लड़के ने अभी परीक्षायें
दी हैं। रिजल्ट आने में समय है। लेकिन जिस तरह चुनाव में हर पार्टी अपने
बहुमत के प्रति आश्वस्त रहती है उसी तरह बालक को भी इत्मिनान है कि टॉप उसी
को करना है। इसी इत्मिनान के भरोसे होने वाले टॉपर ने एडवांस में प्रेस
कान्फ़्रेन्स का इंतजाम कर लिया है। बिना विलम्ब के आइये आपको टॉपर की प्रेस
कान्फ़्रेन्स में ले चलते हैं:
सवाल 1: आपको इम्तहान में
टॉप करने की प्रेरणा कहां से मिली?
जबाब: मैं बचपन से
ही टॉप करना चाहता था। हमेशा लगता है कि बस टॉप करना है। टॉप करना है। बाद में
लोगों से सुना भी कि किसी भी फ़ील्ड में रहो, बस टॉप पर रहो। टॉपर की बरक्कत अच्छी होती है। लोग
टॉपर को ही पूछते हैं। देखिये हर फ़ील्ड में यह हो रहा है। इसलिये हम टॉप करना
चाहते थे और किये भी। कह के किये कोई चोरी छिपे थोड़ी किये।
सवाल: आपने पहले से अपने
टॉप करने की घोषणा कैसे कर दी थी? आपको इतना आत्मविश्वास कैसे है अपने टॉप करने का?
जबाब: अगर आपको फ़िल्मों
में जरा सा भी रुचि है तो आप देखे भले न हों लेकिन ’गैंग ऑफ़ वासेपुर’ पिक्चर का नाम जरूर सुनें होंगे। उसमें हीरो कहता है - ’कह के लेंगे।’ लिया भी। तबसे हमने भी सोच लिया था कि
जब टॉप करेंगे तब कहकर करेंगे। इसीलिये हमने भी सोच लिया था कि जब करेंगे टॉप तब डंके की चोट पर करेंगे। चोरी छिपे
नहीं करेंगे। इसके लिये हमने गाना भी बनाया है- ’टॉप किया तो डरना क्या?’ सुनायेंगे कभी।
सवाल: टॉप करने के लिये
आपने तैयारी कैसे की? कितने
घंटे पढते थे आप?
जबाब: आप लोग पुराने
जमाने के लोगों की तरह टॉप करने को पढाई से जोड़ते हैं। टॉप करने के नये तरीकों के
बारे में आप लोगों को जानकारी ही नहीं है। आपको बताते हैं कि टॉप करने के
मोटा-मोटी दो तरीके हैं- एक पढकर टॉप करना दूसरा बिना पढे टॉप करना। पढकर
टॉप करने वाले टॉप करने के बाद बस टापते ही रह जाते हैं। ज्यादा आगे नहीं बढ
पाते हैं। जबकि बिना पढे टॉप करने वाले बहुत आगे जाते हैं। पढाकू टॉपर केवल किताब, कोचिंग, नोट्स,
कुंजी और भगवान की पूजा के भरोसे रहता है। उसका प्रयास एकल प्रयास
होता है। इसीलिये भी उसके टॉप करने की कोई गारन्टी नहीं होती। जबकि बिना पढे
टॉप करने वाले लोग सामूहिक प्रयासों से टॉप करते हैं। पेपर आउट करवाने, इम्तहान में नकल करवाना, कापी जांचने में सेटिंग,
रिजल्ट बनवाने में जुगाड सब जगह इंतजाम करना होता है।
सामूहिकता का अद्भुत सौंदर्य होता है बेपढे का टॉप करना। ’सबका साथ, सबका विकास’ का
उदात्त रूप होता है बिना पढे टॉप करना। इस तरीके में सबसे अच्छी बात है कि टॉप
करने के लिये पढना जरूरी नहीं होता। बिना किसी सदन का सदस्य बने मंत्री बनना जैसा ही समझिये है- बिना पढे टॉप करना।
सवाल: फ़िर भी कुछ तो आना
चाहिये जिसमें टॉप किया आपने।
जबाब: जैसे इलाके
के विकास के नाम पर चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि अपने विकास में उलझ जाने के
चक्कर में इलाके के विकास पर ध्यान नहीं दे पाते उसी तरह हम भी टॉप करने की योजना पर अमल में
ही इतना बुरी तरह अरझे रहे कि कुछ पढाई ही नहीं कर पाये। नेक्स्ट सवाल प्लीज।
सवाल: आपको अपने विषय तो
पता होंगे। साइंस में टॉप किये हैं कि आर्ट्स में? कुछ तो बताइये।
जबाब: विषय जानने के लिये
आपको हमारी मार्कशीट आने का इंतजार करना होगा। हमको शिक्षा व्यवस्था पर पूरा भरोसा
है। जिन विषयों में वह बतायेगा कि उसमें टॉप किये हैं हम मान लेंगे। उनका बयान हमारा बयान होगा।
अगला सवाल।
सवाल: बिना कुछ पढे-लिखे, बिना अपने विषय की जानकारी के टॉप
करने का हौसला आपको कैसे आया? आपको डर नहीं लगा कि पोल खुलने
पर पकड़े जायेंगे जैसे पुराने टॉपर पकड़े गये हैं?
