1. संन्यास लेनेवाला राजनीतिक उस साधु की तरह है जो सुबह से ईश्वर-चिंतन के बहाने भोजन-चिन्तन करता है, दोपहर को माल खाकर शाम तक ईश्वर-चिन्तन के बहाने नारी चिन्तन करता है और अंधेरा होने पर किसी भक्तिन के घर में घुस जाता है।
2. किसी खास कम्पनी की सिगरेट निकालो तो उसे जलाने के लिये कम्पनी एक सुन्दरी भी साथ देती है।
3. इस समय मेरे सामने जो विज्ञापन है, उसमें एक युवक एक खास मिल के कपड़े का सूट पहने खड़ा है। उसके चेहरे पर निहायत मूर्खतापूर्ण हंसी है। एक लड़की दायें और एक बायें बाजू से उसे दांत निकालकर, मुग्ध होकर देख रही है। एक लड़की पीछे से झांक रही है।
4. बुद्धि, विद्या, चरित्र का अवमूल्यन हो गया है। इनसे कोई मतलब नहीं। वे विज्ञापन में दिखाते हैं –मूर्खतापूर्ण सौंदर्य या सौंदर्यमयी मूर्खता। समझदार लड़कियां अच्छे कपड़ों से सजी मूर्खता पर मिटती हैं।
5. पढी-लिखी, गुणवती, सुन्दर लड़की को लगता है कि यह सब बेकार है। मेरा बाप अगर बेईमान होता तो मेरे लिये अच्छा पति तो खरीद देता।
6. अगर बैल सूट पहनने लगे तो वह मनुष्य से ज्यादा इज्जतदार हो जायेगा, क्योंकि वह उपभोक्ता हो जायेगा।
7. यदि पृथ्वी पर भेड़ियों की आबादी बढ जाये और वे सूट पहनने लगें तो उत्पादक अपने वैज्ञानिकों से यह घोषणा करा देंगे-’प्रकृति ने भेड़िये को मनुष्य से ऊंची नस्ल का बनाया है। भेड़िया ही वह महामानव या अतिमानव है जिसकी कल्पना मनीषियों ने की है, सबसे ऊपर भेड़िया सत्य है।
8. आज तो युद्ध सामग्री भी उपभोक्ता सामान हो गयी है। इसकी खपत के लिये जरूरी अगर लड़ाई है तो वह उत्पादक के लिये नैतिक है। लड़ाई से हथियारों के खरीदार बढेंगे।
9. बेईमान आदमी पैदा करने के लिये खाद दिया जा रहा है और ईमानदार की फ़सल बिना पानी सूख रही है।
10. अब तो जो आदमी भ्रष्टाचार की बात करता है, वह पिछड़ा हुआ है।
11. इस देश के लोगों को जनमेजय की तरह नाग-यज्ञ करना चाहिये। बहुत नाग हो गये हैं। इन्हें यज्ञ वेदी में झोंकना चाहिये ! स्वाहा ! स्वाहा ! पर नागों के रक्षक कई इन्द्र भी हैं।
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