हमारे एक दोस्त हैं। हर दम हंसते हैं। हर बात पर हंसते हैं। कुछ उनको जिंदादिल समझते हैं। बाकी कहते हैं –”बेवकूफ़ है।’ कुछ उसकी हंसी से जलते हैं। कुछ कहते हैं-’मेंटल है।’
एक दिन हमने दोस्त की हंसी का राज पूछा। यार तुम ऐसे कैसे हंस लेते हो? सुनकर दोस्त हंसने लगा। उसको हंसते देख हम भी हंस दिये। हम दोनों को हंसते देख साथ के लोग भी हंसने लगे।
हंसी बहुत संक्रामक होती है। एक से दस तक, दस से हजार-लाख तक इतनी तेज फ़ैलती है कि अफ़वाह भी क्या पहुंचेगी। हंसी-हंसी में हमारा सवाल कहीं उड़ गया।
कुछ दिन बाद हम फ़िर साथ थे। कोई बहस कर रहे थे। शायद बजट पर कोई बात हो रही थी। बजट होता ही बहस के लिये है। इससे अधिक आम आदमी बजट का क्या बिगाड़ सकता है। किसी ने बजट पर कुछ राय व्यक्त की। दोस्त हंस दिया। राय देने वाला चिढ गया । कहने लगा –’इसमें हंसने की क्या बात?’ दोस्त फ़िर से हंस दिया। रायचंद बमक गये।
असल में रायचंदजी अपने को बड़ा ज्ञानी समझते थे। जितने थे उससे डेढ गुना ज्यादा मानते थे। ज्ञानी व्यक्ति दुनिया पर हंसता है। दुनिया पर हंसने वाला ज्ञानी अक्सर अपने पर हंसी बर्दाश्त नहीं पाता। उनको लगा कि मेरा दोस्त हंसकर उनके ज्ञान की हंसी उड़ा रहा है। उनके ज्ञान की आग में मेरे मित्र की हंसी ने घी का काम किया। वे और तेज सुलग गये। सर्द मौसम सुहाना हो गया। ज्ञानी जी विदा हो गये।
ज्ञानी जी के विदा होने के बाद दोस्त से पूछा-’तुमने उनको खामखां नाराज कर दिया। उनकी बात पर क्यों हंसे। वे गलत तो नहीं थे।’
दोस्त मेरी बात पर भी हंसा। हमने बुरा नहीं माना। बुरा मानने का हक भी नहीं था। आज की दुनिया में बुरा मानने का हक केवल उसको है जिसके पास ताकत है। सामर्थ्य है। जिसके कल्ले में बूता है वही बुरा मान सकता है आजकल। दूसरे किसी को बुरा मानने का हक नहीं। कमजोर की कोई जान भी ले ले, कत्लेआम भी हो जाये, पूरा कुनबा, आबादी भूखों मर जाये लेकिन मजाल कि वह बुरा मान जाये। मानते ही किसी न किसी दफ़ा में अंदर हो जायेगा। इसने बुरा मानकर अपनी समाज विरोधी-सरकार विरोधी काम किया है। इसके बुरा मानने के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है।
बहरहाल हमने दोस्त की हंसी बर्दास्त की। फ़िर पूछा – ’तुम्हारी इस हरदम हंसी का राज का क्या है? तुम इस कदर कैसे हंसते रहते हो? हर बात हंसते रहते हो। कैसे हंस लेते हो? हमें तो डर लगता है कि कहीं पकड़कर अंदर न कर दिये जाओ। ऐसा हुआ तो हमारी हिम्मत तुम्हारी जमानत लेने की भी न होगी।’ हमने अपने सवाल में थोड़ा चिंता का छौंक भी लगा दिया।
