सूरज भाई भन्नाए हुए हैं। कुछ किरणें अभी तक धरती पर नहीं पहुंचीं हैं। सज-संवर रही हैं। इठलाती हुई एक-दूसरे से 'देख री, कैसी लग रही हूँ' पूछते हुए फिर-फिर तैयार हो रही हैं। दूसरी भी बिना उनकी तरफ देखे -'जम रही है, एकदम बिंदास' कहते हुए तैयार हो रही है।
सूरज भाई किरणों की लेट लतीफी से सुलग रहे हैं। धरती पर गर्मी बढ़ रही है। एक बच्ची किरण फूल तैयार है। मुंह फुलाये हुए कोने में बैठी है। सूरज भाई की लाड़ली है। वह गुस्सा है कि जिस फूल पर बैठने के लिए वह जाने वाली थी आज वह उसको एलॉट नहीं हुआ है। सूरज भाई उसको मना रहे हैं लेकिन वह मान नहीं रही। मनौना ले रही है।
असल में बच्ची किरण का फूल से 'वो' टाइप का हो गया है। कल दिन भर फूल ने हवा के सहारे हिल-हिलकर झूला झुलाया था। किरण का मन गुदगुदा गया। आज फिर वह उसी फूल पर जाना चाहती है। लेकिन सूरज भाई ने जब उसको कोई दूसरी जगह एलॉट की तो वह बमक गयी। मनमाफिक सीट न मिलने पर चुनाव न लड़ने की धमकी देते जनप्रतिनिधियों की तरह हरकतें कर रहीं। अब सूरज भाई कोई हाईकमान तो हैं नहीं जो बच्ची पर अनुशासन की कार्यवाही कर दें। बाप हैं बच्ची के। प्यार करते हैं अपनी लाड़ली को। प्यार मजबूत बनाता है तो मजबूर भी करता है।
सूरज भाई बच्ची किरण को समझाने में जुट गए। बताया ''जिस फूल पर जाने की तू बात कर रही उसको कल बंदरों ने नोच कर फेंक दिया। इसीलिए दूसरी जगह एलॉट की है तुझे।"
बच्ची किरण सूरज भाई की बात मान नहीं रही। उसका दिल 'टूट' टाइप का गया है। वह बिफर गयी-"आप झूठ बोल रहे हैं। वह वहीं होगा। कल विदा किया था उसने मुझे हिल-हिलकर। मुझे जाना है उसके पास। नहीं जाऊंगी तो वह मुझे बेवफा समझेगा। मैंने उससे प्रॉमिस किया था। मैं कोई नेता थोड़ी हूँ जो वादा करके मुकर जाऊं। मुझे जाना है उसके पास। वह मेरा इंतजार कर रहा होगा। "
सूरज भाई मजबूरन बच्ची किरण को साथ लेकर आये। वह जगह दिखाई जहां कल फूल खिला था। आज उसकी जगह एकाध पत्तियां थीं। फूल को बंदरों ने नोच डाला था। किरण दुखी हो गयी। कुछ देर गुमसुम खड़ी रही। फिर पास में खिली कली को गले प्यार करती हुई फूल के साथ बिताए समय को याद करती रही। रेडियो पर गाना बज रहा है -'परदेशियों से न अखियां मिलाना।'
किरण का मन किया रेडियो को उठाकर पटक दे। थूर दे बदमाश को जो ऐसा फालतू गाना बजा रहा है। परदेशी बता रहा है फूल को। बदनाम कर रहा उसको। लेकिन जगह छोड़कर जाने का मन नहीं हुआ उसका। कली को गले लगाए वहीं रही वह।
हमारे साथ चाय पीते किरण को कली के साथ खेलते देख सूरज भाई ने सुकून की सांस ली। सारा किस्सा सुनाया मुझे। हम लोग बातों में मशगूल थे इस बीच एक बंदर आया और चुपके से मेज पर रखा बिस्कुट का पैकेट उठा ले गया। एकदम सर्जिकल टाइप। सिर्फ पैकेट उठाया। चाय का कप हिला तक नहीं। हमने दौड़ाया तो आंखे दिखाने लगा।
एक हाथ में बिस्कुट का पैकेट लिए दूसरे हाथ से वह दूसरे बंदरो को भगाने में लगा था। बाकी के बंदर भी उस पर झपट पड़े। सब एक-दूसरे पर राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ताओं की तरफ खौखियाने लगे। अंततः बन्दर के हाथ से बिस्कुट का पैकेट छूट गया। उस पर दूसरे मुस्टंडे बन्दर का कब्जा हो गया। वैसे ही जैसे एक पार्टी के एजेंडे को दूसरी शातिर पार्टी अपना बना लेती हैं।
कुछ देर बाद बंदरों के दोनों गुट चले गए। क्या पता दोनों गुट सारी घटना का वीडियो बनाकर अपने-अपने हिसाब से अपने लोगों में दिखाएं। अपने को दूसरे से बेहतर बताएं। उनके यहाँ भी चुनाव होते हों तो क्या पता इसी आधार पर वोट भी मांगे जाए । आखिर हमारे पूर्वज हैं वो। हमारी ही तरह तो हरकतें करेंगे।
बंदरों के ऊधम से कुचली हुई घास अपने जख्म पर सूरज की किरणों का मरहम लगा रही है। रिक्शे में बैठा हुआ रिक्शेवाला अखबार में चुनाव की खबरें पढ़ रहा है। उससे उतरकर बच्ची स्कूल जा रही है। सूरज भाई चाय खत्म करके वापस चमकने लगे।
सुबह हो गयी है।
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