Monday, August 14, 2017

दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश

कल नये वाले पुल से लौट रहे थे। लोग पुल की रेलिंग पर खड़े नीचे देख रहे थे। हम भी देखने लगे। अपने यहां मामला देखा-देखी वाला ही होता है न! देखा-देखी लोग मार पीट करने लगते हैं, दंगा मचा देते हैं, जान दे देते हैं, ले लेते हैं। मोहब्बत अलबत्ता सोच समझकर करते हैं।
देखा कि नीचे, गंगा के किनारे, एक पेड़ के नीचे जमीन पर मोमिया की चटाई पर बैठे तमाम बच्चे पढ रहे हैं। कुछ नौजवान बच्चे उनको पढा रहे हैं। हमको गाड़ी घुमाकर पुल से नीचे उतरे और गंगा किनारे घटनास्थल पर पहुंच गये।
करीब तीस-चालीस बच्चे गंगा की रेती पर बैठे पढ रहे थे। नौजवान बच्चे उनको अलग-अलग समूहों में पढा रहे थे। एक लकड़ी के फ़ट्टे पर हिन्दी वर्णमाला का चार्ट टंगा था। बच्चे सीख रहे थे- अ से अनार, आ से आम। नौजवान बच्चे बदल-बदलकर याद करा रहे थे। जोर से बोलने को कह रहे थे। एक चक्कर के बाद पढने वाले बच्चों में से किसी एक को बुलाकर बोलकर सिखाने के लिये उठाया जाता। बच्चा बच्चों को साथियों को सिखाता। बच्चे दोहराते।
बगल में एक छोटे बोर्ड पर दूसरे समूह के बच्चे गिनती, पहाड़ा, जोड़-घटाना सीख रहे थे। गंगा की तरफ़ मुंह किये हुये। सिखाने वाले बच्चों में लड़के-लड़कियां दोनों थीं। बच्चों को प्यार से, दुलार से, फ़टकार से, फ़ुसलाकर सिखाने की कोशिश कर रहे थे बच्चे।
हम भी खड़े हो गये माजरा देखने के लिये। हिन्दी वर्णमाला सिखाने के बाद चार्ट बदलकर अंग्रेजी वाला टांग दिया गया। ए फ़ार एप्प्ल, बी फ़ार बैट होने लगा। इसके पहले पहाड़े का भी एक राउन्ड हो गया। सिखाने वाले बच्चे बारी-बारी से बदलते हुये सिखाते गये।
इस खुले स्कूल के किनारे खड़े हुये हम बारी-बारी से स्कूल के बारे में जानकारी लेते गये। पता चला कि आसपास के कुछ नौजवान बच्चे पिछले कुछ इतवार की सुबह आकर यहां बच्चों को इकट्ठा करके प्रारम्भिक शिक्षा देते हैं। बच्चों को कुछ टॉफ़ी, चॉकलेट, कापी-पेंसिल भी देते हैं। सब अपने पास से। चंदा करके।
पढाने वाले बच्चों में से अधिकतर खुद अभी पढाई कर रहे हैं। कुछ कम्पटीशन की तैयारी कर रहे हैं। कोचिंग में पढाते हैं। कुछ लोग नौकरी भी करते हैं। अपनी मर्जा से आकर यहां पढाते हैं। आसपास के बच्चों को इकट्ठा करके। बीस के करीब लोग जुड़े हैं इस मिशन में। ग्रुप का नाम है - 'जयहोफ़्रेंडस ग्रुप।'
जय हो फ़्रेंडस ग्रुप आमिर खान किसी फ़िल्म से प्रेरित है। संयोग कि ग्रुप के मुख्य सदस्य का नाम जयसिंह है। जयसिंह खुद कोचिंग चलाते हैं। शायद कम्पटीशन की तैयारी भी कर रहे हैं।
कल जो लोग पढा रहे थे उनमें से एक किसी स्कूल में संगीत की अध्यापिका हैं। दूसरी लेखपाल की नौकरी करती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में। सप्ताहांत में घर आती हैं। बच्चों को पढाती हैं।
आसपास के लोग इन बच्चों को पढते देख रहे थे। बातचीत करते हुये बोले-’ अच्छा काम कर रहे हैं।’
कोई बोला-’आगे एन.जी.ओ. बनायेंगे। सरकार से पैसा मिलेगा। सब अपना फ़ायदा सोचते हैं। लेकिन अच्छा काम कर रहे हैं।’
एक शरीफ़ अहमद खड़े थे वहीं। बोले -’हम नहीं पढ पाये तो कम से कम हमारा बच्चा ही पढ जाये।’
हमने पूछा - ’काहे नहीं पढ पाये तुम?’
बोले-’ बचपन में हम स्कूल गये तो एक दिन मास्टर साहब ने बहुत मारा। हम पाटी फ़ेंक के घर आ गये फ़िर नहीं गये स्कूल।’
30-35 साल के शरीफ़ अहमद के चार बच्चे हैं। हमने कहा - ’आपरेशन काहे नहीं करवाते भाई! ’
बोले-’पैसा ही नहीं है।’
हमने बताया - ’अरे मुफ़्त में होता है आपरेशन करवा लेव।’
बोले- ’हमका पता ही नहीं है। अबकी करवा लेब।’
पता नहीं करवायेंगे कि नहीं लेकिन पूछने पर लपककर बताया कि वो हमार लरिका पढि रहा है।
एक बुजुर्ग महिला पेड़ के नीचे बच्चों को पढते देख रही थी। साथ में उनकी बिटिया। दोनो अनपढ। हमने लड़की से कहा - ’तुम काहे नहीं पढती। कित्ती उमर है?’
उमर के नाम पर बोली, ’पता नहीं’। लेकिन पढने के नाम पर चुप हो गयी।’
हमने पढाने वाली बच्ची में से एक को बुलाकर बिटिया को भी पढाने के लिये कहा। बिटिया अपनी चुन्नी संभालती हुई गणित सीखने वाले बच्चों के साथ जाकर बैठ गई।
सीख रहे बच्चे एकदम भारत देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। विभिन्नता में एकता की तरह। कोई ध्यान से पढ रहा था कोई आपस में बतिया रहा था। कोई बाल खुजा रहा था कोई टॉफ़ी चूस रहा था। सबके साथ बोलते हुये जोर से बोलने लगते। एक बच्चा अपने गोद में एक बहुत छोटे , कुछ महीने के बच्चे को गोद में लिये अ से अनार , ए फ़ार एप्पल बोल रहा था, चार तियां बारह सीख रहा था।
इस खुले स्कूल को देखकर मन खुश हो गया। पढाने वाले बच्चों से बात करते हुये चाय पीने के बाद जित्ते पैसे जेब में बचे थे (कुल जमा 30 रुपये बचे थे ) उत्ते बच्चों को देकर वापस आ गये। आगे भी सहयोग और जुड़ाव का वादा साथ में।
’जयहोफ़्रेंडस ग्रुप’ की तरह अपने देश में अनगिनत लोग अपने स्तर पर समाज की भलाई के लिये छोटे-मोटे प्रयास कर रहे हैं। www.ngorahi.org भी ऐसा ही एक ग्रुप है।
दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कितना सफ़ल होते हैं इससे ज्यादा मायने यह रखता है कि कम से कम कोशिश तो की। हमको भी इनके सहयोग की कोशिश करनी चाहिये। जित्ती हो सके उत्ती। हम तो करेंगे ही। आप भी करोगे मुझे पक्का भरोसा है।
इसी खुशनुमा संकल्प के साथ आज की सुबह शुरु होती है। खुशनुमा सुबह ! मुबारक हो आपको। सबको।

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