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गंगा किनारे से लौटते हुये कटे हुये बाल और दीगर गंदगी जगह-जगह दिखी। गंदगी को निपटाने के लिये सुअर भी लोट-पोट करते दिखे। जगह-जगह लोग वह काम करते हुये दिखे जिसको खुले में करने पर जुर्माने की बात कही जाती है या फ़िर मना करते हुये चॉकलेट खिलायी जाती है। हमारे पास न जुर्माने का अधिकार न चॉकलेट का शुमार लिहाजा हम उसको अनदेखा करके आगे बढ गये।
आगे कुछ बच्चे एक गोल में मुंडी सटाये बैठे थे। जित्ती नजदीकी उनकी मुंडियां थी उससे लगा कहीं ये बैठकी सेल्फ़ी तो नहीं ले रहे। लेकिन ऐसा था नहीं। वे आपस में ’सन-मक्खी’ खेल रहे थे। कोई बच्चा सिक्का उछालकर बालू में अपनी हथेली के नीचे रख लेता। बाकी के बच्चे ’सन-मक्खी’ (हेड -टेल) कहते हुये दांव लगाते। सन (हेड) या मक्खी (टेल) आने पर जिसके अनुसार सिक्का गिरा होता उसी हिसाब से वह जीत जाता।
हर बच्चे के पास तीस-चालीस -पचास रुपये करीब थे। वे सब आपस में जीत-हार रहे थे। एक बच्ची भी थी उन बच्चों में। उसने बताया -’अम्मा से लेकर आये हैं चालीस रुपये। हार रहे हैं सुबह।’
हमने बातचीत में उन बच्चों को समझाना चाहा -’क्यों खेलते हो जुआ?’ एक सबसे छोटे बच्चे ने जिस तरह मुझे देखा उसका भावनुवाद अगर हो सकता तो शायद होता- ’अजीब बेवकूफ़ी की बात करते हो तुम भी।’
दूसरे बच्चे ने थोड़ा शरीफ़ अंदाज में हमको भी खेलने के लिये निमंत्रण दे दिया। हमने उसके निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।
बच्ची उन बच्चों में सबसे दबंग टाइप दिखी। वह जब जीतने लगी तो साथ के बच्चों को बड़ा दांव लगाने के लिये उकसाने लगी। बीच-बीच में बच्चे छोटी-मोटी गाली भी उच्चारते जा रहे थे। लड़की ने भी एक बार बच्चों को झुंझलाते और उलाहना दिया- ’अबे बड़ा दांव लगाओ यार। बड़ी चाल चलते हुये तुम्हारी फ़टती क्यों है बे?'
बच्चे खेलने में निमग्न थे। हम कुछ देर अवांछित से वहां खड़े रहने के बाद चल दिये। सोचा शायद यह दीवाली के बाद का जुंआ अनुष्ठान मात्र हो बच्चों का।
चलते हुये पास ही खड़े , बच्चों को जुंआ खेलते देखते, कुछ आदमियों में से एक ने अचानक मधुर स्वर में गाना शुरु कर दिया-
" आने से उसके आये बहार
जाने से उसके जाये बहार
बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा।"
जाने से उसके जाये बहार
बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा।"
सुरीली आवाज में गाने का मुखड़ा सुनकर मुझे अपनी संगीत-सुर जाहिलियत के चलते अपने एक मित्र का अपने बारे में सुना संवाद याद आ गया-" तुम सुरीली आवाज वाली अम्मा के बेसुरे बेटे हो।"
किस्सा अभी बाकी है
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