Tuesday, September 22, 2020

परसाई के पंच-44

 1. दो-चार निन्दकों को एक जगह बैठकर निन्दा में निमग्न देखिये और तुलना कीजिये दो-चार ईश्वर भक्तों से, जो रामधुन लगा रहे हैं। निन्दकों की सी एकाग्रता , परस्पर आत्मीयता , निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है।

2. कुछ मिशनरी’ निन्दक मैंने देखे हैं। उनका किसी से बैर नहीं, द्वेष नहीं। वे किसी का बुरा नहीं सोचते। पर चौबीसों घण्टे वे निन्दा-कर्म में बहुत पवित्र भाव से लगे रहते हैं। उनकी नितान्त निर्लिप्तता, निष्पक्षता इसी से मालूम होती है कि वे प्रसंग आने पर अपने बाप की पगड़ी भी उसी आनन्द से उछालते हैं , जिस आनन्द से अन्य लोग दुश्मन की। निन्दा इनके लिये ’टॉनिक’ होती हैं।
3. ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है। लेकिन इसमें वह मजा नहीं जो मिशनरी भाव से निन्दा करने में आता है। इस प्रकार का निन्दक बड़ा दुखी होता है, ईर्ष्या-द्वेष से चौबीसों घण्टे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शान्ति का अनुभव करता है।
4. ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करने वाले को कोई दण्ड देने की जरूरत नहीं है। वह निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है। आप चैन से सोइये और वह जलन के कारण सो नहीं पाता।
5. निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहं की इससे तुष्टि होती है। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है।
6. निन्दा कुछ लोगों की पूंजी होती है। बड़ा लम्बा-चौड़ा व्यापार फ़ैलाते हैं वे इस पूंजी से। कई लोगों की ’रेस्पेक्टिबिलिटी’ (प्रतिष्ठा) ही दूसरों की कलंक कथाओं के पारायण पर आधारित होती है।
7. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हममें जो करने की क्षमता नहीं होती है, वह यदि कोई करता है तो हमारे पिलपिले अहं को धक्का लगता है, हममें हीनता और ग्लानि आती है। तब हम उसकी निन्दा करके अपने को अच्छा समझकर तुष्ट होते हैं।
8. लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाये। गन्दे से गन्दे आदमी को फ़ोटो भी खूशबू देती है।
9. दम्भ हर हालत में बुरा ही होता है , पर जब यह विनय के माध्यम से प्रकट हो, तब तो बहुत कटु हो जाता है।
10. विनय के रेशमी पर्दे में छिपा अहं का कांटा बड़ा घृणित होता है, खतरनाक भी।
11. विनय की मखमली म्यान के भीतर हम दम्भ की प्रखर तलवार रखे रहते हैं।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10220784017523742

No comments:

Post a Comment