हिन्दुस्तान में ‘बापू’ घर-परिवार के बड़े-बुजुर्गों को कहा जाता है। लेकिन गांधी जी को ’बापू’ की उपाधि आउट ऑफ़ टर्न प्रोमोशन की तरह 49 साल की उमर में ही मिल गयी जब उन्होंने चम्पारन सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
किसी को बापू कहने मतलब यही है कि अब उसको चुपचाप सब काम-धाम छोड़ छाड़ देना चाहिये। केवल जो मिले उसी में गुजारा करना चाहिये। इज्जत से रहना सीख लेना चाहिये। बेइज्जती भी होय तो उसको इज्जत समझकर ग्रहण करना चाहिये। भगवत भजन करने लगना चाहिये। लोक में रहते हुये परलोक सुधारने के लिये कोशिश करना चाहिये। मौके-बेमौके आंय-बांय-सांय बकने लगना चाहिये।
लेकिन गांधी जी देश-दुनिया देखे हुये थे। इसलिये वे सिर्फ़ ’बापू’ की उपाधि से संतुष्ट न हुये। कर्म करते रहे और उनके कारण ही उनको महात्मा, संत, राष्ट्रपिता, अधनंगा फ़कीर और न जाने कितनी उपाधियां मिलीं। गांधीजी का केवल ’बापू’ उपाधि के भरोसे न रहना उसी तरह था जिस तरह सफ़ल उद्योगपति एक साथ पचीसों उद्यम लगाते हैं जिससे कि एक डूबे तो दूसरे बचें रहें।
असल में गांधी जी दूरदर्शी थे। जानते थे कि केवल ’बापू’ की उपाधि के भरोसे रहे तो उनको बापू कहने वाले उनके हाल वैसे ही करेंगे जैसे बुढौती में ’रागदरबारी’ उपन्यास में छोटे पहलवान अपने बाप कुसहर प्रसाद के करते हैं।
राग दरबारी के छोटे पहलवान अपने बाप को कुल-परम्परा के हिसाब से आये दिन लठियाते रहते थे। ऐसी ही एक लठियाव के बाद जब कुसहरप्रसाद पंचायत में छोटे पहलवान के खिलाफ़ शिकायत दाखिल करते हैं। पंच लोग कुसहरप्रसाद के चाल-चलन पर टिप्पणी करते हुये उनसे मजे लेते हैं तो छोटे पहलवान अपने खुद के द्वारा लठियाये गये बाप के समर्थन में अदालत से मोर्चा लेते हैं और कहते हैं:
"तुम मुंह लिये बैठे रहो बापू, मैं सब जानता हूं। मैं खुद कल शहर जाऊंगा और इन पर मुकदमा कायम कर दूंगा। इन्होंने तुम्हें भरी सभा में न जाने क्या-क्या कहा है। एक-एक से सवा लाख की कोठी में मूंज न कुटवाऊं तो तो समझ लेना तुम्हारे पेशाब से पैदा नहीं हुआ।"
कुसहर प्रसाद और छोटे पहलवान का किस्सा आधी सदी से ज्यादा पुराना है। जितना पुराना है उतना ही शाश्वत भी। बापूओं की इज्जत और बेइज्जती उनकी सन्तानों की पर मर्जी पर निर्भर करती है। बापुओं की इज्जत (और बेइज्जती की भी) का सर्वाधिकार सन्तानों के हाथ में सुरक्षित रहता है। रागदरबारी में भी शनीचर छोटे पहलवान द्वारा अपने बाप कुसहर प्रसाद की लाठियों द्वारा इज्जत आफ़जाई पर बयान जारी करते हुये हैं:
“इन्हें और कौन मारेगा? ये छोटे पहलवान के बाप हैं। उसे छोड़कर किस साले में दम है कि इनको हाथ लगा दे?”
अपने बापू के बारे में भी यही बात है। बापू जयन्ती के मौके पर जब पूरी दुनिया में गांधी जयन्ती मनाई जा रही है, अहिंसा दिवस मन रहा है तब अपने देश में कुछ लोग अपने बापू के बारें तमाम सुनी-सुनाई बातें बातें उद्घाटित करते हुये अपनी बहादुरी का झण्डा फ़हरा रहे हैं। गांधी जी के विराट व्यक्तित्व में कमी खोजकर उनके चेहरे पर जो खुशी दीखती है उसकी तुलना कूड़े के ढेर में कोई काम का कूड़ा पा जाने वाले के चेहरे खुशी जैसी लगती है।
बापू के बारे में और कुछ जानकारी पाने के लिये गूगलियाया तो आशाराम बापू सबसे पहले हाजिर हो गये। आशाराम बापू की खबरों ने पूरे पेज पर कब्जा किया हुआ है।
आशाराम बापू पर कुछ आगे लिखें तब तक फ़िर रागदरबारी का छोटे पहलवान का अपने बापू पर बयान खुल गया:
“यह बुढ्ढा बड़ा कुलच्छनी है। इसके मारे कहारिन ने घर में पानी भरना बन्द कर दिया है। और भी बताऊं? अब क्या बताऊं, कहते जीभ गंधाती है।“
किताब पलट कर हम और कुछ सोचें तब तक रेडियो पर भजन बजने लगा:
" वैष्णव जन तो तेने कहिये
जे पीर पराई जाने रे "
जे पीर पराई जाने रे "
भजन सुनते ही हम ’बापू’ (कौन वाले ये मती पूछिये) के प्रति आदर भाव से फ़ुल हो गये।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212678168402580
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