Saturday, September 02, 2017

आलोक पुराणिक से बातचीत




आलोक पुराणिक हमारे समय के महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं। हम तो उनको ’व्यंग्य के अखाड़े का सबसे तगड़ा पहलवान’ मानते हैं। लेकिन खलीफा लोगों द्वारा खुद को व्यंग्य का विनम्र सेवक बताने वाले अंदाज में दस किताबों का यह लेखक खुद को 'व्यंग्य का विद्यार्थी' ही बताता है।
सबसे तगड़ा पहलवान वाली बात पर तो आलोक पुराणिक ने एतराज नहीं किया। लेकिन जब हमने उनकों ’व्यंग्य बाबा’ की उपाधि देनी चाहिये तो उन्होंने तत्काल एतराज करते हुये खुद को ’व्यंग्य बाबा’ मानने से मना कर दिया। आज जब हरियाणा में बाबा राम रहीम की जो दशा हुई उससे लगा कि ये व्यंग्यकार अपने समय से कितने आगे देखता है।
आलोक पुराणिक सितम्बरी लाल हैं। 30 सितम्बर को 51 को हो लेंगे आलोक जी। हम उनके और उनके लेखन के काफ़ी लम्बे समय से प्रशंसक हैं। व्यंग्य में कई प्रयोग किये हैं आलोक पुराणिक ने। करते रहते हैं। हाल में ’फ़र्स्ट पोस्ट’ के एकलाइना आने लगे हैं। उनके पाठकों की संख्या काफ़ी है। मेरी समझ में आज के समय में सबसे अधिक पढे जाने वाले व्यंग्यकार हैं आलोक पुराणिक।
आलोक पुराणिक की सबसे अच्छी खूबियों में यह है कि वे बेफ़ालतू की बातों में समय बरबाद करने की बजाय लिखने-पढने के काम में लगे रहते हैं। दूसरों को भी सलाह देते रहते हैं ऐसी ही। उनका कहना है आगे बढने के लिये या तो ’वर्क चाहिये या फ़िर तगड़ा नेटवर्क’। आलोक पुराणिक नेटवर्क की बजाय वर्क पर भरोसा करते हैं।
ये तो हुई भूमिका टाइप। अब काम की बात यह कि आलोक पुराणिक के 51 वें जन्ममाह के अवसर पर मेरा विचार उनसे रोज विभिन्न मुद्दों पर सवाल करने का है। शुरुआत आज से कर रहे हैं। आप भी अगर कोई सवाल करना चाहें तो मुझे इनबॉक्स में भेजें या फ़िर ईमेल करें anupkidak@gmail.com पर। सवाल-जबाब के अलावा आलोक पुराणिक पर सितम्बर माह में नियमित लेखन की कोशिश भी जारी रहेगी। इनमें आलोक जी के ’व्यंग्य पंच’ होंगे, उनके बारे में लेख होंगे और उनकी खिंचाई भी होगी तारीफ़ के साथ। इसके अलावा इरादा तो इस सबको इकट्ठा करके किताब बनाने का भी है। कितना हो पाता है यह समय बतायेगा।
आज आलोक पुराणिक से जो सवाल हुये वो किताबों के बारे में। आप भी सवालों को मुलाहिजा फ़र्मायें।