जबाब: आपने एक पिक्चर
देखी होगी- ’गजनी’। उसमें हीरो आमिर खान थोड़ी-थोड़ी देर में पुराना सब कुछ भूल जाता है। गजनी
का आमिर खान हमारी प्रेरणा बना। हमारा ’गजनी अभ्यास’ इतना तगड़ा हो गया है कि अपना
नाम तक भूल जाते हैं। जितना बार लोग पूछते हैं, अलग नाम बताते हैं। कहने का मतलब कि हम गजनी घराने के टॉपर हैं।
सवाल: लेकिन टॉप करने के लिये आपने गजनी माडल का ही चुनाव क्यों किया?
जबाब: वो क्या है न कि ’गजनी माडल’ सेफ़ है। दुनिया में जित्ते भी धतकर्मी हैं, सब ”गजनी माडल’ अपनाते हैं। दंगा करवाकर भूल जाते हैं। घपले करके याद नहीं करते। वादे करके भूल जाते हैं। सपना दिखाकर गोल हो जाते हैं। हम भी उसी गजनी घराने के टॉपर हैं। जो पढे सब भूल गये। दुबारा याद ही नहीं आया। अब अगर गजनी की तर्ज पर कुछ याद नहीं आ रहा तो इसमें हमारा क्या दोष? हमारी न सही लेकिन एक हिट फ़िल्म की इज्जत तो करो। जो हमको पकड़ने आयेगा उससे कहेंगे - ’जाओ पहले गजनी पिक्चर देखकर आओ। पैसे न हों तो हमसे ले जाओ। पिक्चर देखने के बाद अपना आइडिया बताओ।’
सवाल: लेकिन टॉप करने के लिये आपने गजनी माडल का ही चुनाव क्यों किया?
जबाब: वो क्या है न कि ’गजनी माडल’ सेफ़ है। दुनिया में जित्ते भी धतकर्मी हैं, सब ”गजनी माडल’ अपनाते हैं। दंगा करवाकर भूल जाते हैं। घपले करके याद नहीं करते। वादे करके भूल जाते हैं। सपना दिखाकर गोल हो जाते हैं। हम भी उसी गजनी घराने के टॉपर हैं। जो पढे सब भूल गये। दुबारा याद ही नहीं आया। अब अगर गजनी की तर्ज पर कुछ याद नहीं आ रहा तो इसमें हमारा क्या दोष? हमारी न सही लेकिन एक हिट फ़िल्म की इज्जत तो करो। जो हमको पकड़ने आयेगा उससे कहेंगे - ’जाओ पहले गजनी पिक्चर देखकर आओ। पैसे न हों तो हमसे ले जाओ। पिक्चर देखने के बाद अपना आइडिया बताओ।’
सवाल: फ़िर भी अगर पुलिस
आपको पकड़ने पर आमादा ही हो गयी तो क्या करेंगे आप?
जबाब: हम फ़ौरन ’एंग्री एंग मैन’ हो जायेंगे। हल्ला मचायेंगे - ’हमको पकड़ने से पहले उस उस मास्टर को पकड़ के लाओ जिसने हमको नकल करवाया। उस स्कूल प्रबंधक को पकड़ के लाओ जिसने हमको टॉप करने के झांसे में फ़ंसाया। उस मंत्री को पकड़ के लाओ जिसने शिक्षा विभाग को गर्त में गिराया। पिछले टॉपर को पकड़कर लाओ। उसको पकड़कर लाओ जिसने हमें सिखाया कि टॉप पर रहे बिना जिन्दगी बेकार
है, शिक्षा व्यवस्था को गर्दनियाओ जिसने टॉपर करने को इतना
जरूरी बना दिया कि लडका लोग सब भूल जाता है।’............ इसके बाद जो करना होगा पुलिस करेगी। हम अकेले केतना देर चिल्ल्लायेंगे।
सवाल: पकड़े जाने के बाद फ़िर क्या करेंगे?
