अब्भी
जबलपुर पहुंचे। प्लेटफ़ार्म पर आदेश लटका है- गर्व करो कि आप संस्कारधानी
में हैं। आदेश पालन करके बाहर निकले। सूरज भाई के बाहर ही छत पर बैठे
निगरानी सरीखी कर रहे थे। लपककर मिले। देखते हैं सडके धुला दी हैं। बताया
तीन दिन से पानी से धुला रहे हैं सड़कें। हमने सकुचाकर कहा इत्ता भी भाव
देना ठीक नहीं है भाई जी !
सूरज भाई मुस्कराये फ़िर हंसने लगे! बोले अरे यार ये भगवान शंकर के सम्मान में हो रहा है सब! आज उनका जन्मदिन है न! इसलिये तीन दिन से साफ़-सफ़ाई चल रही है। माहौल को वातानुकूलित बनाने के लिये गर्मी भी कुछ कम गयी है।
देख रहे हैं सूरज भाई जरा कमजोर दिख रहे हैं। स्लिम-ट्रिम टाइप। शायद डाइटिंग पर हैं। दुबले हो रहे हैं ताकि चन्द्रमा सरीखे दिखने लगें। जब जरूरत हो तब शिव जी के मस्तक पर चन्द्रमा की जगह विराज सकें। थोड़ी देर चन्द्रमा का काम संभाल लेंगे तो उसको भी आराम मिल जायेगा। सूरज और चांद में ये सब चलता रहता है। एक-दूसरे का काम निपटाते रहते हैं। जबरदस्त सहयोग का भाव। कवि रमेश यादव ने लिखा भी है:
रवि की संध्या में चिता जली,
बेटा अम्बर का चला गया।
चिंता थी वंश चलाने की ,
इकलौता वंशज चला गया।
अम्बर ने वंश चलाने को ,
चुपचाप गोद ले लिया लिया चांद।
ये पीला वासन्तिया चांद।
राजा का जन्म हुआ था
उसकी माता ने चांद कहा,
एक भिगमंगे की मां ने भी,
अपने बेटे को चांद कहा।
दुनिया भर की माताओं से,
आशीषें लेकर जिया चांद।
ये पीला वासन्तिया चांद।
हमारे देखते-देखते किरणें , रश्मियां सब खिलखिलाती हुयी वहीं आ गयीं। एक किरण ने उलाहना देते हुये कहा -"आप कहां चले गये थे इत्ते दिन। दादा अकेले बोर हो रहे थे इत्ते दिन यहां। "
हमने बताया कि सूरज दादा से हमारी तो रोज मुलाकात होती थी कानपुर में।
लेकिन दादा ने तो बताया नहीं मुझे मुलाकात के बारे में। दादा! आप गन्दे हो कहकर वह मुंह फ़ुलाकर अपनी सहेलियों के साथ घास की पत्तियों के पास खेलने चली गयी।
देखा तो वह घास की पत्ती पर फ़िसलपट्टी की तरह फ़िसल रही थी। घास की पत्ती पर फ़िसलते हुये किरण जब नीचे उतरती है तो पत्ती मारे खुशी के चमकने लगती है। लगता है उसके गुदगुदी सरीखी हो रही है पूरे बदन में और वह लहालोट हो रही है खिलखिलाते हुये। देखा-देखी बाकी सब किरणें भी घास की पत्तियों की फ़िसलपट्टियां पर धमाचौकड़ी करने लगीं। पेड़ों पौधों पर बैठे पक्षी चहचहाते हुये वाह-वाह कर रहे हैं। अंग्रेजी जानने वाले पक्षी ’वन्स मोर’,’वन्स मोर’ कह रहे हैं। एक ने तो चिल्ला के ’वाऊ’ भी कह दिया।
सूरज भाई हमारे साथ चाय की चुस्की लेते हुये यह सब कौतुक देख रहे हैं। आज वे श्लोक भी पढ रहे हैं:
सर्वे भवन्ति सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्ति मा कस्चिद दु:ख भाग भवेत।
अपन आमीन कहते हुये स्टेटस अपडेट कर रहे हैं।
सूरज भाई मुस्कराये फ़िर हंसने लगे! बोले अरे यार ये भगवान शंकर के सम्मान में हो रहा है सब! आज उनका जन्मदिन है न! इसलिये तीन दिन से साफ़-सफ़ाई चल रही है। माहौल को वातानुकूलित बनाने के लिये गर्मी भी कुछ कम गयी है।
