हमारे दोस्त Saif Aslam Khan बेहतरीन आर्टिस्ट हैं। उनके बनाये स्केच उनके हुनर की कहानी कहते हैं। कैंट इलाके की #benchnumber7 उनकी पसंदीदा बेंच है। इस बेंच से जुड़े कई किस्सों और खुशनुमा पलों की कहानी उन्होंने अपनी पोस्ट्स में लिखी है।
इतवार को टहलते हुए बेंच नम्बर 7 की तरफ गए। वहां बैठे विवेक उर्फ पिंकू ने हमको नमस्ते ठोंक दिया। हम अचकचा गए। अचकचाने का कारण यह कि हमको लगा कि अगला हमको जानता है और हमारे दिमाग के साफ्टवेयर में उनका डेटा निल है। उम्र के चलते भूलने की बीमारी पर हक तो जायज है लेकिन इतना भी जबरदस्ती ठीक नहीं भूलने की बीमारी पर।
बहरहाल हमने भी नमस्ते ठोंका और बतियाना शुरू किया। पता चला कि पिंकू पास के गांव के रहने वाले हैं। यहां क्रिकेट खेलने आये हैं। बैटिंग करते हुए 50 रन बनाए हैं और दो विकेट हासिल किए हैं। अब मैच खत्म हो गया तो वापस लौटने की तैयारी में हैं। रन और विकेट की मेहनत का पसीना और थकान अलबत्ता पिंकू के पास से बरामद नहीं हुआ।
बातचीत की शुरूआत पिंकू ने जमीन खरीदने से की। अंकल जी जमीन तो नहीं खरीदनी आपको?
जिस चीज से इंसान को कोई मतलब नहीं होता उसमें वह ज्यादा दिलचस्पी दिखाता है। जिस रास्ते जाना नहीं होता उसके कोस सबसे ज्यादा गिने जाते हैं। उपरोक्त दो बहानों की आड़ में अपन ने विवेक उर्फ पिंकू से जमीन के बारे में पूछना शुरू किया।
पता चला करीब 40 बीघा जमीन बिकाऊ है। 25 लाख प्रति बीघा के हिसाब से। मतलब करीब 10 करोड़ की खरीद। हमने खरीद से तो मना किया लेकिन पूछ लिया कि तुमको क्या मिलेगा जमीन बिकवाने का?
बोले -'2 % मतलब करीब 20 लाख।' हम विवेक के 20 लाख की कमाई पर पानी फेर दिया। मना कर दिया जमीन खरीदने से।
बाद में पता चला कि विवेक हमको पहले से जानते नहीं थे। वहां फालतू टहलते देखकर जमीन ऑफर कर दी। हमारे जेहन से भूलने की बीमारी का अपराध बोध हवा हो गया।
बातचीत से पता चला कि विवेक खुद 100 बीघा की जमीन के मालिक के परिवार से हैं। तीस साल की उम्र है। कक्षा 9 पास हैं। तीन बच्चों के पिता हैं। तीनो लड़के। बड़े भाई भी हैं। उनकी चार लडकियां हैं। खेती में सहयोग करते हैं लेकिन हिसाब-किताब पिता जी ही देखते हैं।
कक्षा 9 की पढ़ाई से हमको रागदरबारी के रुप्पन बाबू याद आ गए जिनको पढ़ने का और कक्षा 9 में पढ़ने का शौक था। इसलिए कई सालों तक कक्षा 9 में ही पढ़ते रहे। विवेक को पढ़ने का इतना शौक नहीं रहा होगा इसलिए निकल आये स्कूल के झमेले से।
बात बच्चों की चली तो हमने कहा ये रोचक है कि तुम्हारे सब लड़के और भाई के सब लड़कियां। तीस साल की उम्र, 7 साल में तीन बच्चे, बढ़िया प्रोगेस है।
बच्चा तो एक और होने को था लेकिन उसको 'डिलीट' करवा दिए। बताया 2 महीने का था जब ' डिलीट' करवाये।
गर्भपात के लिए 'डिलीट' शब्द पहली बार सुने थे। मतलब बच्चा भी कोई डाटा है जिसे डिलीट कर दिया गया। इसमें गर्भपात का ऑपरेशन सहज और आसान हो जाने का भाव तो है ही साथ ही अजन्मी सन्तति के प्रति उसके सम्भावित पिता की सम्वेदनाओं के तार भी जुड़े हैं।
गर्भ और गर्भपात से जुड़ी सम्वेदना उसके 'डिलीट' होने से खत्म हो गयीं।
तीन बच्चे हो गए । ऑपरेशन करवा लेना चाहिए तुमको।
'करवा देंगे अब मिसेज का।'- पिंकू ने कहा।
हमने कहा -'तुम अपना क्यों नहीं करवाते ऑपरेशन?'
'हम क्यों करवाएंगे उनका ही करवाया जाएगा।आदमी थोड़ी ऑपरेशन करवाते हैं।'- कुछ ऐसी ही बात कही विवेक ने।
तकनीकी शब्दों के आम बोलचाल में शामिल होते जाने से इंसान की भावनाओं पर नियंत्रण भी आसान हो जाता है। इराक, वियतनाम, अफगानिस्तान में हुई लाखों इंसानों की मौतों को उनकी मौत के खेल में शामिल देश ' प्रोग्रामिंग में मानवीय भूल के चलते कुछ लाख लोग डिलीट हो गए' वाले भाव में लेकर मस्त हो जाते होंगे। इंसान का आंकड़ों में बदलते जाना प्रगति का मापदंड है।
देर हो गयी थी बतियाते हुए। हम लौटने लगे तो विवेक ने फिर कहा -'कोई खरीदार मिले तो बताइएगा जमीन का।'
आपको तो नहीं खरीदनी है जमीन।
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