है सरकार रजाई की अब
कोहरे से सब पटा पड़ा है
पड़ रही सर्दी बड़ी विकट,
पेड़ खड़े स्टेचू जैसे
पत्ती गई फूल से चिपट।
चाय चल रही घर दफ्तर में
मुंह से निकल रही है भाप,
बर्फ गिरी हिल स्टेशन पर
घर में दुबक के बैठो आप।
है सरकार रजाई की अब
सब उसकी शरण में आये,
अच्छे दिन का किस्सा छोडो
कोई अब गर्म पिलाये चाय।
-कट्टा कानपुरी
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