प्रभु |
'हमारे परदादा और उनके साथ के लोग 1904 में हमीरपुर से जबलपुर आये थे। पैदल । उस समय ट्रेन तो चलती नहीं थी। छह महीना लगा था। हमारा बाप यहीं मैदान में पैदा हुआ था। उसके हफ्ते भर बाद उसकी माँ मर गई। कोई महामारी फैली थी उन दिनों। यहीं मैदान में दफना दिया गया था उसको।
साथ ने बकरियां भी लाये थे परदादा। मटके में बकरी का दूध इकट्ठा करके यहीं जंगल में लकड़ियाँ जलाकर गरम करके बाप को रुई के फाहे से पिलाते बाप को। जी गया बाप। 93 साल की उमर तक पेंशन खाकर मरा।
घर के सब भाई नौकरी पर हैं। बहने भी। पत्नी कई साल पहले गुजर गयीं। कंचनपुर में रहते हैं अभी। चार बच्चे थे। दो मर गए। दो बचे हैं। प्राइवेट काम करते हैं।
'बीबी मरी तो फिर दुबारा शादी क्यों नहीं की। कर लेते अपनी जैसी स्थिति की औरत से। दोनों को साथी मिल जाता'- हमने कहा।
अरे मन था। लेकिन लौंडे छोटे थे। घर वालों ने सपोर्ट नहीं किया नहीं तो कर लेते। अब लौंडे बड़े हो गए हैं। साले, सुनते नहीं। सब अपने में मस्त हैं।
जब कोई जुगाड़ नहीं हुआ तो क्या करते? शहर में इधर-उधर चले जाते थे। काम चला लेते थे।
'तुम भी अपने बाप की नहीं सुनते होंगे जब बड़े हो गए हो गए होंगे।'- हमने कहा।
अरे नहीं। हम लोग बहुत इज्जत करते थे बाप की। आज के लौंडे सुनते नहीं। -'प्रभु उवाच।
प्रभु |
फैक्ट्री के और किस्से सुनाते हुए बोले-' पहले बहुत रौनक थी साहब यहाँ। 14-15 हजार आदमी काम करते थे। एकदम चांदनी चौक जैसा माहौल। शक्तिमान, जोंगा, निशान धकाधक बनते थे।'
इस बीच किसी से पता चला कि हम फैक्ट्री में साहब हैं तो बोले -'एक चाय और ले आएं साहब?'
हमने मना किया। बोले -'हम फैक्ट्री में साहब लोगों के लिए चाय बनाने का काम करते थे।'
फैक्ट्री से जुड़े पुराने लोगों के किस्से बिना कोतवाल सिंह की कहानी सुनाये पूरे नहीँ होते। कोतवाल साहब का किस्सा सुनाया प्रभु ने- ' कोतवाल साहब सिम्पल आदमी थे। इंग्लैण्ड रिटर्न थे लेकिन लगते नहीं थे जीएम। एक दिन कंजड़ बस्ती में चले गए। कच्ची पीते रहे। नशे में धुत। पुलिस वालों ने पकड़कर अंदर कर दिया। जब पता चला जीआईएफ के जीएम हैं तो जीप से उनके बंगले छुड़वाया। टेरर था उनका। चार-चार कट्टा बीड़ी दिन में फूंक जाते थे।'
फिर से अपने हमारे बारे में पूछा। आप यूपीएससी क्रास करके आये हैं। हमारे साहब एम एस सी गोल्ड मेडलिस्ट थे। ये रैले साइकिल अब भी आ रही है। अभी आपकी कितनी सर्विस बकाया है? हमने बताया -'आठ साल।' तो फिर बोले-'एक चाय और ले आयें साहब!'
अपने बारे में बताया। हम रोज पचास किलोमीटर साईकल चलाते हैं। हमुमान मन्दिर में अगरबत्ती खोंसते हैं। पाट बाबा में जलाते हैं। रास्ते में जितने भी मन्दिर मिलते हैं सबमें अगरबत्ती खोंस देते हैं। 3 घण्टा चलती है। साईकल में धरे झोले से अगरबत्ती निकाल कर दिखाई भी प्रभु ने। बड़ी सी।
चाय पीकर लौट आये। प्रभु भी चले गए। फैक्ट्री आज ओवर टाइम पर चल रही है। लोग आने लगे थे। भीख मांगने वाली बुढ़िया एक बच्ची के साथ लपकती हुई गेट नम्बर 3 की तरफ चली जा रही थी। बच्ची एक लकड़ी पकड़े हुए थी। उसका दूसरा सिरा बुढ़िया के हाथ में था। बच्ची शायद नातिन है बुढ़िया की। वह भी देख/सीख रही होगी कि भीख कैसे मांगती हैं दादी।
मिसिर जी जगदम्बिका प्रसाद के साथ जाते दिखे। हमने चाय के लिए ऑफर दिया तो बोले-'अभी दवाई खाना है जाकर। फिर कुछ और खाएंगे।'
सूरज भाई पूरे जलवे के साथ खिले हुए हैं आसमान में। सुबह हो गयी।
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