच्चियों के विजय ध्वज की तरह.

सड़क पर एक सफ़ेद पक्षी हवा में टहल सा रहा है. एयर ग्लाइडिंग टाइप. हवा में लहराते हुए मस्त कलाबाजी सा करता. सूरज भाई उसकी पीठ सहला रहे हैं . पक्षी की पीठ चमक रही है -रिन की चमकार की तरह. सूरज भाई का स्पर्श पाकर पक्षी और भी इस्टाइल से उड़ने लगा . इसके बाद पास के पेड़ पर जाकर बैठ गया.

सामने एक ट्रक जा रहा है. ट्रक पर केले लादे हैं . ट्रक सड़क पर इस तरह जा रहा है जैसा की राग दरबारी (http://ragdarbaari.blogspot.in/ ) में श्रीलाल शुक्ल जी बताये थे -

" वहीं एक ट्रक खड़ा था। उसे देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों से बलात्कार करने के लिये हुआ है। जैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थे। पुलिसवाले उसे एक ऒर से देखकर कह सकते थे कि वह सड़क के बीच में खड़ा है, दूसरी ऒर से देखकर ड्राइवर कह सकता था कि वह सड़क के किनारे पर है। चालू फ़ैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाजा खोलकर डैने की तरह फैला दिया था। इससे ट्रक की खूबसूरती बढ़ गयी थी; साथ ही यह ख़तरा मिट गया था कि उसके वहां होते हुये कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती है। "

इस वाले ट्रक पर जो लिखा था वह आप भी देखिये और अमल में लाइए. आज ही नहीं हमेशा :

"कभी तो हंस लिया करो पाजी "

यहाँ 'पाजी' में श्लेष अलंकार की छटा दर्शनीय हैं .'पाजी' की एक मतलब पंजाबी वाले भाई साहब है. दूसरा मतलब 'पाजी' मतलब बदमाश है. मतलब जो हंसेगा नहीं वह 'पाजी' कहा जाएगा.

सूरज पाजी इसे देखते हुए पहले मुस्कराए और फिर हंसने लगे. उनको हंसते देख समूची दुनिया मुस्कराने लगी . आप भी मुस्कराइए न.

फ़ोटो: कल सूरज भाई से मुलाक़ात नहीं हुयी . आज ज़रा जल्दी ही आ गए. अपन भी चाय बना के बैठे थे. सूरज भाई चाय पीते हुए साथ में टहलने लगे. पास के मंदिर से कीर्तन की आवाज आ रही है. भजन गठबंधन सरकार के दलों की तरह अलग-अलग कामनाएं कर रहे हैं. ताल-मेल के अभाव में उनकी मंशा साफ़ नजर नहीं आ रही है. लेकिन ये पक्का है वे भजन हैं भजन के अलावा और कुछ नहीं.

सडक पर कुछ बच्चियाँ साइकिल पर स्कूल जा रही हैं. सफ़ेद सलवार और नीले स्वेटर में चमकती हुयी. सफ़ेद दुपट्टा उनके गले पर V का आकार बना रहे हैं. बच्चियों के विजय ध्वज की तरह.

सड़क पर एक सफ़ेद पक्षी हवा में टहल सा रहा है. एयर ग्लाइडिंग टाइप. हवा में लहराते हुए मस्त कलाबाजी सा करता. सूरज भाई उसकी पीठ सहला रहे हैं . पक्षी की पीठ चमक रही है  -रिन की चमकार की तरह. सूरज भाई का स्पर्श पाकर पक्षी और भी इस्टाइल से उड़ने लगा . इसके बाद पास के पेड़ पर जाकर बैठ गया.

