इसके पहले का किस्सा बांचने के लिये इधर आयें
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212806308446001
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गंगा तट से चले तो जगह पड़ी जहां शाम को बाजार लगता है। दुकानों वाले प्लेटफ़ार्म के बीच की जगह को पिच की तरह इस्तेमाल करते हुये दो लड़के क्रिकेट खेल रहे थे। बस दो लड़के। बिना विकेट। एक तरफ़ बॉलर दूसरी तरफ़ बैटसमैन। एक गेंद को बल्लेबाज ने घुमा के हिट किया तो गेंद भन्नाती हुई ऊपर चली गयी। गेंदबाज उसके नीचे आते हुये कैंच करते हुये जमीन पर लद्द से गिरते -गिरते बचा। अलबत्ता वह गेंद को नीचे गिरने से बचा नहीं पाया। इसके बाद फ़िर लपकते हुये बॉलिंग एंड पर चला गया।
बाजार के बाहर ही पुराने पुल के एकदम पास चाय की दुकान पर चाय खौल रही थी। हम वहीं बेंच पर चाय के इंतजार में बईठ गये। चाय वाले ने चाय छानकर पहली चाय सड़क किनारे रख दी। हमने सोचा शायद कोई आता होगा पीने के लिये। लेकिन जब कोई नहीं आया तो हमने पूछा किसके लिये यह चाय रखी गयी।
’यह चाय अखिल अचराचर विश्व के लिये है।’ चाय की दुकान पर बैठे एक ग्राहक ने बताया। मतलब निकाल कर रख दी है, जिसको मन आये पी जाये।
एक ही दिन में तीन लोग मिले जो अनजान लोगों /जीवों के लिये सहज भाव से अपने पास से चीजें देते दिखे। दो चाय वाले और एक पुल पर चिड़ियों के लिये दाना डालता आदमीं। मतलब दुनिया में निस्वार्थ भाव से किसी के लिये कुछ सोचने वाले एकदम खल्लास नहीं हुये हैं अभी।
चाय की दुकान पर एक बुजुर्ग महिला आई। उसको गोबरधन पूजा के लिये गोबर नहीं मिल रहा था। चाय वाले ने कहा - ’अब कहां मिलेगा। पहले बताती तो इंतजाम करते।’ साथ ही सलाह भी दे दी कि पॉलीथीन लिये घूमो क्या पता कहीं मिल जाये।
हमने मजे के भाव से सोचा कि गोबर तो किसी के भी दिमाग में मिल जायेगा। लेकिन फ़िर यह सोचकर बोले नहीं कि वह महिला कहेगी -’हमको गाय का गोबर चाहिये, इंसान के दिमाग का गोबर नहीं।’
इस बीच महिला की घड़ी दुकान वाले ने ठीक करते हुये हमारे मोबाइल का समय पूछा। हमने बताया तो उसने वही समय मिला दिया। बोला- ’अभी का समय तो यह है आगे देखना क्या बजता है।’
इसके बाद फ़िर संयोग हुआ एकदम पास ही रहने वाली Reshu Verma से मिलने का। पता चला Reshu चाय भी बना लेती हैं और बढिया बना लेती हैं।
उनकी मम्मी के हाथ के बने लड्डू खाकर अपनी अम्मा के बनाये लड्डू और अम्मा की याद भी आ गई। मम्मी जी ने यह सुनकर हमारे घर के लिये भी बांध दिये। लड्डू की फ़ोटो जानबूझकर नहीं लगा रहे। लगाने में आपने मोबाइल/कम्प्यूटर स्क्रीम गीली होने का खतरा है। अलबत्ता सेल्फ़ी दिखा देते हैं नीचे फ़ोटो में जिसे रेशू के भईया ने खींचा। सेल्फ़ी में अपनी फ़ोटो देखकर साफ़ पता चलता है कि आजकल के मोबाइल कैमरे कितने मानवतावादी होते हैं- सामने कोई भी खड़ा हो , फ़ोटो वे अच्छी ही खैंचते हैं।
इति प्रात: भ्रमण कथा।
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