Monday, September 21, 2020

परसाई के पंच-43

 


1. कुछ राष्ट्रों और व्यक्तियों का बचपन कभी नहीं जाता। बूढे आदमियों को भी मैंने कुत्ते की पूंछ में पटाखे की लड़ी बांधकर आग लगाते देखा है।
2. पुस्तक लिखनेवाले से पुस्तक बेचनेवाला बड़ा होता है। कथा लिखनेवाले से कथावाचक बड़ा होता है। सृष्टि निर्माता से सृष्टि लूटने वाला बड़ा होता है।
3. मैं कथा लिखता हूं और वह चौराहे पर कथावाचक बांचता है। वह कथा तुलसीदास ने लिखी थी। कथावाचक की थाली भर जाती है; ऊपर से भेंट मिलती है, सो अलग। मैं, एक कथा लेखक, सड़क पर खड़ा टुकुर-टुकुर देखा करता हूं।
4. पाठ्य्पुस्तक से कुंजी ज्यादा बिकती है।
5. मामूली देवता तो असंख्य थे, पर लक्ष्मी उन्हें कहां मिली? वह सीधे विष्णु के पास गयी और गले लग गयी। दूसरे देवताओं ने भी कोई ’प्रोटेस्ट’ नहीं किया। करते भी कैसे? विष्णु बहुत बड़े थे –शक्ति में, धन में, रूप में, चातुर्य में। स्त्री बनकर जिसने अपने दोस्त की शंकर को ठग लिया, उसकी चतुराई कोई कमी नहीं थी। लक्ष्मी सीधी ’मोनोपोली’ में जाकर मिल गयी।
6. मोनोपोली छोटे को पनपने नहीं देती। एक गरीब मुनि नारद को शादी के लिये सुन्दर चेहरे की जरूरत पड़ी थी, सो विष्णु ने उसे बन्दर का चेहरा दे दिया। फ़िर खुद जाकर स्वयंवर में बैठ गये और जिस लड़की पर उस बेचारे का जी आ गया था, उससे अपने गले में वरमाला डलवा ली। कहते हैं –नारद, वह तुम्हारा मोह था। और हुजूर आपका?
7. लक्ष्मी का सारा काम फ़ूहड़ है। सवारी से श्रंगार तक। तस्वीर में देखो –फ़ूल पर खड़ी हैं। अरे, फ़ूल जैसी खूबसूरत,कोमल चीज क्या खड़े होने के लिये है? सौन्दर्य-बोध बिल्कुल नहीं है लक्ष्मी में। उसे अगर सरस्वती की वीणा मिल जाये, तो उसके तार तोड़कर उनसे उल्लू को बांधने लगे। सम्पन्न फ़ूहड़ता की तरफ़ सुरुचि आखिर कैसे आकर्षित हो।
8. वे और होते हैं जिनके देवता जल्दी-जल्दी बदलते हैं। वे राम को भी प्रणाम कर लेते हैं और रावण को भी। वे दिन में हंस की चोंच सहलाते हैं और रात को उल्लू से गपशप करते हैं।
9. छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो पुतला ही आगे बढाना चाहिये।
10. कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं; वे आदतन, प्रकृति के वसीभूत झूठ बोलते हैं। उनके मुख से निष्प्रयास, निष्प्रयोजन झूठ ही निकलता है।
11. भेद तो रात्रि के अन्धकार में ही मिटता है; दिन के उजाले में भेद स्पष्ट हो जाते हैं। निन्दा का ऐसा ही भेदनाशक अंधेरा होता है।

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