सामने एक ट्रक जा रहा है. ट्रक पर केले लादे हैं . ट्रक सड़क पर इस तरह जा रहा है जैसा की राग दरबारी (http://ragdarbaari.blogspot.in  ) में श्रीलाल शुक्ल जी बताये थे -

" वहीं एक  ट्रक खड़ा था। उसे देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों से बलात्कार करने के लिये हुआ है। जैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थे। पुलिसवाले उसे एक ऒर से देखकर कह सकते थे कि वह सड़क के बीच में खड़ा है, दूसरी ऒर से देखकर ड्राइवर कह सकता था कि वह सड़क के किनारे पर है। चालू फ़ैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाजा खोलकर डैने की तरह फैला दिया था। इससे ट्रक की खूबसूरती बढ़ गयी थी; साथ ही यह ख़तरा मिट गया था कि उसके वहां होते हुये कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती है। "

इस वाले ट्रक पर जो लिखा था वह आप भी देखिये और अमल में लाइए. आज ही नहीं हमेशा :

"कभी तो हंस लिया करो पाजी "

यहाँ 'पाजी'  में श्लेष अलंकार की छटा दर्शनीय हैं .'पाजी'  की एक मतलब पंजाबी वाले भाई साहब है. दूसरा मतलब 'पाजी'  मतलब बदमाश है. मतलब जो हंसेगा नहीं वह 'पाजी' कहा जाएगा. 

सूरज पाजी इसे देखते हुए पहले मुस्कराए और फिर हंसने लगे. उनको हंसते देख समूची दुनिया मुस्कराने लगी . आप भी मुस्कराइए न. :)

Sunday, February 23, 2014

दुनिया की सब माँ ये एक सरीखी होती हैं


आज इतवार के चलते अपन अलसाए से लेते रहे. कई बार उठने की सोचे पर मामला टालते रहे जैसे सरकारे जरूरी बिल भर कोशिश टरकाती है. आखिर में रजाई, गठबन्धन-सरकार से समर्थन की तरह घसीट ली गयी तो बिस्तरे पर आलस का इस्तीफ़ा पटक कर बाहर निकल आये.

बाहर #सूरज भाई मुंह फुलाए मुस्तैद दिखे.गुड मार्निंग का जबाब तक न दिए. लगता है हमारे देरी से उठने पर खफा हैं. थोड़ी देर बाद पसीजे. हौले से मुस्काए और सुबह के किस्से दिखाने लगे.

आज सुबह #सूरज भाई के आते ही उनको फ़ूल,पौधे, पत्ती,पेड़, लता ने घेर लिया और कल की बरसात की शिकायत करने लगे. एक पेड़ ने जोर से हिलते हुए कहा -"कल तो बादल ने हम लोगों के साथ जो हरकत की वैसी तो चौराहे के पुलिस वाले तक ठेले, रेहड़ी ,खोमचे वालों से नहीं करते. बिना बताये सबको भिगा दिया निगोड़े ने. बदतमीज को जरा भी अक्ल नहीं. खुद तो आया ही साथ में अपने ओले दोस्त को भी ले आया नामुराद. देखिये टहनिया अब तक ठिठुर रही हैं मारे सर्दी के."

#सूरज भाई पेड़ की शिकायत चुपचाप सुनते रहे. पेड़ को उजाले और ऊष्मा के साथ सहलाते रहे. पेड़ थोडा सामान्य हुआ. सूरज की गर्मी पाकर टहनियां चैतन्य हुईं. पेड़ की पत्तियाँ चहकते हुए हिलने-डुलने लगीं.

उधर बगीचे में एक कली मुंह फुलाए बैठी थी. सूरज ने उसको प्यार से दुलराया तो वह गुस्साकर बोली -"हम आपसे गुस्सा हैं दादा . बात मत करिए. कल मैं अपनी सहेली तितली के साथ खेल रही तो बादल अंकल ने हम दोनों को भिगो दिया. आप सब देख रहे थे लेकिन आपने कुछ किया नहीं. देखिये मेरी सहेली के पंख भीग गए . बेचारी उड़ नही पा रही है. आप बहुत गंदे हो. "

