कल गंगा-दर्शन से लौटते हुये देर हो गयी थी। सरपट पैडलियाते हुये चले आ रहे थे। रास्ते में चाय की दुकान मिली। उसको छोड़कर आगे बढ गये। लेकिन फ़िर बतकही के आकर्षण ने पीछे खैंच लिया। हम साइकिल समेत एक चाय की दुकान के सामने खड़े हो गये।
चाय की दुकान एक टपरिया में थी। टेलीविजन चल रहा था। कोई फ़िल्म आ रही थी। लोग दिव्य निपटान मुद्रा में टीवी के सामने बैठे थे। पहले सोचा इत्ती सुबह-सुबह फ़िल्म देख रहे हैं यार ये लोग। लेकिन फ़िर सोचा अपने-अपने शौक हैं। मनोरंजन के लिये तमाम लोग नींद खुलते ही फ़ेसबुक-व्हाट्सएप पर हमला करते हैं। ये लोग इधर आ लगे। अलग-अलग वर्गों के अलग-अलग शौक। भारत वैसे भी विभिन्नता में एकता वाले देश के रूप में विख्यात है।
दुकान पर चाय रेडीमेड नहीं थी।मेरे सामने ही चढी थी। मल्लब पांच मिनट और देर। मन किया कि चला जाये। लेकिन फ़िर न्यूटन बाबा के जड़त्व के नियम की इज्जत करते हुये बैठ गये।
दुकान पर ही एक बुजुर्ग मिले। बतियाने लगे उनसे। एक प्लास्टिक की पांच लीटर वाली बाल्टी में कपड़े भरे बैठे थे। बात शुरु होते ही बनियाइन उठाकर पेट-प्रदर्शन करने लगे। योगाचार्य योग क्रिया के द्वारा पेट को पीठ से चपकाकर दिखाते हैं। बुजुर्गवार का पेट अपने-आप बिना किसी योग के ही पीठ से चिपका दिखा। बताने लगे - ’तबियत खराब है तीन-चार दिन से। कुछ भी खाते ही फ़ौरन उल्टी हो जाती है। कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था। आज यहां दवाई ली तो फ़ायदा हुआ।’
हमने पूछा - ’कौन दवाई से फ़ायदा हुआ?’
“ये वाली खाई है।“- वहीं जमीन पर पड़ा रैपर उठाकर दिखाया। हरे रैपर की दवा शायद ’अजूबी’ रही हो। कानपुर में अजूबी टिकिया काफ़ी चलती है। अजब शहर की अजूबी टिकिया।
घर-परिवार की बात चली तो बताया - ’पांच बच्चे हैं। दो बेटियों की शादी हो गयी। तीन लड़के अपना-अपना काम करते हैं।’
घरैतिन के बारे में पूछा तो बताया -’भाग गयी किसी के साथ। दिल्ली।“
हमने पूछा-“ ऐसे कैसे हुआ? कब चली गयी? क्या पटती नहीं थी?”
बोले- “दस-पन्द्रह साल हो गये। कोई दिल्ली का आदमी है। उसी के साथ चली गयी। रंडी है। हमने खुद देखा उसके साथ सोते हुये उसको। आती-जाती है। घर में बच्चों से मिलती है। चली जाती है। बहुत गड़बड़ औरत है। लड़की तक का सौदा करा दिया साठ हजार में। आप ही बताओ ऐसे के साथ कौन रह सकता है।“
हमने पूछा-“ जब घर में आती है। बच्चों से मिलती है तो तुमसे भी मुलाकात होती होगी ?”
बोले-“ नहीं। हमको सबने घर से भगा दिया है। मारपीट करते हैं हमारे साथ। इसलिये हम घर नहीं जाते।“
“कौन मार-पीट करता है- लड़के या कोई और?” -हमने पूछा।
“लड़के नहीं। साले और औरत मिलकर मारते हैं। इसीलिये भाग आये।“ -उन्होंने निस्संग भाग से बताया।
हमने पूछा-“ जब से तुम्हारी घर वाली तुमको छोड़कर गयी तबसे तुम किसी के साथ रहे क्या?”
