Monday, August 24, 2020

परसाई के पंच-18

 

1. गरीब आदमी के घर में कला और संस्कृति की बातें नहीं होतीं। भूखे की कला-संस्कृति और दर्शन पेट के बाहर नहीं होते।
2. आठ हजार वर्षों की संस्कृति के बोझ से दबे इन कुछ लोगों के घरों का यही हाल है कि जो त्याज्य है, अपवित्र है, हानिकारक है, वही अतिथि के लिये है।
3. बाजार में पूजा सड़ी, गली, छोटी और सस्ती सुपारी, खाने की सुपारी से जो अलग मिलती है, उसके पीछे यही फ़िलासफ़ी तो आधार रूप है कि सड़ा-गला जो है वह धर्म और परमार्थ के लिये है। पूजा की सुपारी वह सड़ी सुपारी है, जो खाने के काम न आ सके।
4. जीवित अवस्था में तुम जिसकी ओर आंख उठाकर नहीं देखते उसकी सड़ी लाश के पीछे जुलूस बनाकर चलते हो। मरते वक्त तक जिसे तुमने चुल्लू-भर पानी नहीं दिया, उसके हाड़ गंगा जी ले जाते हो। अरे, तुम जीवन का तिरस्कार और मरण का सत्कार करते हो।
5. जिन्दगी भर तिरस्कार का स्वाद लेते-लेते सहानुभूति मुझे उसी प्रकार अरुचिकर हो गयी थी जिस प्रकार शहर में रहने वाले को देहात का शुद्ध घी।
6. भगवान ने क्रोध से कहा,”पाप-पुण्य के झमेले में पड़ने वाले कायर ! वह दीवाल क्या मेरी बनायी है? तमाम दीवालें आदमियों ने खड़ी की हैं और तू उन्हें तोड़ने में पाप-पुण्य देखता है? मूर्ख ! तेरा कुत्ता तुझसे ज्यादा समझदार है। वह घुस गया, खाया और डण्डे की मार से मरकर यहां आ गया। उसमें मनुष्यत्व है, तुझमें पशुत्व भी नहीं। मैंने तुम्हें बुद्धि दी है; हाथ-पैर दिये हैं, कार्य-शक्ति दी है- और तू अकर्मण्य, बुजदिल कीड़े सा मर गया।
7. साले, मूर्ख ही शोभा देते हैं।
8. धन की जात एक होती है।
9. लगी-लगायी शादियां वे तुड़वाते थे; लड़कियों की कलंक-कथा उनके मुख से आरम्भ होकर प्रचार पाती थी। बदनामी का कारखाना उन्हीं के घर खुला था, जहां रोज माल बनता था और मुफ़्त बंटता था- लोकहितार्थ; भाई-भाई में अनबन वे ही कराते थे। ये सब सामाजिक कार्य उनके द्वारा होते थे। पवित्र आदमी थे।
10. अनेक भारतीय कुलबधुएं पति के हाथ से पिटना अपना अधिकार और गृहस्थ जीवन का जरूरी दस्तूर मानती हैं। अगर उन्हें यह अधिकार न मिले, तो वे बुरा मानती हैं।
11. जब कोई कुलवधू पिटती है, तब मुहल्ले की स्त्रियों को ऐसा लगता है जैसे कोई त्योहार मनाया जा रहा है।

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