खेती दुनिया का सबसे पुराना व्यवसाय है। व्यवसाय
बोले तो पेट पालने का तरीका। सबसे ज्यादा लोग खेती करके पेट पालते हैं। गरीब देशों
में 75 % तक लोग
खेती करते हैं। जितने ज्यादा किसान उतना गरीब देश। भारत एक कृषि प्रधान देश है। मतलब
गरीब देश है। गरीबी से छुटकारा पाना है तो किसानी छोड़नी होगी।
किसानों की संख्या कम करने के लिये तेजी से काम
हो रहा है। किसानों की संख्या कम करने के उपाय किये जा रहे हैं। उन पर गोली चलवाई
जा रही है। किसान भी आत्महत्या करते हुये इसमें सहयोग कर रहे हैं। लेकिन स्पीड कम
है इस उपाय में। वैसे भी हाय-हत्या से कोई मामला हल नहीं होता इसलिये दीगर उपाय भी
सोचे जा रहे हैं। ऐसे उपाय जिससे खेती दिन पर दिन मुश्किल होती जाये। किसान
झल्लाकर खेती छोड़कर दूसरा व्यवसाय थाम ले। शहर में मजदूरी करने लगे। कारखानों में
सस्ते में खटने लगे। बाजार को सस्ते मजदूर मिलेंगे। किसान अपनी ही जमीन पर बने
कारखानों में दिहाड़ी पर काम करेंगे। मालिक नौकर हो जायेगा। देश खुशहाल हो जायेगा।
खेती के लिये बीज न मिलना, सिचाई के लिये पानी न
मिलना, फ़सल पैदा होने के बाद उसका दाम न मिलना, इसके बाद जिन्दा रहने के लिये
अन्नदाता को अन्न न मिलना जैसे उपाय अमल में लाये जा रहे हैं। गांव के लोगों को
गंवार कहते हुये खेती छोड़ने के लिये उत्साहित किया जाता है। यह उपाय इतना कारगर है
गांव से आकर शहर में बसा बेटा शहर में अपने बाप को पहचानने से मना कर देता है।
खेती सबसे पुराना व्यवसाय है। धंधों में सबसे
बुजुर्ग। नये धंधों के सामने इस बुजुर्ग धंधे की कोई इज्जत नहीं है। मार्गदर्शक
धंधा हो गया है खेती। खेती से जुड़े लोग मौका मिलते ही इसको नमस्ते करते जा रहे
हैं।
खेती के हाल अब बेहाल हैं। गांवों पर पिक्चरें
नहीं बनती। हीरोइनें अब खेतों में काम नहीं करती। हीरो लोग खेत में गाना नहीं
गाते। गांवों में प्रेम करना मुश्किल काम हो गया। सारी प्रेम-मोहब्बत शहरों में
शिफ़्ट हो गयी है। इसलिये भी खेती में लोगों की रुचि कम हो गयी है।
जमीन पर होने वाली खेती से ध्यान हटाने के लिये दुनिया
भर में तमाम दूसरी तरह की खेतियों का चलन
भी शुरु किया गया है। आश्वासनों की खेती करने वाले लोग सरकारें बना रहे हैं। पैसे
की खेती कर रहे हैं। सपनों की खेती करने वाले फ़र्जी क्रांति करते हुये मालामाल हो
रहे हैं। नकल की खेती वाले जाहिल शिक्षा व्यवसाय पर कब्जा किये हैं। लहसुन, प्याज तक से परहेज करने वाले मीट की खेती
में छाये हुये हैं। इनामों की खेती वाले साहित्यिक हलकों के लंबरदार हैं। हथियारों
की खेती वाले लोग विश्व में शान्ति व्यवस्था का ठेका हथियाये हुये हैं। दुनिया भर
में कत्लेआम मचाते हुये शांति बहाली में जुटे हुये हैं।
कहने का मतलब कि दुनिया में असली खेती भाव गिर
रहे हैं। दूसरी वर्जुअल खेतियां लहलहा रही
है। छ्द्म का जमाना है। इसी से कमाना है। आप तो खुद सब समझते हैं। समझदार हैं।
समझदार को कुछ क्या बताना ?
कैसी बात कर रहे है, सरकार बिल्कुल तत्पर है किसानों की भलाई के लिए, अभी आत्महत्या रोकने के लिए किसान जीवन app लॉन्च होने वाला है, फिर हमारा अन्नदाता अपने जीवन से खिलवाड़ नही करेगा,
ReplyDeleteऔर खुशहाली मंत्रालय तो पहले से है, भूल गए जनाब, आपको कितनी खुशियाँ अलॉट हुई है RTI दाखिल कीजिये। और तो और सरकार सिंचाई app से सूखा और धुलाई app से आसामाजिक तत्वों को भी दूर कर देगी। फिर भी आप इसी तरह बात करते रहे तो जाल(internet) पर सेंसरशिप के बारे में सरकार कदम उठाएगी ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व बालश्रम निषेध दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteजमीनी खेती ही असली धंधा है
ReplyDeleteबाकी खेती धंधा है पर गंदा है
It is not always true the more farming more ppoverty . Take example of Ireland.
ReplyDeleteBefore Ireland became a member of the European Union the country was almost totally economically dependent on farming . It was then and now is prosperous country .