बोले - “नहीं।“
अपनी औरत के बारे में बताते हुये निस्संग टाइप के भाव लगे बुजुर्ग के चेहरे पर। समाचारवाजक की निस्संगता की तरह बता रहे थे अपने बारे में।
“कहां रहते हो?” पूछने पर बताया- “रात को स्टेशन पर सो जाते हैं। दो-तीन दिन से तबियत खराब थी। सुकून नहीं आ रहा था। इधर आये आज तो अच्छा लग रहा है। तबियत भी कुछ ठीक लग रही है।“
“काम क्या करते हो?” पूछने पर बताया -“ मांगते हैं।“
मांगते हैं मतलब भीख मांगकर गुजारा करते हैं। अभी तो स्टेशन पर गुजारा कर लेते हैं। सुना है कानपुर स्टेशन स्मार्ट स्टेशन बनने वाला है। निजी हाथों में जाने वाला है।जब कभी ऐसा होगा तो अकबर अली जैसे लोग जो स्टेशन पर रात गुजार लेते हैं उनको भी भगाया जायेगा। क्या तब ये लोग स्टेशन के बाहर धरना देंगे और मांग करेंगे वैकल्पिक व्यवस्था होने तक यहीं स्टेशन पर रहने-सोने की अनुमति दी जाये।
वहीं बैठे-बैठे फ़ोटो खैंचकर दिखाई तो मुस्कराये और खिल उठे। चाय पिलाने की कोशिश की तो मना कर दिये- “उल्टी हो जायेगी।“
चाय मजेदार नहीं लगी। आधी छोड़कर चल दिये। पैसे देने के बाद तीन रुपये बचे वो हमने अकबर अली को दे दिये। चले आये।
हां एक बात तो बताना भूल ही गये। अपने बारे में बताते हुये अपनी अम्मा के बारे में भी बताये अकबर अली। बांगरमऊ, उन्नाव में रहती हैं उनकी अम्मा। उनके पास चले जाते हैं। वही हैं जो उनको प्यार से रखती हैं।
अक़बर अली ने अपना पहलू बताया। उनके घरवालों से बात होती तो वे शायद इनके किस्से सुनाते, लक्छन गिनाते।
कल अकबर अली से हुई बतकही के बारे में आज लिखते हुये यही सोच रहा था कि जब जीवन इतना जटिल हो जाये कि घर-परिवार के लोग दुत्कार दें। बीबी किसी और के साथ चली जाये। बेटे साथ न दें फ़िर भी आदमी मांगते-खाते किसी तरह जी रहा है। यह जीवन जीने की इच्छा है। जिजीविषा है। वहीं बिहार का एक आई.ए.एस. तमाम सुख-सुविधाओं के बीच जीने की इच्छा से रहित हो जाता है। ट्रेन के सामने आ जाता है। तमाम लिखाई-पढाई के बावजूद भूल जाता है- “जीवन अपने आप में अमूल्य है।“
आज के जटिल होते समय में लोग अकेले होते जा रहे हैं। लोग दूसरे की व्यक्तिगत जिंदगी में दखल देते हुये हिचकते हैं। किसी के पर्सनल मामले में दखल देना अच्छी बात नहीं है। यह बात बहाने के तौर पर लोग इस्तेमाल करते हैं। लोग खुद इत्ते तनाव में हैं कि दूसरे के फ़टे में अपनी टांग फ़ंसाते हुये डरते हैं।
आत्महत्या करने वाले ज्यादातर वे लोग होते हैं जो अपने व्यक्तिगत जीवन के लक्ष्य पाने में असफ़ल रहते हैं। इम्तहान में फ़ेल हुये, प्रेम विफ़ल हो गया, नौकरी न मिली। अवसाद को पचा न पाये। जीवन को समाप्त कर लिया।
सामूहिक लक्ष्य में असफ़लता के चलते लोगों को आत्महत्या करने के किस्से नहीं सुनने को मिलते हैं। यह नहीं सुनाई देता कि क्रांति असफ़ल हो गयी तो नेता ने आत्महत्या कर ली, मार्च विफ़ल हो गया तो लीडर ने अपने को गोली मार ली, शिक्षा का उद्देश्य पूरा न हुआ तो बच्चों की शिक्षा के लिये दिन रात कोशिश करने वाला बेचैन शिक्षाशास्त्री लटक लिया।
सामूहिकता का एहसास लोगों में आस्था और विश्वास पैदा करता है। अकेलापन अवसाद का कारक बनता है। अकेलेपन के ऊपर से असफ़लता बोले तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा!
'आदि विद्रोही' मेरी सबसे पसंदीदा किताबों में है। हावर्ट् फ़्रास्ट की इस किताब का बेहद सुन्दर अनुवाद अमृतराय ने किया है। इसमें रोम के पहले गुलाम विद्रोह की कहानी है। स्पार्टाकस गुलामों का नायक है। उसकी प्रेमिका वारीनिया जब उससे कहती है कि तुम्हारे मरने के बाद मैं भी मर जाउंगी। तब वह कहता है-
“जीवन अपने आप में अमूल्य है। मुझे वचन दो कि मेरे न रहने के बाद तुम आत्महत्या नहीं करोगी।“
वारीनिया जीवित रहने का वचन देती है। स्पार्टाकस मारा जाता है। वारीनिया जीवित रहती है। अपना घर बसाती है। कई बच्चों को जन्म देती है। उनके नाम भी स्पार्टाकस रखती है। मानवता की मुक्ति की कहानी चलती रहती है।
हम सबमें स्पार्टाकस के कुछ न कुछ अंश होते हैं लेकिन हम अलग-अलग समय में बेहद अकेले होते जाते हैं। ऐसे ही किसी अकेलेपन के क्षण में लोग अवसाद को सहन न कर पाने के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। जीवन अपने आप में अमूल्य है बिसरा देते हैं। असफ़लता और अवसाद के उन क्षणों में यह बात एकदम नहीं याद आती -'सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है।'
हम सबमें स्पार्टाकस के कुछ न कुछ अंश होते हैं लेकिन हम अलग-अलग समय में बेहद अकेले होते जाते हैं। ऐसे ही किसी अकेलेपन के क्षण में लोग अवसाद को सहन न कर पाने के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। जीवन अपने आप में अमूल्य है बिसरा देते हैं। असफ़लता और अवसाद के उन क्षणों में यह बात एकदम नहीं याद आती -'सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है।'
अब चलते हैं। आप मजे से रहिये। खूब खुश रहिये। जीवन वाकई बहुत खूबसूरत है। आप उससे भी खूबसूरत। अपने को खूब प्यार करिये। किटकिटऊवा प्यार। बिन्दास रहिये। अच्छा लगेगा। मजा आयेगा।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212288209053840
No comments:
Post a Comment