Tuesday, October 29, 2019

ठेले पर शौचालय



कल बहुत दिन बाद टहलना हुआ। सड़कें दुकानों से निकले त्योहारी कचरे से गुलजार थीं। खा-पीकर लोगों ने पत्तल-दोने सड़क पर फ़ेंक दिये थे। 'मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं' वाले अंदाज में।

एक घर के बाहर नाली के किनारे कुछ दिये गुमसुम से धरे थे। रात जो अंधेरे के खिलाफ़ बहादुरी से लड़े वे उजाले में उपक्षित से नाली के किनारे चुपचाप बैठे थे। मार्गदर्शक मण्डल के बुजुर्गों की तरह। क्या पता आपस में बीती रात के अपने पराक्रम की कहानी साझा कर रहे हों। अतीत के किस्सों की जुगाली बुजुर्गों की लाइफ़लाइन होती है।
गंगा दर्शन के लिये जाते हुये सुलभ शौचालय के पास एक गाड़ी पर रेडीमेड शौचालय लदा दिखा। धर्मवीर भारती जी की नकल करके लिखें तो कहेंगे - 'ठेले पर शौचालय'। ’रेडी टु फ़िक्स’ मोड में। गड्डा खोदकर चालू हो जाये ऐसा शौचालय। पानी की टंकी साथ में। देश भर में शौचालय बनवाने के लिए इसी तरह फटाफट काम हो रहा होगा।
सड़क किनारे मूंगफ़ली की दुकाने गुलजार थीं। आग जलाकर मूंगफ़ली भूंजी जा रही थीं। जगह-जगह बच्चियां, महिलायें दुकानों के सामने बैठी गप्पाष्टक में जुटी थीं।

गुप्ताजी अपने ठीहे के बाहर बैठे दिखे। आंख में चश्मा लग गया था। खुश दिखे चश्मे के साथ। बोले - ’ अब नजर साफ़ हो गयी है। लेकिन लगता है कि पहले लगवा लेना चाहिये चश्मा। पहले लगता तो अच्छा रहता।’
हमने कहा - ’हमने तो पहले ही कहा था कि लगवा लो।’
कित्ते का बना चश्मा ? -हमने पूछा।
250/- लग गये। 300/- रुपये मांग रहा था। लेकिन हमें 250/- दिये। अब दूसरी आंख का आपरेशन होना है। जाड़े में करवायेंगे।
लड़के के बारे में बताया कि अभी तक तिरपाल बेंच रहा था। अब वो भी डाउन हो गया। अब कोई दूसरा काम करेगा। नहीं कुछ तो ककड़ी -खीरा बेंचेगा। इसके बाद ककड़ी -खीरा की बोआई के बारे में बात हुई। अंत में गुप्ता जी बोले - ’गंगा का पानी तो अमृत है।’ उनकी बात मानने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं था।

पुल की शुरुआत में तमाम मूर्तियां दिखीं। कल जो पूजी जा रहीं थीं वे आज उपेक्षित पड़ी थीं। गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बहुतायत में। इससे यही सीख ग्रहण की गई कि किसी भी पूजे जाने वाले इंसान की अंतिम नियति कूड़े में फेंके जाना ही होती है। पुजने और फिकने में बस समय का ही अंतर होता है। इसलिए इंसान पुजने से बच सकें तो बेहतर।
आगे गंगा किनारे लोग स्नान-ध्यान-पूजा-पाठ में लगे थे। नदी किनारे कीचड़ पसरा था। एक आदमी ने गंगा किनारे अपनी पोटली धरी। बालू को प्रणाम किया। इसके बाद पानी में धंस गया। दस फ़ुट आगे जाकर नाक बंदकर पानी में डुबकी लगाई । इसके बाद निकल आया बाहर। कपड़े बदलकर निकल लिया शहर की ओर।
उसी जगह एक सुअर, एक कुत्ता और एक आदमी एक साथ दिखे। तीनों को एक साथ देखकर लगा मानों जननायक, माफ़िया और भ्रष्ट लोगों से गठबंधन करके किसी परिपक्वव लोकतंत्र में सरकार बनाने का दावा पेश करने जा रहे हों।

गंगा की रेती में ही कुछ बच्चे गुल्ली-डंडा खेल रहे थे। डंडे के मुकाबले गुल्ली बहुत टुइयां सी दिखी। ऐसे जैसे किसी सतफ़ुटा मनई से कोई नटुल्ली ब्याह गयी हो। बच्चे ने गुल्ली को डंडे से मारा तो गुल्ली सात फ़ुट उछली। लड़के ने पूरा घूमकर हाथ घुमाया। लेकिन निशाना चूक गया। गुल्ली लद्द से बालू में गिरी आकर। बच्चे ने डंडा हाथ से नीचे फ़ेंक दिया।
दूसरे बच्चे ने निशाना लगाया। गुल्ली उछली। उसने टन्न से मारा। गुल्ली ऊपर आसमान में उछलती हुई आगे बढी। नीचे आने को हुई तो उस पर पद्दी करने वाले बच्चे की निगाह जमी हुई थी। जैसे 1983 के विश्वकप में कपिल देव की निगाह रिचर्ड्स की शाट पर जमी होंगी। गुल्ली नीचे गिरने से पहले उसने उसे भागते हुये लपक लिया। थोड़ा हल्ला मचा। डंडे वाला लड़का आउट हो गया। डंडा फ़ेंककर चल दिया।

