घर से बाहर निकलते ही सूरज भाई ने ढेर सारी धूप चेहरे पर गुलाल की तरह फ़ेंक कर मारी। हम तो एकदम चौंधिया गये। दोस्ती का तकाजा। मुस्कराना पड़ा। सूरज भाई बदले और कस के मुस्कराये। उनके साथ किरणें भी मुस्कराने च खिलखिलाने लगीं। सुबह-सुबह हंसी-मुस्कान की ’सर्जिकल स्ट्राइक’ टाइप हो गयी।
आरमापुर बाजार के पास एक महिला साइकल पर सरपट चली जा रही थी। अचानक सड़क और सड़क के किनारे की पैदल रास्ते के जोड़ पर आने से साइकिल लड़खडाई। यह भी हो सकता है उसकी धोती फ़ंस जाने के कारण साइकिल का संतुलन गड़बड़ाया हो। साइकिल गिर गयी। साथ में महिला भी। लेकिन गिरते-गिरते महिला संभल गयी थी। डोलची लगी लेडी साइकिल संभालती महिला से बात की तो पता चला कि दादानगर में एक कारखाने में काम करती है। वहां चैनल बंधने का काम होता है। गिरने के कारण किसी किस्म का दैन्य भाव नहीं था उसकी आवाज में। सहज रूप से उठकर पैडलियाते हुये चल दी काम पर।
विजय नगर चौराहे पर रोज की तरह भीड़ थी। स्कूल बसें गुजरती हैं सुबह-सुबह वहां से। चौराहे को घूमकर पार करने के बजाय बायें से मुड़ने का चलन बढता जा रहा है इस चौराहे पर। ट्रैफ़िक वाले भी हाथ देते हैं -निकल लो। अक्सर हल्का जमावड़ा लग ही जाता है यहां। जिस तरफ़ से स्कूल बसें आती हैं उधर की तरफ़ ही महाकवि भूषण की मूर्ति का मुंह है। हो सकता है महाकवि भूषण का कविता पाठ रुकने के लिये बसें ठिठक जाती हों।
चौराहा पार करते हुये आगे टेम्पो, गाडियों की लाइन सौतन सी लगती है। आगे रुका हुआ टेम्पो रकीब सा लगता है। लेकिन वही टेम्पो जब किसी बड़ी गाड़ी को रोककर सरपट आगे निकलते हुये खुद समेत अपन के लिये भी खाली सड़क का जुगाड़ करता है तो छुटंके वाहन की बलैया लेने का मन करता है। जिस टेम्पो के कारण एक मिनट पहले लगता था कि यह मरवायेगा, पांच मिनट तक रुकवायेगा, वही जब फ़ुर्ती से फ़ुर्ती से निकलकर बायें से आती गड़ियों के आगे से निकलते हुये हमको भी निकाल लेता है तो लगता है कितना स्मार्ट है ये बुतरू वाहन।
कभी-कभी जाम से निकलने में या आगे बढने में कोई सामान्य ट्रैफ़िक नियम का उल्लंघन होता दीखता है। उस उल्लंघन से अगर अपनी गाड़ी रुकती है तो लोगों के नागरिक बोध पर कोफ़्त होती है। पर जब खुद दायें-बायें होकर आगे निकलते हैं तो वह खुद की स्मार्टनेस लगती है। एक आम मध्यमवर्गीय आदमी का सहज नागरिक बोध है यह।
कूड़े के ढेर पर सुअर नहीं दिखे। एक गाय अकेली कूड़े के ढेर पर मुंह मार रही थी। चारो तरफ़ वहां पालीथीन पसरी हुयी थी। कूड़े के ढेर से विदा होते-होते कुछ न कुछ पालथीन उदरस्थ करके निकलेगी यह गाय, यही सोचते हुये आगे बढ लिये।
पंकज बाजपेयी अपनी जगह मुस्तैद मिले। फ़िर कनाडा, जार्डन, हफ़ीज की चर्चा की। बच्चे पकड़े जाने की जानकारी दी। साथ में हिदायत भी कि किसी को गाड़ी में न बैठायें।
अफ़ीमकोठी चौराहे के आगे एक तिपहिया गाड़ी पर एक जोड़ा जाता दिखा। गाड़ी के हैंडल का एक हिस्सा पुरुष थामे हुये था, दूसरा हिस्सा महिला के हाथ में था।’साथी हाथ बढ़ाना’ के इस्तहार से इस जोड़े को काफ़ी देर तक फ़ालो करते हुये उनकी फ़ोटो लेने और बात करने की सोचते रहे। लेकिन झकरकटी पुल पर जाम की आशंका से रुके नहीं। आगे निकककर हुये शीशे से देखते रहे। देर होने का भी डर उचककर मुंडी पर सवार हो गया था।
लेकिन जैसे ही टाटमिल चौराहा पार किया वैसे ही फ़ोटो लेने का मन पक्का हो गया। आगे बढकर गाड़ी किनारे ठढिया दी और जोड़े का इंतजार करते हुये मोबाइल कैमरा तान दिया। फ़ोटो लेते देखकर वे खुद ठहर से गये। हमने मौके का फ़ायदा उठाते हुये उनके बारे में पूछ भी लिया।
पता चला जोड़े में पुरुष साथी को कुछ साल पहले पैरालिसिस का अटैक हुआ था। 7 एयरफ़ोर्स में काम करते हैं वो। क्लर्क के पद पर। खुद गाड़ी चला नहीं पाते तो उनकी पत्नी साथ में जाती हैं। करीब 15 किलोमीटर दूर है घर। एक-एक हैंडल दोनों लोग थामे रहते हैं। पत्नी दिन भर साथ रहती हैं। छुट्टी होने पर साथ लेकर वापस जाती हैं।
दो बच्चे हैं उनके। बच्ची मरियमपुर में पढती है। पढ़ने में बहुत अच्छी है। बेटा ग्रेजुयेशन में है। उसकी नौकरी लग जाये तो चिन्ता कम हो।
दोनों की हिम्मत की दाद देते हुये हम आगे बढ लिये। यह भी सोचते हुये कि सरकारी सेवा में हैं इसीलिये नौकरी जारी है। किसी निजी सेवा में होते तो अभी तक बाहर हो गये होते। निजी सेवायें कल्याणकारी नजरिये के हिसाब सरकारी सेवाओं बहुत-बहुत पीछे हैं।
अरे, देखते-देखते समय हो गया। निकलते हैं अब। आप भी मजे से रहिये।
No comments:
Post a Comment