1. सवाल: पढ़ने की शुरुआत कैसे हुई? सबसे पहले पढ़ी यादगार किताब/किताबें कौन हैं?
जवाब: मेरी नानी के यहां बहुत तरह की किताबें-पत्रिकाएं आती थीं। बहुत छोटेपन में यानी छह-सात साल की उम्र में ही उनके यहां चंदामामा, कल्याण, दिनमान, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्रिकाएं देखीं। आठ साल की उम्र में आगरा में एक स्वर्गीय हेमचंद्र जैन के परिवार से संपर्क में आया। हेमचंद्रजी लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन में काम करते थे, उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी जितनी दिव्य थी, वो मैंने दिल्ली में बड़े बड़े प्रोफेसरों और पत्रकारों के यहां भी नहीं देखी। उस दौर की हर पत्रिका, हर कामिक्स उनके यहां आती थी। वहां बहुत पढ़ाई की। नाच्यौ बहुत गोपाल-अमृतलाल नागर की बहुत कम उम्र में पंद्रह-सोलह में पढ़ ली थी। कमाल था यह उपन्यास। बीकाम में आते ही राग दरबारी-श्रीलाल शुक्ल पढ़ा। इसने बाकायदा जादू किया। पर तब मैं व्यंग्य लेखन से बहुत दूर था। व्यंग्य लेखन करुंगा कभी, तब तो यह भी ना सोचा था। आर्थिक पत्रकार, कामर्स से जुड़े काम-धंधे करुंगा, तब यही सोचता था।
2. सवाल: अभी तक कि पढ़ी बेहतरीन किताबें जो एकदम याद आयें वो कौन हैं।
जवाब : राग दरबारी-श्रीलाल शुक्ल, हम ना मरब-ज्ञान चतुर्वेदी, छावा-शिवाजी सावंत,वे दिन-निर्मल वर्मा, दीवाने गालिब, दीवाने मीर,नासिर काजमी और जौन एलिया-बिलकुल अलग ढंग के शायर हैं इनका काम। बैंकर टू दि पुअर-डा मुहम्मद युनुस।
3. सवाल: कौन सी किताबें न पढ़ पाए अब तक जिनको पढ़ने का मन है।
जवाब: ओशो का कहा सारा अब किताबों की शक्ल में है, वह पढ़ना है। राम मनोहर लोहिया की लिखी-बोली एक एक लाइन पढ़नी है। कार्ल मार्क्स का लिखा कहा एक एक शब्द पढ़ना है। सुशोभित शक्तावत की लिखा सब कुछ पढ़ना है। अमेरिकन निवेशक वारेन बूफे की आत्मकथा पढ़नी है। वैल्युएशन पर डाक्टर दामोदरन का लिखा सब कुछ पढ़ना है। बहुत पढ़ना है, पढ़ना ही है।
4. सवाल: हालिया पढ़ी गई और पढ़ी जा रही किताबों के नाम और खासियत।
जवाब: राममनोहर लोहिया के लोकसभा में दिये गये भाषण पढ़ रहा हूं, दूसरा खंड। कमाल बात करते थे लोहियाजी, मुल्क की वैसी गहरी समझ कम नेताओं में रही है। खुलकर पूरी दबंगई से वो लाल बहादुर शास्त्री को डपटते थे।वैसी हिम्मत और मेधा कम नेताओँ को नसीब हुई।
5. सवाल: अपनी पहली किताब के अलावा कौन किताब सबसे ज्यादा पसन्द है।
जवाब-कारपोरेट पंचतंत्र, नोट कीजिये मेरे जाने के बाद मेरी एकमात्र किताब यही होगी जो मेरे ना रहने के बहुत बाद तक रहेगी।
6. सवाल: किताबें पढने के लिए चुनते कैसे हैं?
जवाब-कामर्स का प्राध्यापक होने के नाते, आर्थिक पत्रकार होने के नाते, व्यंग्यकार होने के नाते, पढ़ने का दायरा बहुत व्यापक है। इतिहास से लेकर शेयर बाजार तक सब कुछ आ जाता है। कोई भी किताब जो कुछ नया कहती दिखती है, खरीद लेता हूं।
7. सवाल: पढ़ते कब, कैसे हैं। पढ़ने की स्पीड क्या है?
जवाब: जहां जब वक्त मिल जाये बैग में किताबें होती हैं हमेशा। स्पीड अच्छी खासी है। साल में मोटे तौर पर कम से कम आठ-दस किताबें तो कम से कम पढ़ ही लेता हूं, अलग अलग विषयों की।

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