सूरज भाई दिन भर की ड्यूटी के बाद अब विदा ले रहे थे। गंगा की लहरों में उनकी छवि मनोहारी टाइप लगी। बहुत दिन बाद सूरज भाई को नदी में विसर्जित होते देख रहे थे। इसलिये शायद और क्यूट दिखे। लाल-लाल एकदम। लेकिन उनकी फ़ोटो ली तो उनकी लालिमा पीलेपन में बदल गयी थी।
कैमरा भी एकदम मीडिया टाइप हो गया है। होता कुछ है, दिखाता कुछ है। हमको समझ में नहीं आया कि बिकाऊ मीडिया की तर्ज पर अपने कैमरे को क्या कहें? - टिकाऊ कहें कि दिखाऊ ? दोनों से अच्छा तो भरमाऊ कहें। भरमाता बहुत है कैमरा। खराब चीजों को भी अच्छा दिखाता है। अच्छे का रंग बदल देता है।
आगे शुक्लागंज में सड़क पर सिपाही गस्त लगाते दिखे। दो लड़के मोटरसाइकिल से सड़क पर नागिन डांस सा करते हुये निकले। दरोगा जी को यह हरकत नागवार गुजरी। वे पैदल थे। उन्होंने उन बाइकर्स का पीछा करके पकड़ने के इरादे से सवारियों का मुआइना करना शुरु किया। एक कार देखी, उसे जाने दिया। इसके बाद अपन की साइकिल थी। हमारा जी मुंह को आने को हुआ कि कहीं हमारे कैरियर पर बैठकर वो बाइकर्स का पीछा करने का मन न बना लें। लेकिन उन्होंने मेरी साइकिल को बक्स दिया। मैंने वहीं अपनी साइकिल पर बैठकर तय किया कि पुलिस के लोग भी संवेदनशील होने के साथ-साथ समझदार भी होते हैं।

इसके बाद दरोगा जी ने एक मोटरसाइकिल को रोका। उसकी पिछली सीट पर बैठकर उन बाइकर्स का पीछा करने के लिये निकल लिये। उनके साथ के सिपाही इस अभियान से निर्लिप्त से वहीं सड़कपर कदमताल करते खड़े रहे।
इसी बीच एक महिला हल्ला मचाती वहां दिखी। पता चला महिला का बच्चा कोई छीनकर भाग गया था। नंगे पैर, मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठी महिला लगातार रोती हुई बता रही थी कि अभी-अभी उसका बच्चा छीनकर भाग गया।
हमको लगा कि बताओ अभी तक चेन, पर्स छिनने की सुनते थे। अब यहां बच्चे भी छीनकर भागने लगे लोग। फ़िरौती या दुश्मनी के लिये बच्चों का अपहरण भी होने लगा।
लेकिन कुछ देर बाद पता चला कि बच्चा लेकर भागने वाला व्यक्ति महिला का पति था। महिला दिल्ली की रहने वाली है। शुक्लागंज में उसकी ससुराल है। कुछ आपस का झगड़ा होगा। पति से पटती नहीं होगी। समझौते के लिये ससुराल आई थी , शुक्लागंज। दोनों साथ जा रहे थे। शुक्लागंज में महिला को धकियाकर उसके हाथ से बच्चा छीनकर उसका पति भाग गया।

किस्सा अपराधिक गतिविधि से मियां-बीबी के झगड़े की तरफ़ मुड गया। लोगों ने सहज होकर अपनी राय दी-’ आ जायेगा। कहीं जायेगा नहीं बच्चा।’ लेकिन बहदवास महिला को इस राय से चैन नहीं आया। उसकी बेकली बढती जा रही थी। पुलिस वाले उसको थाने की तरफ़ ले गये।
एक आदमी ने सामने खुले और गुलजार से दिख रहे दारू के ठेके को गरियाते हुये सारे दोष का ठीकरा उसके ऊपर फ़ोड़ दिया। पुलिस वालों ने बाकी भीड़ को भी इधर-उधर कर दिया।
लौटते समय एक झोपड़ी के सामने कुछ बच्चे अंधेरे में मोमबत्ती जलाते दिखे। मन किया ठहरकर उनकी फ़ोटो खैंच लें। लेकिन उनको डिस्टर्ब करने की हिम्मत नहीं हुई।
गंगा पुल से गुजरते हुये देखा गंगा जी अंधेरे की चादर ओढकर सब दिशाओं को गुडनाइट करके सो गयीं थीं।

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