Thursday, February 18, 2021

इतिहास को तोड़ा नहीं जा सकता केवल समझा जा सकता है

 हंगरी में मैंने योरोपीय ज्ञान, उदारता , दक्षता और प्रोफ़ेशनलिज्म को देखा और जाना जिसकी धाक पूरी दुनिया में जमी हुई है। हंगेरियन हालांकि अपने को पूरा योरोपियन नहीं मानते पर फ़िर भी जर्मनी के बहुत निकट रहने के कारण वे पूरी तरह योरोपियन हो गये है। कुछ रोचक प्रसंग हैं जिनके माध्यम से हंगरी के समाज को थोड़ा बहुत समझा जा सकता है। सन 1988-89 में जब पूर्वी और केन्द्रीय योरोप रूस के प्रभाव और समाजवादी सत्ता से बाहर निकला तो बहुतेरे देशों के शहरों में जो कम्युनिस्ट समय के नेताओं और विचारकों की मूर्तियां आदि लगी थीं उन्हें तोड़ दिया गया था। लेकिन हंगरी में ऐसा नहीं किया गया। हंगेरियन लोगों ने शहरों के केन्द्रों या अन्य स्थानों पर लगी कम्युनिस्ट युग की मूर्तियों को उखाड़ा और बुदापैश्त के बाहर एक मूर्ति पार्क बनाकर उन सब मूर्तियों को वहां लगा दिया। इसी तरह बुदापैश्त के पुराने के पुराने गिरजाघर की पुताई करने के सिलसिले में जब पिछली पुताई की परतें साफ़ की जा रही थी तो अचानक गिरजाघर के मुख्य भाग की दीवार पर कुरान की आयतें लिखी मिलीं। तुर्की ने हंगरी पर लगभग 200 साल शासन किया था और गिरजाघरों को मस्जिदें बना दिया था। तुर्की का शासन खत्म होने के बाद मस्जिदें पुन: गिरिजाघर बन गई थीं। इस गिरिजाघर में भी कभी मस्जिद थी। इसी कारण कुरान की आयतें लिखीं मिल गईं थी। गिरिजाघर में लिखी, कुरान की आयतों को मिटाया नहीं गया बल्कि वह जगह उसी तरह छोड़ दी गई।

हंगेरियन मानते हैं कि इतिहास को तोड़ा नहीं जा सकता केवल समझा जा सकता है।
असगर वजाहत Asghar Wajahat के लेख शहर फ़िर शहर है’ से

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10221788046223832

No comments:

Post a Comment