जबाब: करेंगे क्या? वही करेंगे जो बाकी जेल जाने वाले करते हैं। छूटकर आयेंगे तो सीधे पालिटिक्स में कूद जायेंगे। अपनी गिरफ़्तारी को विरोधियों की साजिश बतायेंगे। न्यायपालिका पर भरोसा जतायेंगे। अगला चुनाव लड़ जायेंगे। जीते तो मंत्री पद हथियायेंगे। टॉप पर जायेंगे।
सवाल: और अगर हार गये तो?
जबाब: हार गये तो जनता जनार्दन का निर्णय सर माथे पर धरकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिये जुट जायेंगे। स्कूल बनवायेंगे। प्रबंधक बन जायेंगे। जैसे हम टॉप किये वैसे लोगों को टॉप करना सिखायेंगे। गांव-जवार का नाम आगे बढायेंगे।
इंटरव्यू निपटने के बाद जब रिजल्ट आया तो बालक का नाम टॉपर की लिस्ट में नहीं था। पता चला परीक्षा में धांधली हो गयी। रिजल्ट में पैसा चल गया। एन टाइम पर मेरिट लिस्ट बदल गयी। जितने पैसे में बालक से सौदा तय हुआ था टॉप कराने का उससे ज्यादा देकर कोई दूसरा टॉप कर गया। बालक का नाम मेरिट लिस्ट में नीचे आ गया है। बालक दुखी है। शिक्षा व्यवस्था के माफ़ियाओं से भरोसा उठ गया। न्यायपालिका पर भरोसा करने का सपना टूट गया है।
हम बालक के दुख में दुखी हो गये। एक बार तो मन किया उसको नीरज की कविता सुना दें- ’कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता’। लेकिन फ़िर बालक के चेहरे पर पसरे आक्रोश को देखकर मन मार लिये।
यही सोचकर रह गये कि माफ़िया लोग तक अपनी बात से पलट जा रहे हैं। जिसको टॉप कराने की बात तय हुई थी उसको छोड़ किसी दूसरे को टॉप करा रहे हैं। समाज में मूल्यों का बहुत तेजी से क्षरण हो रहा है। देश बहुत तेजी से रसातल में जा रहा है।
सवाल: पकड़े जाने के बाद फ़िर क्या करेंगे?
जबाब: करेंगे क्या? वही करेंगे जो बाकी जेल जाने वाले करते हैं। छूटकर आयेंगे तो सीधे पालिटिक्स में कूद जायेंगे। अपनी गिरफ़्तारी को विरोधियों की साजिश बतायेंगे। न्यायपालिका पर भरोसा जतायेंगे। अगला चुनाव लड़ जायेंगे। जीते तो मंत्री पद हथियायेंगे। टॉप पर जायेंगे।
सवाल: और अगर हार गये तो?
जबाब: हार गये तो जनता जनार्दन का निर्णय सर माथे पर धरकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिये जुट जायेंगे। स्कूल बनवायेंगे। प्रबंधक बन जायेंगे। जैसे हम टॉप किये वैसे लोगों को टॉप करना सिखायेंगे। गांव-जवार का नाम आगे बढायेंगे।
इंटरव्यू निपटने के बाद जब रिजल्ट आया तो बालक का नाम टॉपर की लिस्ट में नहीं था। पता चला परीक्षा में धांधली हो गयी। रिजल्ट में पैसा चल गया। एन टाइम पर मेरिट लिस्ट बदल गयी। जितने पैसे में बालक से सौदा तय हुआ था टॉप कराने का उससे ज्यादा देकर कोई दूसरा टॉप कर गया। बालक का नाम मेरिट लिस्ट में नीचे आ गया है। बालक दुखी है। शिक्षा व्यवस्था के माफ़ियाओं से भरोसा उठ गया। न्यायपालिका पर भरोसा करने का सपना टूट गया है।
हम बालक के दुख में दुखी हो गये। एक बार तो मन किया उसको नीरज की कविता सुना दें- ’कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता’। लेकिन फ़िर बालक के चेहरे पर पसरे आक्रोश को देखकर मन मार लिये।
यही सोचकर रह गये कि माफ़िया लोग तक अपनी बात से पलट जा रहे हैं। जिसको टॉप कराने की बात तय हुई थी उसको छोड़ किसी दूसरे को टॉप करा रहे हैं। समाज में मूल्यों का बहुत तेजी से क्षरण हो रहा है। देश बहुत तेजी से रसातल में जा रहा है।
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