कल आईआईटी खड़गपुर पहुंचे। राजभाषा विभाग में एक कार्यक्रम के सिलसिले में। आना तो आलोक पुराणिक जी को भी था लेकिन पता नहीं कैसे उनके दिमाग से इस आयोजन की तारीख फिसल गई। उन्होंने अपने विद्यालय में एक कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई। उसका जिम्मा भी उनके ही सर माथे आया। लिहाजा उनकी टिकट कैंसिल करवानी पड़ी।
इस बुलउवे के सूत्रधार डॉ राजीव रावत यहां राजभाषा अधिकारी हैं। पहले वे फील्ड गन फैक्टरी में राजभाषा विभाग में थे। 2009 में वहां से यहां आए। उसी परिचय के सिलसिले से यहां आना हुआ।
आईआईटी खड़गपुर की यह मेरी दूसरी यात्रा है। पहली बार 36 साल पहले साइकिल से आये थे। राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित यह देश की पहली आईआईटी थी। 1951 में स्थापना हुई।
दिन में राजभाषा विभाग का काम काज देख रहे डॉ अशोक मिश्र जी से मुलाकात हुई। बांदा जिले के रहने वाले डॉ अशोक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। इस लिहाज से एक ही गुरुकुल के विद्यार्थी हुए हम लोग।
शाम को इंस्टिट्यूट के कुछ छात्रों से बातचीत मुलाकात हुई। छात्रों के यहां दो समूह हैं । एक टेक्निकल लिटरेरी सोसाइटी (TLS), दूसरा आवाज (AWAAZ)। दोनों में क़रीब 100-100 सदस्य हैं। TLS में बंद समूह में साहित्य गतिविधियां चलती हैं। आवाज का फेसबुक पेज है। इसमें परिसर में हो रही गतिविधियों की जानकारी रहती है। छात्रों
के प्लेसमेंट , स्थानीय लोगों से जुड़ी घटनाओं की सूचनाओं के अलावा आवाज के पेज पर एक दिन मेस के खाने में छिपकली पाए जाने की खबर भी दिखी।
महफिल जब जुड़ी तो कुछ बातचीत भी हुई। देश के अलग-अलग हिस्सों से आये बच्चों से मिलकर बहुत अच्छा लगा। दो छात्रों ने अपनी कविताएं भी सुनाई। यश जबलपुर के रहने वाले हैं । उन्होंने मंटो की कहानी टोबा टेकसिंह पर आधारित कविता सुनाई। बहुत सुंदर पाठ। एक और छात्र ने चांद पर अपनी कविता सुनाई। दोनों के वीडियो बनाये गए। परिचय के साथ दोनों कविताएं अलग से।
वहीं डॉक्टर पंकज साहा जी से भी मुलाकात हुई। अपने व्यंग्य सँग्रह 'हा ! बसन्त!' की एक प्रति उन्होंने हमको दी।
आज इसका लोकार्पण होना है।
रात को खाने पीने के बाद हम संस्थान देखने गए। जिस बिल्डिंग के सामने खड़े होकर 36 साल पहले फोटो खिंचाई थी एक बार फिर उसी के सामने थे। वह समय ब्लैक एंड व्हाइट का था। आज का रंगीन। लेकिन यादों में वह छवि आज भी उतनी ही चमकदार है।
खड़गपुर के बाकी किस्से आगे।
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