ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे |
कल सुबह टहलने निकले। गेट के पास ही लकड़ी के डंडे के सहारे चलते भाई जी मिले। डंडा दोनों हाथों से पकड़कर दोनों टांगो के सामने जमीन पर टेककर आगे बढ़ते हुए।मध्यमार्गी मुद्रा। पैर में चोट लगी थी साल भर पहले। तबसे डंडे के सहारे चलते हैं। मध्यमार्गी हो गए हैं। चोट खाया हुआ कमजोर आदमी मजबूरन मध्यमार्गी हो जाता है।
बात करते हुए पता चला कि बरेली के रहने वाले हैं। यहां रात में दुकानों की चौकीदारी करते हैं। 17 दूकानों से 5000/- मिल जाते हैं महीने में।
चोट खाया चौकीदार |
55 साल की उमर वाले चौकीदार के अधिकतर दांत गुटका, पान , तम्बाकू के संयुक्त आक्रमण में धरासाई हो गए हैं। हवा जिधर से मन आये, आये, जाए --'समाज में काले धन की तरह, पड़ोस में आतंकवाद की तरह।' कोई रोक टोंक नहीं।
खुद चलने-फिरने में डंडे के मोहताज चौकीदार कैसे रखवाली करते होंगे यह सोचते हुये बात की तो पता चला कि कुल जमा 7 बच्चे हैं उनके। पांच लड़कियां , दो लड़के। हमने पूछा इतने में खर्च कैसे चलता होगा -'बोले, मिसेज दूसरे घरों में काम करती है। भाई भी देते हैं खर्च। बच्चे भी कुछ कमाने लगे।' 5000 में भी घर खर्च के लिए वे 2000/- देते हैं, बाकी खुद के भी ख़र्च हैं।
खुद का बरेली का बताने के बाद उन्होंने हमसे सवाल किया -'आप क्या नेपाल के रहने वाले है?' हमने पूछा -'नहीं तो, वैसे क्या हम नेपाली लगते हैं?' बोले -' ऐसे ही पूछा।'
चलते हुए उस दुकान पर पहुंचे जिसकी भी चौकीदारी इनके जिम्मे हैं। 7 बच्चों का जिक्र फिर आया तो दूकान वाला बोला -'और ये कर ही क्या सकते हैं, बच्चे पैदा करने के सिवा। पालने का ठिकाना नहीं, बस पैदा करने से मतलब।'
इसी क्रम में दुकान वाला अपने बच्चों के बारे में बताने लगे। बच्चों की बात तो बहाना था वे दरअसल अपनी दो साल पहले असमय विदा हो गयी पत्नी की यादें साझा करने लगे। बताया उसने दोनों बच्चियों की शादी ऐसी शान से की लोग देखते रह गए। कोई कमी नहीं रखी हम लोगों ने। उनका (लड़के वालों का) मुंह चला , हमारा पैसा।
पत्नी के जाने का अफसोस करते हुए बताया -'अभी बेटे की शादी की धूमधाम से। वो चली गयीं शादी देख नहीं पाई। बहू का मुंह देखने की हसरत लिए चली गयी।
'उनका मुंह चला, हमारा पैसा' सुनकर लगा आम लोगों की अभिव्यक्ति क्षमता कितनी सटीक होती है। हम लेखकों को ही तीसमार खां समझते हैं।
लौटते हुए देखा कि एक आदमी साईकल पर पीछे बैठा बंदूक लिए जा रहा था। नाल ऊपर किये। बंदूक की नाल के नीचे सफेद पट्टी जैसी बंधी थी। गोया बंदूक की मरहम पट्टी की गई हो। या फिर बंदूक ने सफेद कपड़े के द्वारा सीज फायर घोषित किया हो। बंदूक वाला सामने से जब गुजर गया तब गाना याद आया:
'सैंया रे सैंया
तेरी दम्बूक से डर लागे। '
तेरी दम्बूक से डर लागे। '
हमने गाने को देरी से आने पर लेट लतीफी के लिए बहुत तेज डांटा। हड़काया भी -'अपने आप को क्या अच्छे दिन समझ रखा है कि जब मन आयेगा, तब आओगे यह सोचते हुए की लोग निठल्ले तुम्हारे इन्तजार में बैठे रहेंगे।' गाना बेचारा सहम गया। हमने उसको दौड़ा दिया कि जाओ देखो बंदूकची को खोजो जाकर। जुडो उससे। तबसे लौटा नहीं है। कहीं मजे कर रहे होंगे दोनों जुगलबन्दी करते हुए।
खरबूजे के साथ मोहम्मद इस्लाम |
सामने से एक बच्चा एक खरबूजे को दांये हाथ में हथगोले की तरह पकड़े जा रहा था। किसी को फेंककर मारने की मुद्रा में एकदम तैयार जैसा। लेकिन फिर हमने हथगोले वाले बिम्ब को खारिज कर दिया। बालक के हाथ में खरबूजे को शाटपुट के गोले की तरह देखा। यह भी की बालक इसी खरबूजे से रियाज करते हुए कल को शाटपुट चैंपियन बन सकता है।
खरबूजे से शाटपुट चैंपियन बनने का आइडिया हमको पूनम यादव के संस्मरणों से आया। जिसमें उन्होंने बताया कि पैसे के अभाव में बांस के सिरों पर वजन लटकाते हुए उन्होंने भारोत्तोलन का अभ्यास किया। श्रीलाल शुक्ल जी भी मोटी किताबों को 'मुगदर साहित्य' कहते थे। उन किताबों को मुगदर की तरह उठाते हुए कसरत किया जाना ही उनकी सार्थकता बताते थे।
खरबूजे की बात से याद आया कि शाम को खरबूजा लेने गए तो मोहम्मद इस्लाम मिले ठेले पर। बोले -'30 रूपये किलो हैं। आप 25 में ले लो।' हाथ में मोबाइल देखकर साथ वाले से बोले -'उस दिन फोटो खींची थी साहब ने। अखबार के लिए।'
किसी की फोटो खींचो तो अगला यही सोचता है कि अखबार में ही जानी है। कुछ ऐसे जैसे हर चुनाव लड़ने वाला सोचता है -'सरकार तो उसी को बनानी है।'
लौटते हुए देखा दो बच्चियां सड़क किनारे रखे कोलतार के खाली ड्रम में कौतूहल से निहार रहीं थीं। गले मे हाथ डाले हुए चलती मासूम बच्चियां:
'ये दोस्ती
हम नहीं छोड़ेंगे
छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे।'
हम नहीं छोड़ेंगे
छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे।'
गाने का मूर्तिमान रूप सरीखी लग रहीं थी। सुबह हो गयी थी। खुशनुमा वाली वाली। आपके उधर भी हो गयी होगी -पक्का। इसी बात पर मुस्कराइए। मुस्करा लीजिये जी भर कर। किसी भी हाल में मुस्कराने पर अभी कोई टैक्स नहीं है। क्या पता कल को लग जाये। इसके पहले की मुस्कान किसी लफड़े में फंसे , बल भर मुस्करा लीजिये। जो होगा देखा जाएगा।
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