हमारे सवाल में चिंता के तड़के ने दोस्त को भावुक कर दिया। वह हंसते हुये बोला। हंसना मेरी आदत है। इसीलिये हंसता रहता हूं। तुम भी हंसा करो। हंसी अभी टैक्स फ़्री है। जियो के सिम की तरह। जब टैक्स पर नहीं हंसी पर तब तक हंस लो। पता नहीं कब हंसी पर टैक्स लग जाये। फ़िर हमारे लिये हंसना भी मुहाल हो जाये। पता लगा सारी तन्ख्वाह हंसी पर टैक्स देते ही गुजर गयी। खाने के लिये कुछ बचा ही नहीं।
हंसी पर टैक्स की बात सुनकर हमें भी खूब हंसी आई। हमारा दोस्त बोला-’ अभी तुमको मेरी बात मजाक लग रही है। जब हंसी पर टैक्स लगेगा तब अफ़सोस करोगे कि पहले हंस लेते तो टैक्स बचता।’
हम हंसी पर टैक्स लगने के बाद दिनों की कल्पनाओं में हंसते हुये गोते लगाने। जब कभी बजट में हंसी पर टैक्स लगेगा तब टैक्स के पक्ष और विपक्ष वालों की कुछ प्रतिक्रियायें शायद इस तरह हों।
पक्ष : हमने देखा है हंसने का काम अमीर लोग, पैसे वाले ही करते हैं। बड़े-बड़े पैसे वाले, कारपोरेट, धनबली जनता की हालत पर बहुत हंसते हैं। हम उनकी इसी हंसी पर टैक्स वसूल कर जनता की भलाई के काम करेंगे। इसीलिये हमने हंसी पर टैक्स लगाने की सोची है। हंसी पर टैक्स से होने वाली आमदनी से गरीबों के लिये कल्याणकारी योजनाओं के लिये आमदनी होगी। इससे गरीबों को फ़ायदा होगा।
विपक्ष: लेकिन हंसी तो इंसान का प्राकृतिक गुण है। आप किसी इंसान की हंसी पर टैक्स कैसे लगा सकते हैं। गरीब इंसान भी अगर हंसना चाहे तो आप उस पर भी टैक्स लगाओगे? अजीब तर्क है।
पक्ष: आप किस जमाने की बात कर रहे हैं जनाब। हवा, पानी भी कभी प्राकृतिक हुआ करते थे। आज पानी का अरबों-खरबों का कारोबार है। हवा का भी कारोबार बढ रहा है। हंसी भी अब कहां प्राकृतिक रही। दुनिया भर में नकली हंसी का चलन बढ रहा है। इसलिये इस मामले में जितना जल्दी हम कानून बना लें उतना अच्छा। इस टैक्स से इतना भला होगा गरीबों का वे हमेशा गरीब रहना ही पसंद करेंगे। अमीर लोग इतना हलकान हो जायेंगे हंसी पर टैक्स से कि वे खुद गरीबी की रेखा के नीचे आने आने के अप्लीकेशन भरेंगे। सिफ़ारिश लगवायेंगे लोगों से गरीबी का प्रमाणपत्र पाने के लिये। सारे अमीर लोग अगले बजट तक गरीब हो जायेंगे। पूरे देश में सिर्फ़ गरीब ही गरीब होंगे। हम दावे से कह सकेंगे –’हमारी सरकार गरीबों की सरकार है।’ रही गरीब इंसान के हंसने की बात तो उनके लिये उनकी हैसियत के हिसाब से उनकी हंसी पर टैक्स की छूट दी जायेगी। होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस पर मनचाहा हंसना अलाउड होगा। इससे ज्यादा उनको हंसने की फ़ुरसत ही कहां होगी?
विपक्ष: जब सारे लोग गरीब हो जायेंगे तो चुनाव के लिये चन्दा कौन देगा? सरकारें कैसे बनेंगी। देश कैसे चलेगा?
