आज मसिजीवी Vijender Masijeevi से मुलाकात हुई। 'घटनास्थल'बारादेवी के पास एक चाय की दुकान। पिछली मुलाकात इलाहाबाद के ब्लागर सम्मेलन की थी जिसमें खूब फोटोबाजी और बयानबाजी हुई थी। उसके पहले हमारी बिटिया स्वाति की शादी में आना हुआ था मसिजीवी का।
ब्लागिंग के पुराने साथी मसिजीवी ने ब्लागिग में भी खूब गुल खिलाये थे। चिट्ठाचर्चा भी की। अभिव्यक्ति की आजादी के विकट समर्थक मसिजीवी ब्लागिंग के दिनों में अनाम लेखन के समर्थक थे। इस बारे में उन्होंने एक पोस्ट भी। लिखी थी -'......मुखौटा मुझे आजाद करता है।' 15 मार्च, 2007 की इस पोस्ट में मसिजीवी ने छद्म नामों से ब्लाग लिखने वालों की तरफदारी करते हुए लिखा था:
"आलोचक, धुरविरोधी, मसिजीवी ही नहीं वे भी जो अपने नामों से चिट्ठाकारी करते हैं एक झीना मुखौटा पहनते हैं जो चिट्ठाकारी की जान है। उसे मत नोचो- ये हम मुक्त करता है।"
उनकी बात का समर्थन करते हुए नीलिमा Neelima Chauhan ने लिखा था -" ब्लागिंग एक अलग मिजाज की लेखन दुनिया है जहां मुखौटे लगाकर लेखक अपने व्यक्तित्व के बोझ से अपने लेखन को मुक्त करता है इसी वजह से वह सच का बयान कर पाता है, सच का बयान करने के लिए यह जरूरी भी है।"
अब यह अलग बात है कि बाद में शायद फेसबुक की शर्तों के चलते मसिजीवी के पहले विजेंदर जुड़ गया और शायद इसीलिए मसिजीवी की अभिव्यक्ति बाधित हुई। हालांकि नीलिमा ने 'पतनशील पत्नियों के नोट्स' बिना कोई मुखौटा लगाए अपने नाम से लिखे।
मसिजीवी ने हमसे बिना किसी भूमिका के पूछ लिया -'सूरज की मिस्ड कॉल' पर इनाम कैसे मिल गया। हमने सच बताया -'हमको कुछ पता नहीं। किताब भेज दी। इनाम मिल गया। शायद इस कैटेगरी में और कोई किताब न आई हो।'
ब्लागिंग के दिनों से शुरू के दिनों की अनगिनत यादें घण्टे-डेढ़ घण्टे में जितनी दोहराई जा सकती थी उतनी दोहरा ली गयीं। जिम्मेदार नागरिक होने के नाते थोड़ी देश की स्थिति पर भी चरचा हो गयी। कुल छह चाय शहीद हो गईं इस बतकही में।
मसिजीवी की पोस्ट का लिंक यह रहा
मसिजीवी से पहली मुलाकात के किस्से
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10216083237647183
No comments:
Post a Comment