कल सुबह फिर गंगा किनारे जाना हुआ। जयफ्रेंडशिप ग्रुप के लोग बच्चों को पढ़ाने में लगे थे। अलग-अलग समूह में बच्चों को अक्षर ज्ञान, गिनती और साधारण जोड़-घटाना सिखाया जा रहा था। कुल मिलाकर 5 मिली-जुली कक्षाएं चल रहीं थीं। तीन नीचे, दो ऊपर चबूतरे पर।
कुछ-कुछ देर में सिखाने वाले बदलते जा रहे थे। आसपास के लोग कौतूहल से तमाशे की तरह देख रहे थे इसे। कुछ लोग वीडियो बना रहे थे। कुछ लोग इसे भला काम बताते हुए अपनी तरफ से राय भी देते जा रहे थे।
पढ़ाने वाले के हैं। रायचन्द लोग भी शुक्लागंज के हैं। बड़े-बुजुर्ग भी हैं। इसलिए हर सलाह को अदब से सुनना उनकी मजबूरी भी है।
एक ने बताया -'बाबा जी बहुत खुश हैं। कह रहे थे कि अगर कुछ मदद चाहिए तो देंगे। यहां पुल के नीचे टट्टर से घिराव करवा देंगे। ट्रस्ट मदद करेगा।'
मतलब हठयोगी बाबा जी लोगों से मिले पैसे से बच्चों के प्रयास को अपने ट्रस्ट में मिला लेंगे।
मदद की बात और भी लोगों ने की- 'जो मदद चाहिए -बताना 24 घण्टे में हो जाएगा काम।'
एक इस काम को पीपीपी मतलब पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की तरह चलाने का सुझाव उछाल दिया। बच्चों को स्कूलों में भर्ती कराने का सुझाव। मतलब जो करें वो सब यही लोग करें। अगला केवल सुझाव देगा।
एक ने भौकाल दिखाते हुए सब बच्चों के लिए मिड डे मील की व्यवस्था की बात कही। मिड डे मील मतलब बच्चों के लिए बिस्कुट। कहकर थोड़ी देर में टहल लिया।
यहां पढ़ने आने वाले ज्यादातर बच्चे स्कूलों में जाते हैं। गंगापार गोलाघाट ज्यादा बच्चे जाते हैं। शुक्लागंज वाले स्कूल में ठीक से पढाई नहीं होती। मास्टर बच्चों को मारते, डांटते हैं।
यह सुनते ही एक ने कहा-'अरे ऐसे कैसे कर सकता है। बताना बीएसए से कह देंगे। टाइट कर देगा।' गोया बीएसए के टाइट करते ही स्कूल सुधर जाएगा।
जयफ्रेंडशिप ग्रुप की शुरआत गंगा किनारे सफाई से हुई । बरसात में पानी बढ़ गया तो सफाई का काम रुक गया। ग्रुप के लोगों ने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।
सबसे कठिन काम बच्चों को पढ़ने के लिए इकट्ठा करने का है। कुछ बच्चे तो आ जाते हैं, बाकी को उनके घर से लाना होता है।
क्लास के बाहर कई लोग अपने बच्चों को पढ़ता देख रहे हैं। उनमें से ज्यादातर खुद अनपढ़ हैं। हम उनको भी पढ़ने को कहते हैं तो वे हंसने लगते हैं।
क्लास के बाहर खड़े कई लोग वहां पढ़ाते लोगों को व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं। वे बताते हैं ये स्कूल में बच्चों की डांस टीचर हैं।
पढ़ाने का सबका अंदाज अलग-अलग है। रचना सुबह ही आई हैं। बच्चों को ककहरा सिखाते हुये 'ज्ञ' तक पहुंचती हैं। बच्चो को बताती हैं 'ज्ञ से ज्ञानी, खत्म कहानी।' इसके बाद टीचर बदल जाता है। दूसरी बच्ची पढ़ाना शुरू करती है।
गंगा जी किनारे तक आई हुई हैं। अपने किनारे चलते खुले स्कूल को देख रही हैं। मजे से बह रही हैं। एक परिवार मछली को आटा खिला रहा है। लोग नाक बन्दकरके नदी में डुबकी लगा रहे हैं। एक बूढ़ा माता नदी में पैठी फूल सजाती हुई शायद महादेव की पूजा में जुटी हैं।
चाय वाले भाई हमको देखते ही खुश हो गए थे। लपककर चाय पिलाई। बताया -'हम इंतजार कर रहे थे।'
पता चला कि वे कुछ महीने पहले तक एक हलवाई की दुकान पर काम करते थे। अब इधर तख्त डाल लिया। दुकान लगा ली। क्वालिटी से समझौता नहीं करते। दूर-दूर से लोग आते हैं चाय पीने।
चाय की बात करते ही हमारी भी चाय आ गई। हम पीते हैं। आप भी आ जाइये। पिलाते हैं।
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