लिबर्टी द्वीप पर स्टेच्यू आफ लिबर्टी के साथ 'लिबर्टी बाईक' भी है। 'स्टेच्यू आफ लिबर्टी' की तर्ज पर 'बाईक ऑफ लिबर्टी'।
'स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी' बनाने में जो सामान लगा उसके बचे हुये सामान से बनी यह मोटरसाईकिल अमेरिका और पूरे विश्व में स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्द है।
मोटरसाइकिल का ढांचा मूर्ति बनाने में लगे तांबे से बना, गाड़ी का पहिया स्टेच्यू आफ लिबर्टी के आकार का, कार्बुरेटर स्टेच्यू आफ लिबर्टी के टार्च की तरह। कहने का मतलब यह कि बाइक का हर हिस्सा स्वतंत्रता की मूर्ति के किसी न किसी हिस्से की प्रतिकृति। किसी न किसी हिस्से के अवशेष से बना।
गाड़ी का इंजन 125 हार्स पावर का। द विंसी कार्बुरेटर खासतौर पर इस बाइक के लिए डिजाइन किया गया है। जब गाड़ी चलती है तो कार्बुरेटर से ज्वाला उसी तरह से निकलती है जैसी 'स्टेच्यू आफ लिबर्टी' की रोशनी जलती है।
एक शानदार स्मारक बनाने में लगे सामान को प्रयोग करके बनाई गई एक शानदार चीज।
बाईक के परिचय देते हुए जो सूचनाएं वहां लगी हैं उनमें से एक में अल्बर्ट आइंस्टाइन का उद्धरण भी है :
" किसी भी महान और प्रेरणादायक चीज के निर्माण में उन लोगों का योगदान होता है जो मुक्त रहकर मेहनत कर सकते हैं।"
मतलब बड़े काम तभी होते हैं जब मन लगाकर बिना किसी दबाब के मेहनत की जाए। परतन्त्र मन से बड़े काम नहीं होते।
बाइक ऑफ लिबर्टी को देखकर चंडीगढ़ के रॉक गार्डेन की याद आई। बाइक आफ लिबर्टी के निर्माण में तो अमेरिका के बड़े संस्थान का सहयोग था। लेकिन रॉक गार्डन अपने नेकचंद जी ने अपनी वर्षों की लगन और मेहनत और जुनून से अकेले तैयार किया। कबाड़ से अद्भुत स्मारक बनाया। नेकचंद जी के जुनून को नमन।
बाइक आफ लिबर्टी और स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी पर लिखते हुए मुझे लिबर्टी के जूते याद आये। इनका भी कोई न कोई सम्बन्ध होगा इन स्मारकों से। अनायास लिबर्टी जूते के प्रति मन में इज्जत बढ़ गई। जूते की बैसे भी इज्जत होनी चाहिए। खुद ठोकर खाता है, पांवों को बचाता है। लेकिन हमको काम के लोगों की इज्जत करना हमको आता कहां
है।
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