Saturday, April 04, 2020

आयुध निर्माणियां - जहां चुनौतियां भी दुम दबाकर आती हैं


कवर आल

 'घर में मन नहीं लग रहा !'

ये उद्गार लॉक डाउन के चलते घर में सीमित कर दिए गए किसी इंसान के नहीं है। यह कथन हमारी निर्माणी के एक अधिकारी के हैं जो अपने तमाम साथियों के साथ कोरोना से लड़ने के लिए यथासम्भव सहयोग देने की कोशिश में लगे हैं।
आज कोरोना की समस्या से पूरा विश्व जूझ रहा है। पूरे देश में हाल बेहाल हैं। अभी बाकी देशों के मुकाबले अपने यहां आफत कम दिखती है लेकिन देश की जनसंख्या के रहन-सहन और सुविधाओं के हिसाब से देखा जाए तो अगर बीमारी बढ़ी तो महामारी फैल जाएगी।
देश में कोरोना से बचाव के साधन बहुत सीमित हैं। मास्क नहीं हैं पर्याप्त, डॉक्टर के लिए कवरआल कम हैं, बेड शीट चद्दर की भी किल्लत हो सकती है। समस्या भयावह होने की स्थिति में वेंटिलेटर कम होंगे।
देश के तमाम संस्थान ऐसे में आगे आये हैं। हमारा संस्थान में उनमें से एक है।
हम फौज की जरूरतों के हिसाब से सामान बनाते हैं। इनमें ड्रेस से लेकर तोप, बंदूक, ट्रक, टैंक तक हजारों तरह के उत्पाद शामिल हैं। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई दूसरा संस्थान होगा तो इतनीं तरह की चीजें बनाता होगा।
कोरोना समस्या से निपटने में देश की आवश्यकताएं पूरा करने के लिए हमारा संस्थान भी अपनी पूरी क्षमता से जुटा हुआ है। जरूरत का जो सामान हम बनाते थे उसका उत्पादन बढ़ा दिया। जो नहीं बनाते थे उसके उत्पादन के लिए प्रयास शुरू हो गए।
इस काम में घण्टे, मिनट, दिन, रात सब गड्ड-मड्ड हो गए हैं। पता ही नहीं चलता कि दिन कौन है, तारीख क्या है। काम मगनमन हैं ऐसे कि कोई अचानक नाम भी पूछ लें तो अकबका जाएं कि हमारा नाम क्या है।काम के आगे कुछ सूझ न रहा।
हम लोग तमाम तरह के आइटम बना रहे। सैनिटाइजर कई फैक्ट्री बना रही। वेंटिलेटर , टेंट पर काम चल रहा। कम्बल तो बनाते ही हैं, जित्ते चाहिए बिन देंगे। चुनौती नए सामान बनाने की है। बन रहे हैं।
हम कपड़ा ग्रुप की निर्माणियां इस हल्ले में फीनिक्स की तरह फिर से उठ खड़े हुए हैं। आमतौर पर निम्न तकनीक की निर्माणियां मानी जाने वाली फैक्ट्रियों से सबसे बड़ी जरूरतें पूरी होनीं हैं। कवर आल और मास्क तथा दीगर सामान बन रहे हैं यहां।
हम लोग भी कई तरह के सामान बना रहे। कवर आल, मास्क, बेड रोल मुख्य हैं। निर्माणी बन्द है। कोई हाजिरी नहीं हो रही। लेकिन काम करने वाले अपने आप हाजिर हो रहे हैं। काम कर रहे हैं। अभी कम लोग आ रहे हैं। लेकिन जैसे ही सामान आ जायेगा सब आ जाएंगे घर से, जुट जाएंगे काम पर।
जो लोग काम में जुटे हैं उनको किसी के आदेश का इंतजार नहीं। खुद आदेश लेकर काम कर रहे हैं। लालफीताशाही जैसी भावना शायद कोरोना ग्रस्त होकर निर्वासन में चली गई है।
लाकडाउन के हालत के बावजूद लोग दिल्ली, ग्वालियर , कानपुर लोग ऐसे जा रहे हैं जैसे घर के बाहर सामान लेने निकले हों।
सवाल उठा -'दिल्ली की फर्म से सामान लेने कौन जाएगा ? ' जो दो हाथ उठे उनमें एक हाथ राधारमण शर्मा का था जो उसी दिन लेह से लौटे थे, उनके साथी अबुल हसन तो पहले से तैयार थे। ऐसे ही अनुराग यादव और ऋषि बाबू अपनी गाड़ी से ग्वालियर हो आये दो बार। फायर ब्रिगेड के विनोद और ए के श्रीवास्तव कानपुर से मशीनें उठा लाये। रजनीश मिश्र और नरेंद्र दिल्ली से रात बारह के बाद लौटे।
कहीं कोई अलसैट भी हुई तो उसकी भी ऐसी-तैसी हो रही। एक दिन सीम सीलिंग इक्विपमेंट आया। सीम सिली गई। लोग चले गए घर कि इसकी टेस्टिंग कल होगी। हमको सीम सिलाई की सूचना रात को मिली । हमने कहा -टेस्ट हुई ? जबाब मिला -'कल सुबह हो जायेगी।' हमने हल्की मायूसी से कहा -'क्या यार, आज करना था न।'