पक्ष: चुनाव के चन्दे के लिये सरकार व्यवस्था रखेगी। जैसे लोकतंत्र में सब लोग बराबर होते हैं लेकिन कुछ लोग ज्यादा बराबर होते हैं वैसे ही जब सब लोग गरीब हो जायेंगे तो कुछ लोग इस सुविधा का लाभ उठाकर ज्यादा गरीब हो जायेंगे। हम कुछ गरीब लोगों को चिन्हित करके उनसे चन्दा लेकर चुनाव लड़ेंगे। सरकार बनायेंगे। देश चलायेंगे। आप भी ऐसे ही करियेगा। आप जीत जायेंगे तो आप चलाइयेगा सरकार और देश।
विपक्ष: लेकिन ऐसा करना क्या कारपोरेट और धन्नासेठों के साथ विश्वासघात करना नहीं होगा जिनके चन्दे से चुनाव लड़कर आपने सरकार बनाई? आप ऐसा करेंगे तो फ़िर हम लोगों को चुनाव लड़ने के लिये चन्दा कौन देगा? आप अपने साथ-साथ हमारी लुटिया भी डुबाओगे।
पक्ष: अरे हम जो भी करेंगे अपने चंदा देने वालों से पूछकर ही करेंगे। उनकी सहमति और अनुमति के बिना हम कोई कानून नहीं बनाते। सच कहा जाये तो हम उनके इशारे पर ही काम करते हैं। वे न चाहें तो हम दो मिनट में पैदल हो जायें। यह योजना भी उनके ही कहने पर लाई जा रही है।
एक बार हंसी पर टैक्स की चर्चा शुरु हुई फ़िर तो न जाने कितने पतंगे उड़ने लगी प्रतिक्रियाओं के आसमान में।
सबसे पहली बहस इस बात पर हुई कि हंसी पर जीएसटी लगेगा कि नहीं? लगेगा तो कित्ता? दोस्त का मानना था कि कलेक्शन बढाने के लिये हंसी के टैक्स पर जीएसटी शून्य होना चाहिये।
दूसरा बोला-’हंसी कोई सैनिटरी नेपकिन है क्या जो इस पर जीएसटी जीरो हो?’
दोस्त बोला-’ तब क्या ? हंसी इंसान के लिये सैनिटरी नैपकिन ही तो है। मन की सारी गंदगी निकालकर बाहर करती है हंसी।’
सैनिटरी नैपकिन वाली बात से एक सुझाव आया- ’महीने में कम से कम तीन दिन हंसी टैक्स फ़्री होनी चाहिये। इससे लैंगिक समानता को बढावा मिलेगा। ’
महीने में तीन दिन टैक्स फ़्री का प्रस्ताव पारित ही होने वाला था कि किसी ने याद दिलाया कि अबे अब तो टैक्स का मतलब ही जीएसटी है। इसलिये हंसी पर जो टैक्स लगेगा वह खुद हंसी पर जीएसटी होगी। अब जीएसटी पर जीएसटी थोड़ी लगेगा। कोई छूट नहीं मिलेगी हंसी के टैक्स पर।
हंसी के टैक्स पर छूट न मिलने से हम दुखी हो गये। दुखी होने के बाद हम सब एक हो गये। सब मिलकर कल्पना करने लगे कि हंसी पर टैक्स लगने के बाद के सीन क्या हो सकते हैं।
बच्चा के पैदा होते ही उसकी हंसी का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। स्कूल जाने तक उसकी हंसी टैक्स फ़्री होगी। स्कूल में ट्यूशन फ़ीस के साथ उसकी हंसने की फ़ीस भी जुड़ेगी। हरेक के मुंह में हंसी का काउंटर लगा होगा। दिन में कुछ बार हंसना टैक्स फ़्री होगा। उसके बाद हंसने पर टैक्स का मीटर चालू होगा। चुनाव में लोग बिजली, पानी मुफ़्त देने की घोषणा की तर्ज पर हंसी पर टैक्स में छूट की घोषणा करेंगे-’हमारी सरकार आने पर हम महीने में सौ बार मुफ़्त हंसने की सुविधा देंगे।’
सरकारी कर्मचारियों के हंसने के लिये अलग नियमावलियां होंगी। पद के अनुसार हंसने का कोटा निर्धारित होगा।
