अरुण यह मधुमय देश हमारा
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कल साइकिलिंग लिए अपन निकल लिये समय पर। साथी इन्तजार कर रहे थे। 'उद्घाटनिया फोटोबाजी' के बाद सब निकल लिए।
सड़क ऊबड़खाबड़ मिली शुरू में। साइकिल का मूड कुछ उखड़ा-उखड़ा रहा। कुछ दूर बाद जाकर सड़क शरीफ हो गयी। साइकिल भी चहकते हुए चलने लगी। हर इंसान की तरह साइकिल भी अच्छी सोहबत चाहती है।
साइकिलिंग क्लब के सदस्यों की साइकिलें अलग-अलग तरह की हैं। कुछ लोगों के पास गियर वाली साईकिलें हैं। शायद हल्की चलती हों। लेकिन बड़े कद वालों के लिए छुटकी वाली साईकिलें कुछ अटपटी लगती हैं। गियर होने के चलते जल्दी-जल्दी पैडल मारते हैं लेकिन साइकिल चलती उतनी ही स्पीड से हैं। झुके-झुके साइकिल चलाना भी कुछ-कुछ 'सरेंडर मुद्रा' लगती है। शायद रेसिंग के लिए ठीक हो। लेकिन ज्यादा दूर तक चलने में मजेदार नहीं लगती। अपन की बिना गियर वाली साइकिल इस मामले में बढ़िया लगती। सीधे बैठकर चलाना आरामदायक है।
गांव, सड़कें सब ऊंघती हुई लगीं। अलसाई सी। चेहरे से सूरज भाई के लिए शिकायती भाव -'डिस्टर्ब कर दिया सुबह-सुबह।'
जिधर से गुजरते उधर लोग सीधे होकर हमको दूर से, देर तक, दूर तक देखते। एक जगह से गुजरते हुए किसी को कहते सुना -'साइकिल रैली निकल रही है।'
खेतों में फसलें खड़ी थीं। पौधे एकदम सावधान, स्वाभिमानी मुद्रा में खड़े थे। मानो सूरज भाई को सलामी दे रहे हों। 'गार्ड ऑफ ऑनर' जैसा कुछ। मजाल कोई हवा उनको हिला जाए। क्या पता सूरज भाई के सम्मान में राष्टगान जैसा कुछ बज रहा हो। लेकिन पौधों का राष्ट कहां होता है। जब राष्ट्र नहीं तो राष्ट्रगान कैसा ?उनका तो 'फ़सलगान' होता होगा। 'फ़सलगान' या फिर 'खेतगान'। उनकी अपनी भाषा होगी। जो भी हो उसके भाव शायद जयशंकर प्रसाद जी की कविता जैसे होंगे कुछ-कुछ :
'अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।'
एक खेत में बगुले, जोड़ों में ,खड़े थे। शायद जुते हुए खेत में पिकनिक मनाने आये होंगे। अलग-अलग अंदाज में पोज बनाते हुए, पंख फड़फड़ाते हुए बगुले खुश-खुश दीख रहे थे। शायद सेल्फी वगैरह भी ले रहे हों। कहीं अपने सोशल मीडिया में अपलोड करने के लिए वीडियो भी बना रहे हों। लेकिन कोई बगुला मास्क नहीं लगाए था। वे भी हम आदमियों की तरह लापरवाह हो रहे हैं । कोरोना की किसी को चिंता नहीं।
कोरोना इधर फिर उछलकर आ गया है। तेजी से बढ़ रहा है। सम्भलकर रहें। दूरी बनाये, मास्क लगाएं। खुद बचें, अगले को भी बचाएं।
एक गांव के नुक्कड़ पर एक गुमटी पर मोबाइल सिम और उससे सम्बंधित सामान बिक रहा था। मेमोरी डाउनलोड होती है लिखा था। मेमोरी डाउनलोड किसी मोबाइल से करने की बात होगी। क्या पता कल को इंसानों की मेमोरी भी डाउनलोड होने लगे। एक इंसान की मेमोरी डाउनलोड करके रख लो फिर कोई चिंता नहीं कि भूल जाएंगे कुछ। अगर ऐसा होने लगेगा तो उसके नियम कायदे भी बनेंगे।
दफ्तर की मेमोरी अलग होगी, घर की अलग। दोस्तों की अलग, रिश्तेदारों की अलग। इंटरव्यू के लिए इंसानो की मेमोरी चेक होगी। जिसकी मेमोरी ठीक पाई गई उसके चुनाव होंगे। शादियां ' कुंडली मैचिंग' के बजाए 'मेमोरी मैचिंग' से होंने लगें। गठबंधन की जगह 'मेमोरी मर्जर' होने लगे। पंडितों की जगह प्रोग्रामर ले लेंगे।
चुनावों के समय लोग दल बदल की जगह 'मेमोरीबदल' करेंगे। किसी माफिया की मेमोरी डाउनलोड करके साधु सन्यासी की मेमोरी में मिला देंगे और वो चुनाव जीत कर शपथ ग्रहण करते समय भाषण देते हुए कहने लगे -'हम अपराधियो को पूरा संरक्षण देंगे। अपराध के लिए अवसर उपलब्ध कराएंगे।'
इस पर साधु की मेमोरी शायद विरोध करे -' साधु-साधु यह कह रहे हैं आप?' क्या पता इस पर माफिया की मेमोरी शरीफ साधु की मेमोरी को लात मारकर बाहर कर दे और पूरे स्पेस पर कब्जा कर ले। क्या पता इस जूता-लात में पूरा सिस्टम ही क्रैश हो जाये। सब कुछ नए सिरे से फार्मेट करना पड़े। बहुत बवालिया काम है इंसानों की मेमोरी डाउनलोड करना। इससे दूर ही रहना अच्छा।
अभी तो सुबह है। सुहानी भी और खुशनुमा भी। जिंदगी बहुत खूबसूरत है आपकी मुस्कान की तरह। मुस्कराइए कि आप इस खूबसूरत कायनात में हैं।
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