Friday, October 20, 2017

वो दारू नहीं नहीं गांजा पीते हैं

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शुक्लागंज पुल पार करके बाईं तरफ मुड़े। एक बार फिर बायें मुड़े। आगे सड़क किनारे ही रास्ता बना है। नीचे उतरने का। फिसलपट्टी से खड़ंजे के रास्ते पर साइकिल ठेल दिए। ब्रेक लगाए -लगाए उतर गए नीचे।
आगे गंगा की रेती। थोड़ी देर तक कड़ी फिर भुरभुरी। पैर, चप्पल, साइकिल का पहिया धंस-धंस जाए बालू में। हमें याद आया कि सुनील गावस्कर पिच के बीच दौड़ने का अभ्यास मुंबई बीच पर करते थे। याद आते ही हम फिर नदी किनारे ही जाकर रुके।
नदी किनारे लोगों की फेंकी मूर्तियां इकट्ठा थीं। मिट्टी की मूर्तियां और मालाएं। लोग किनारे नहा रहे थे। कपड़े बदल रहे थे।
एक बच्चा नदी में नाव पर बैठा था। हम पानी मंझाते हुए घुटने तक पानी में खड़े होकर उससे बतियाने लगे। हमे लगा वह नाविक है। लेकिन वह बोला कि वह नाव चला लेता है पर नाव उसकी नहीं है।
वह क्या करता है पूछने पर उसने बताया -कुछ नहीं।
पढ़ने स्कूल भी नहीं जाता।
'करते क्या हो फिर ?' पूछने पर बताया -' नदी से पैसा बीनते हैं। कल मेला था। 75 रुपये मिले नदी से।'
'क्या किये पैसे?'- मैने पूछा
'अम्मी को दे दिए' - उसने बताया।
'अम्मी को क्यों दिये ? अब्बू को क्यों नहीं ?' - मैने पूछा।
'अब्बू दारू पी जाते हैं। ' उसने बताया।
तब तक उसका साथी आ गया। वह भी नदी से पैसे बटोरता है। उसने बताया कि उसने कल सौ रुपये कमाए।
सुनकर पहले बच्चे ने अपनी कल की आमदनी 75 से बढ़कर 85 बताई। बोला - 'हमने भी 15 कम सौ कमाए कल।'
तुमने क्या किया मैने उससे पूछा (जाहिद नाम बताया बच्चे ने) तो वो बोला -'अब्बू को दे दिए।'
'तुम्हारे अब्बू दारू नहीं पीते ?' - मैने सवाल किया।
'नहीं वो दारू नहीं गांजा पीते हैं' -जाहिद ने निस्संगता से बताया।
नाव पर बैठा लड़का अनमने मन से बातचीत सुनते हुए ऊब सा गया। मैंने पुल के पास इतवार को बच्चो को पढ़ाने की फोटो दिखाते हुए उससे कहा -'वहां जाया करो पढ़ने। वो लोग टॉफी/चाकलेट भी देते हैं।'
लेकिन वह मेरे झांसे में आता दिखा नहीं। नजरूल नाम है बच्चे का। इसी नाम का कवि बगल के देश का राष्ट्रकवि है। यहां उसी नाम का बच्चा अंगूठा टेक।
इसी बीच एक महिला भी वहां आ गयी। हमारी बातें सुनकर बोले - 'इनके माँ-बाप जाहिल बनाकर रखते हैं बच्चों को। ये नहीं कि बच्चों को पढ़ने के लिए भेजें।'
हमने उसके बच्चों के बारे में पूछा कि वो स्कूल जाते हैं ?
बोली -'हां। तीन बच्चे हैं। दो स्कूल जाते हैं। बड़ा 5 में है। हमेशा अव्वल आता है। दूसरा एक बार अव्वल आया फिर पास होता रहता है। छोटा बच्चा अभी ढाई साल का है। '
रानी नाम बताया महिला ने। बताया 15 दिन का था छोटा बेटा तब खसम नहीं रहा। किस बीमारी से मरा पति पूछने पर बोली - 'दारु, गांजा, चरस, अफीम , भाँग हर नशा करता था। दारू से फेफड़े खराब हो गए। मर गया।'
'तुम मना नहीं करती थी नशे के लिए'- पूछने पर बोली रानी -'मना करने पर हमको कूटता था। कुटते- कुटते सूख गए हम। '
उम्र की बात पर बोली रानी -' हमकों उम्र पता नही। लेकिन हम नाबालिग थे। तब ससुराल वालों और घर वालों ने धोखे से शादी कर दी हमारी।'
रानी अभी नदी किनारे पैसे बटोरती है। पहले सीमेंट की बोरी ढोती थी। लेकिन अब सर में दर्द रहता है। मजूरी होती नहीं। इसलिए यही काम करती है। जब नहीं कुछ होता है तो माँ-बाप के भरोसे रहती है। उनके ही साथ रहती है रानी।
खुद अनपढ़ (रानी के अनुसार जाहिल) लेकिन पढ़ाई का महत्व पता है रानी को। बच्चों को पढ़ा रही है।
वहीं नदी किनारे बच्चे बालू की पिच पर क्रिकेट खेल रहे थे। बैट्समैन कुछ धीमा था। ठीक से हिट नहीं कर पा रहा था। दूसरे छोर से कप्तान ने हड़काया -' अबकी रन नहीं बनाया तो बैठा देंगे तुमको। हमको मैच गंवाना नहीं है।'
जीवन के इतने शेड्स दिखते हैं हमारे आस पास कि उनको देखकर ताज्जुब भी होता है कि अरे, यह रंग तो देखा ही नहीं अब तक।
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