ठहाके का अधिकार केवल वरिष्ठ अधिकारियों के पास सुरक्षित होगा। दफ़्तर में हंसने के लिये पहले से प्रस्ताव पास कराना होगा। बिना अनुमति हंसने पर सजा का प्रावधान होगा। कारण बताओ नोटिस जारी होगा।
सेवापंजिका में प्रतिकूल प्रवृष्टि होगी। लगातार हंसते रहने वाले को जबरियन रिटायर कर दिया जायेगा। कामकाज में हंसी बर्दाश्त नहीं होगी।
अलग-अलग तरह की हंसी पर अलग-अलग टैक्स होंगे। हंसने पर अलग, खिलखिलाने पर अलग। कंटीली, नखरीली, सजीली हंसी का टैक्स स्लैब एक होगा। बच्चे और बुजुर्गों को हंसी में टैक्स पर छूट होगी। पोपले मुंह वाले लोगों की हंसी पर छूट होगी। स्व्च्छता अभियान को बढावा देने के लिये साफ़ दांत वाले लोगों को टैक्स पर डिस्काउंट मिलेगा। ठहाके पर सबसे ज्यादा टैक्स होगा। टैक्स केवल हंसी पर लगेगा। मुस्कान टैक्स फ़्री होगी।
पोपले मुंह पर टैक्स में छूट पाने के लिये तमाम नौजवान लोग अपने दांत तुड़वा लेंगे। मुस्कान टैक्स फ़्री होने की सुविधा का लाभ उठाने के लिये लोग अपने हर हंसी को मुस्कान बतायेंगे। बाजार में हंसी और मुस्कान के विशेषज्ञ बढ जायेंगे। अदालतों में अपने क्लाइंट की हंसी को मुस्कान बताकर अरबों का टैक्स बचायेंगे। सरकार को चूना लगायेंगे।
हंसी पर टैक्स लगने पर टैक्स चोरी भी होगी। लोग टैक्स बचाने के लिये सबके सामने भले न हंसे लेकिन जहां मौका मिला , अकेले में हंस लेंगे। टैक्स बचा लेंगे। ऐसी टैक्स चोरी को बचाने के लिये जगह-जगह सीसीटीवी लगाये जायेंगे। लोगों के घरों तक में सीसीटीवी लगने के प्रस्ताव पास आयेंगे। लोग निजता के अधिकार के हनन की बात कहते हुये अदालत जायेंगे। टैक्स लगाने वालों की दलील होगी-’ हम निजता देखें कि टैक्स कलेक्शन। इनके भले के लिये ही तो यह इस्कीम चलाई गयी है। इसमें इनका ही भला है। हंसने पर कोई रोक नहीं लेकिन टैक्स तो देना पड़ेगा हंसी पर।’
अदालत मुस्कराते हुये टैक्स लगाने वालों की समझ पर तरस खायेगी। घरों में सीसीटीवी को निजता का हनन बतायेगी।
टैक्स लगाने वाले अदालत को मुस्कराता हुआ देखकर डबल मुस्करायेंगे। घरों में सीसीटीवी के प्रस्ताव को वापस लेकर हंसी पर टैक्स का दायरा मुस्कान तक बढायेंगे। जितना नुकसान हुआ उससे दुगुना कमायेंगे।
दोस्त के साथ बात करते हुये हंसी पर टैक्स लगने के बाद की न जाने कितनी कल्पनायें हंसते हुये कर डालीं। हमको हंसता देखकर दोस्त ने कहा- ’न जाने कब यह सच साबित हो जाये। हंसी पर टैक्स लग जाये। इसीलिये मैं हंसता रहता हूं। तुम भी हंस लो।’
दोस्त की खामख्याली पर मुझे बड़ी जोर की हंसी आई। हमको हंसते देख दोस्त भी हंसने लगा। हमारे साथ खड़े लोग हमको बेमतलब हंसते देख हंसने लगे।
आपको भी हमारी बात पर हंसी आ रही होगी। हंस लीजिए। अभी हंसने पर कोई खतरा नहीं है। अभी हंसी टैक्स फ़्री है।
(कादम्बिनी के अप्रैल अंक में प्रकाशित)
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