ये फेसबुक पर ऑटो टिप्पणी के जो विकल्प आते हैं न वो हमको 'अभिव्यक्ति दिव्यांग' बना रहे हैं। किसी पोस्ट पर टिप्पणी करते समय फेसबुक सुझाता है खूब, बहुत खूब, अद्भुत, शानदार। पोस्ट के अनुकूल टिप्पणी देखते ही हम उसे भेज देते हैं। खुश हो जाते हैं कि बिना मेहनत काम हो गया। बढ़िया टिप्पणी हो गयी।
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह यह कि फेसबुक और दूसरे मीडिया भी हमको अपने पर निर्भर बना रहे हैं। अपने पास उपलब्ध विकल्पों में से ही किसी एक को चुनने के लिए उकसा रहे हैं। हम चुनते भी हैं। आराम का मामला है।
मामला भले आराम का है लेकिन सोचिये तो अपन 'अभिव्यक्ति दिव्यांग' होते जा रहे हैं। टिप्पणियां एकरस और मशीनी होती जा रही हैं। हमारी तरफ से फेसबुक काम कर रहा है। बिना पैसे का नौकर हम पर हुक्म चला रहा है। हम उसके इशारे पर नाच रहे हैं।
दूसरे पर निर्भरता हमको कमजोर और अपाहिज बनाती है। देश दुनिया के स्तर पर यह और तेजी से हो रहा है। हम अपनी सेवा के लिए जिन लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनते हैं वे दिन पर दिन समाज विरोधी, मानवता विरोधी और निकृष्टतर होते जा रहे हैं। हम मजबूरी में उनसे ही अपना 'कल्याण' कराने को अभिशप्त हैं। हम कुछ कर नहीं पाते क्योंकि हम खुद कुछ करने की बात सोचना ही भूलते गये हैं।
हम जितना आधुनिक और आरामतलब बन रहे हैं उतने ही अपाहिज और असहाय भी।
है कि नहीं ?
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10222075456128900
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