देख रहे हैं सूरज भाई जरा कमजोर दिख रहे हैं। स्लिम-ट्रिम टाइप। शायद डाइटिंग पर हैं। दुबले हो रहे हैं ताकि चन्द्रमा सरीखे दिखने लगें। जब जरूरत हो तब शिव जी के मस्तक पर चन्द्रमा की जगह विराज सकें। थोड़ी देर चन्द्रमा का काम संभाल लेंगे तो उसको भी आराम मिल जायेगा। सूरज और चांद में ये सब चलता रहता है। एक-दूसरे का काम निपटाते रहते हैं। जबरदस्त सहयोग का भाव। कवि रमेश यादव ने लिखा भी है:
रवि की संध्या में चिता जली,
बेटा अम्बर का चला गया।
चिंता थी वंश चलाने की ,
इकलौता वंशज चला गया।
अम्बर ने वंश चलाने को ,
चुपचाप गोद ले लिया लिया चांद।
ये पीला वासन्तिया चांद।
राजा का जन्म हुआ था
उसकी माता ने चांद कहा,
एक भिगमंगे की मां ने भी,
अपने बेटे को चांद कहा।
दुनिया भर की माताओं से,
आशीषें लेकर जिया चांद।
ये पीला वासन्तिया चांद।
हमारे देखते-देखते किरणें , रश्मियां सब खिलखिलाती हुयी वहीं आ गयीं। एक किरण ने उलाहना देते हुये कहा -"आप कहां चले गये थे इत्ते दिन। दादा अकेले बोर हो रहे थे इत्ते दिन यहां। "
हमने बताया कि सूरज दादा से हमारी तो रोज मुलाकात होती थी कानपुर में।
लेकिन दादा ने तो बताया नहीं मुझे मुलाकात के बारे में। दादा! आप गन्दे हो कहकर वह मुंह फ़ुलाकर अपनी सहेलियों के साथ घास की पत्तियों के पास खेलने चली गयी।
देखा तो वह घास की पत्ती पर फ़िसलपट्टी की तरह फ़िसल रही थी। घास की पत्ती पर फ़िसलते हुये किरण जब नीचे उतरती है तो पत्ती मारे खुशी के चमकने लगती है। लगता है उसके गुदगुदी सरीखी हो रही है पूरे बदन में और वह लहालोट हो रही है खिलखिलाते हुये। देखा-देखी बाकी सब किरणें भी घास की पत्तियों की फ़िसलपट्टियां पर धमाचौकड़ी करने लगीं। पेड़ों पौधों पर बैठे पक्षी चहचहाते हुये वाह-वाह कर रहे हैं। अंग्रेजी जानने वाले पक्षी ’वन्स मोर’,’वन्स मोर’ कह रहे हैं। एक ने तो चिल्ला के ’वाऊ’ भी कह दिया।
सूरज भाई हमारे साथ चाय की चुस्की लेते हुये यह सब कौतुक देख रहे हैं। आज वे श्लोक भी पढ रहे हैं:
सर्वे भवन्ति सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्ति मा कस्चिद दु:ख भाग भवेत।
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- Subhash Chander, Skdubey Dubey, Rakesh Pandey और 35 अन्य को यह पसंद है.
- Virendra Bhatnagar महाशिवराञि का पर्व भोलेनाथ के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है ऐसा आज के दैनिक जागरण में पढ़ा, हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार शिव अजन्मे हैं ।
- अर्चना चावजी ह्म्म्म! यहाँ भी धुलवा दिये हैं ..... रात को टार्च से देखते भी रहे कि कहीं सूखा तो नहीं रह गया ....
- Lata R. Ojha Ek anokha hi anubhav hua aaj aapki sooraj dada mulaaqaat ka byora padh ke. Shaant...sukoon bharaa..adbhut.