#सूरज भाई ने सकपकाने की अदा दिखाते हुए कान पकडकर कली से सारी बोला और तितली को सहलाया . तितली कली के साथ आइस-पाइस खेलने लगी. सूरज भाई मुस्कराते हुए सारी कायनात को दुलराने लगे. पीछे से कली और तितली दोनों ने चिल्लाते हुए उनको 'लव यूं दादा' बोला तो वे और खिल गए. कली की तरफ मुस्कराते हुए देखा तो कली ने मुंह बनाते हुए उनको चिढ़ा दिया. #सूरज भाई भी मुंह बिराते हुए उसको चिढाने लगे. कली की तरफ देखते हुए बोले - शैतान बच्ची! कली भी फौरन बोली - गंदे दादा!

यह सब देखकर पूरी कायनात चहकने, मुस्कराने , खिलखिलाने लगी.

अब तक श्रीमती जी चाय ले आयीं. #सूरज भाई बोले - ये तीसरी किसके लिए?

अरे भाई साहब मैं भूल गयी . ये बच्चे के लिए ले आई. मुझे याद ही नहीं रहा कि वो तो कल छुट्टी के बाद वापस चला गया. श्रीमती जी मुस्कराते हुए बोली.

दुनिया की सब माँ ये एक सरीकी होती हैं. कहते हुए #सूरज भाई तीसरी चाय पीने लगे और बोले -समझ लीजिये ये चाय आपका बच्चा पी रहा है.

अरे भाई साहब ! आप भी क्या बात करते हैं. रुकिए मैं दुबारा बना के लाती हूँ. ये ठंडी हो गयी होगी. नाश्ता भी करके जाइयेगा.

#सूरज भाई मुस्करा रहे हैं. हम भी साथ में लग लिए.आप क्या सोच रहे हैं ? आप भी मुस्कराइए न !

Saturday, February 22, 2014

आत्मनस्तु वै कामाय सर्वं प्रियं भवति

आज ‪#‎सूरज‬ भाई ज़रा आराम से आये . कहीं व्यस्त हो गए होंगे. मिले तो सड़क पर पानी बरस रहा था. पानी की बूंदे सड़क पर गिरती हुयी ऐसी दिख रही थीं जैसे सूरज भाई सड़क की कड़ाही में बतासे तल रहे हों. बतासों के घान के घान निकाल के उतारते जा रहे हैं सूरज भाई. थोड़ी-थोड़ी देर में पानी मिलाते जा रहे हैं सड़क की कड़ाही में ताकि बतासे तलने में आसानी रहे. पानी की बूंदे सूरज की किरणों से दिल्लगी करती जा रही हैं. खेल-खेल में दोनों मिलकर खिलखिलाती जा रही हैं . उससे कहीं -कहीं इन्द्रधनुष बन रहे हैं. सूरज भाई यह सब देख-देख कर प्रफुल्ल्तित हो रहे हैं.
साथ-साथ ठहलते हुए सूरज भाई नाले के पास खड़े होकर बतियाने लगे. चाय की दूकान पर दो कड़क चाय का आर्डर देकर वे नाले से गुजरते पानी की धार का फेसियल सरीखा करने लगे. नाले की गन्दगी मटमैला हुआ पानी सूरज के स्पर्श से चमकने लगता. सूरज भाई डबल चमकने लगते.
चाय की चुस्की लेते हुए हमने उनसे पूछा -सूरज भाई आप दुनिया के लिए इतना सब कुछ करते हो इससे तुम्हे क्या मिलता है? सूरज भाई बोले -अरे यार तुम भी मौज लेते हो. मिलता-विलता क्या है. दुनिया में जो कोई भी कुछ करता है सब अपनी खुशी के लिए करता है. कहा भी है - "आत्मनस्तु वै कामाय सर्वं प्रियं भवति"
देखते-देखते सूरज भाई दुनिया चमकाने निकल लिए. हम इधर निकल आये हैं. स्टेटस सटा रहे हैं.