शहर का कबाड़ नहर के हवाले |
सबेरे-सबेरे निकले। सड़क फूल स्पीड में गुलजार हो गयी थी। हमारे लिए भले सुबह हो, सड़क की तो दोपहरी हो गयी होगी। अपने दिन भर के हिस्से का चौथाई ट्रैफिक वह लाद चुकी होगी।
स्कूल जाते बच्चों की बहुतायत है सुबह के यात्रियों में। चौराहे पर एक ऑटो वाले ने अपनी गाड़ी एकदम हमारी साइकिल के आगे रोक दी। उससे बच्ची उतरी। एकदम साईकल के सामने आ गयी। अचानक ब्रेक मारने से साइकिल का मूड ऑफ टाइप हो गया। कस के मुंडी दोनो तरफ हिलाकर खड़ी हो गयी। बोली आगे न जाएंगे अब। लेकिन आहिस्ते से पैडल मारते ही चल दी।
एक आदमी एक बिल्डिंग के सामने लगे खम्भे की टेक लगाए बैठे सड़क यातायात को निहार रहा था। नुक्कड़ पर मोची अपने बोरे से औजार निकाल कर सड़क पर बिछा रहा था। किसी भी मोची को देखते ही अनायास धूमिल की कविता मोचीराम याद आ जाती है:
'जिंदा रहने के पीछे अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी ओढ़कर और
रंडियों की दलाली करके जीने में
कोई फर्क नहीं है।'
तो रामनामी ओढ़कर और
रंडियों की दलाली करके जीने में
कोई फर्क नहीं है।'
कविता में जो रंडियों की दलाली वाली बात कही गयी है वह कविता लिखे जाने के समय बुरी बात मानी जाती होगी। अब तो रामनामी और दलाली दोनो के मायने बदल गए हैं। आदमियों की दलाली करने वाले सदाचार के उपदेशक बन गए हैं।
दवा की दुकान पर एक आदमी खैनी ठोंक रहा था। अपने लिए कैंसर घराने की बीमारी का इंतजाम करता हुआ अपनी दुकान चलते रहने का इंतजाम कर रहा था।
सड़क पर बहुतायत बच्चों को स्कूल छोड़ने जाने वालों की थी। तमाम दोपहिया वाहनों में अधिकतर लोग बिना हेलमेट अपने बच्चों को छोड़ने जा रहे थे। उनको ऐसा लगता होगा कि स्कूल टाइम में हेलमेट की छूट है। दुर्घटना नहीं होगी।
एक रिक्शे पर भाई -बहन स्कूल जा रहे थे। साइकिल बगलिया कर उनसे बतियाने लगे। बच्चा ओईएफ इंटर कालेज जा रहा है। जूते बिना पॉलिश के। हमने बात करने की मंशा से पूछा तो शर्माते हुए बोला -'देर हो गयी आज उठने में।'
स्कूल 20 मई से बंद होंगे। चालीस दिन की छुट्टी हो जाएगी। लेकिन बच्चा कह रहा है -'बोर हो जाते हैं छुट्टियों में।' बताओ हमको मयस्सर नहीं छुट्टी, बच्चे बोर हो जाते हैं।
फूलबाग चौराहे पर आती गाड़ी हमको ठोंकने के इरादे से बढ़ती दिखी। हमने तेजी से गाड़ी आगे बढ़ाई। उसके आगे से फुर्ती से निकले। उसने हमको घूरकर देखा । उसको लगा होगा ये साइकिल आगे कैसे निकल गयी। वह भूल गया कि साईकल मोटर की पूर्वज है। लोग आजकल बुजुर्गों का लिहाज नहीं करते।
कूड़े से काम की चीज खोजते लोग |
मजार के पास दो खड़खड़े वाले मलबा नहर में डाल रहे थे। इस नहर में कभी पानी बहता था। आज शहर का कूड़ा-कबाड़ फेंका जा रहा है। खड़खडे वाले ने घोड़ा हटाया और खड़खड़ा टेढ़ा करके सूखी नहर में फेंक दिया। वहीं खड़ा एक बच्चा उस कबाड़ में से अपने मतलब की चीजें बीनने लगा। इस कोशिश में कबाड़ ढेर उसके ऊपर उलटते बचा।
कबाड़ से बच्चे ने लकड़ी के टुकड़े, सरिया और इसी तरह का उपयोगी कबाड़ बटोर लिया। लकड़ी से चूल्हा जलेगा, सरिया बिक जाएगी। हमको याद आया बचपन में अपन भी साथियों के साथ बिजली की बन्द दुकानों के बाहर तांबे के टुकड़े बीनते थे। गर्मी के दिनों में जेबखर्च के लालच में।
कबाड़ की बात चली तो याद आया कि विकसित देश अपना सारा कबाड़ चाहे वह सामान हो या तकनीक विकासशील देशों को टिकाते रहते हैं। हम लपकते रहते हैं। उनका कबाड़ हमारे लिए नियामत है। याद तो यह भी आया कि किताब 'हिन्दू - जीने का समृद्ध कबाड़' बहुत दिन से पढ़नी बकाया है।
सुबह की गुलजार सड़क |
पप्पू की चाय की दुकान गुलजार हो गयी थी। कल आंधी में तिरपाल उड़ गया था। आज फिर जमा लिया। कैंट में फुटपाथ के अवैध कब्जे हटेंगे यह खबर है। हमने पूछा तो बोले -'जो होगा देखा जाएगा। सबकी हटेगी तो हमारी भी। जब हटेगी तो देखेंगे।' जिनका कल का ठिकाना नहीं वो कल की ज्यादा सोचते भी नहीं।
कल की भले न सोचें अपन भी। लेकिन आज की तो चिंता करनी होगी। टाइम हो गया दफ्तर का । निकलना होगा।
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