ये भाई साहब ऐसे खड़े थे धूप में मानो बजट पर प्रतिक्रिया देने के लिए शेर गढ़ रहे हों मन में। हो तो यह भी सकता है कि प्रतिक्रिया दे भी चुके हों -'हमको ई सब गदहपचीसी के लफ़ड़े में मत फ़ंसाओ। पहले हमारे लिए बजट में क्या रखा है ये बताओ।'
कोई कह रहा था कि जबसे इनके कुनबे के लौंडों (युवा गदहों) ने इनको मागदर्शक बताते इनकी इज्जत करनी शुरू कर दी है तबसे गुमसुम हो गए हैं।
धूप भाईसाहब के पूरे शरीर पर कबड्डी खेलती रही। लेकिन उसका कतई बुरा नहीं माना अगले ने।
विनम्रता गदहों का मौलिक गुण है।
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