हमारे कहने की खबर लैब के लोगों तक पहुंच गई। लोग खुद ब खुद घर आये। लैब खुली। टेस्ट हुआ। सफल रहा। उसका वीडियो बना। सबको भेजकर सफलता के प्रति आश्वस्त होकर लौटे।
कुछ ही देर में लोग अपने इस मुकाबले में उन फैक्टियों का सक्रिय योगदान भी है जो सीधे उत्पादन में नहीं जुटी हैं । वे तकनीकी सहयोग दे रहीं हैं। कवर आल का कपड़ा टेस्ट करने की मशीन नहीं थी हमारे इधर। टेस्ट करने के लिए भेजने से पहले यह सोचा गया खुद टेस्ट कर कर लें। उसके लिए इक्विपमेंट कैसे बने ? जुट गई रात को ही ओएफसी की टीम।
बकौल ओएफसी के महाप्रबन्धक आदित्यानन्द श्रीवास्तव -' यार चेयरमैन साहब बोले टेस्टिंग मशीन बनाने को टी हम भिड़ गए अपनी टीम को लेकर। रात भर जुटे रहे। और सुबह कौवा बोलने के पहले मशीन तैयार हो गयी।'
अगले ही दिन दूसरी भी तैयार हो गयी। और पहुंच भी गई हमारे इधर। देखा देखी एस ए एफ ने भी बना ली एक और मशीन। करो कित्ते टेस्ट करने है।
हाल यह कि पूरा संस्थान एक साथ उठ खड़ा हुआ है। वो कहते हैं न - 'ले अंगड़ाई उठ हिले धरा, करके विराट स्वर में निनाद।' वैसे ही हाल हमारे संस्थान के हैं आजकल। कोई भी चुनौती आती भी है तो दुम दबाए हुए ही आती है। उसको पता है कि भागना ही है उसको तो पहले ही दुम दबाए रहो।
'विनाशाय च दुष्कृताम' हमारे संस्थान का ध्येयवाक्य हैं। हमने कोरोना के विनाश में सहयोग कर रहे हैं।
सीता की खोज में निकले हनुमान को अपनी ताकत पर शंका थी। जामवंत ने हनुमान को उनकी ताकत का एहसास कराया और वे लंका गए। हमारे यहां भी हाल यही हैं आजकल। हमारे यहां हर इंसान आजकल हनुमान और जामवंत का कम्बो पैक बना हुआ है। खुद हनुमान बना है, दूसरे के लिए जामवंत बना है। ऐसे में दुष्ट का विनाश कैसे नहीं होगा।
इस समय हम लोग अद्भुत उत्साह से गनगनाये हुए हैं। लगता है क्या न कर डालें। हर क्षण नया आइडिया बिना परमिशन लिए दिमाग में घुस जाता है। उस पर अमल भी हो जाता है। ऐसे ही कल हमारे साथियों ने डिस्पोजेबल बेड रोल बना के दिखाया। कीमत 50 /- एक चादर, एक तकिया कवर और दो नैपकिन।
हमने कहा -'गज्जब हो यार तुम लोग। रोज कोई न कोई नया आईटम लांच कर देते हो।'
'क्या करें सर , आजकल घर में मन ही नहीं लग रहा। हर समय कुछ न कुछ करने का आइडिया आता रहता है ' - साथी सुमित पटले का यह जबाब जब वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान जब अपने चेयरमैन हरिमोहन जी को बताया तो उन्होंने ताली बजाकर हम लोगों के जज्बे की तारीफ की। उनके चेहरे पर परिवार के उस मुखिया की खुशी थी जो अपने बच्चों को चुनौतियों से जूझते हुए और उनको परास्त करते हुये देखने पर होती है।
हमारे संगठन के मुखिया हरिमोहन जी Hari Mohan ji अपने साथी अधिकारियों के साथ लगातार नेतृत्व कर रहे हैं। अदम्य उत्साह के साथ रोज घण्टो वीडियो कांफ्रेंसिंग करते हुए हर काम की प्रगति का जायजा ले रहे हैं। दिन में कई बार क्लास लगती है सर की। हर तरह का सहयोग , सलाह, सुझाव, निर्देशन । अनेक सम्पर्क सूत्र बात ख़त्म होते हमारे मोबाइल में हाजिर हो जाते हैं। खुद अनथक मेहनत करते हुए हम लोगों को भी अपनी ऊर्जा का एहसास कराते रहते हैं।
ऐसे समय में जब तमाम तीसमार खाँ माने जाने वाले निजी संस्थान अपने अपने खोल में दुबक गए हैं हम सरकारी लोग काम कर रहे हैं। महीनों तक न सरकने वाली फाइलों पर फैसले व्हाट्सऐप पर हो रहे हैं। तमाम नियमों के बंधन ढीले हो गए हैं। लेखा विभाग के लोग 24 घण्टे उपलब्ध हैं।
काम से घिरे हुए हैं। काम में मजा आ रहा है।
हर समय दिल काम में ही लगा है। जा रहे हैं अब फिर काम पर। घर में मन नहीं लग रहा है। 🙂

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