कल कुछ कोरियर डिलीवरी करने वाले बालकों से मुलाकात हुई। आर्मी गेट के सामने की बेंच पर बैठे ग्राहकों से मोबाइल फोन पर सम्पर्क करके उनके कोरियर की जानकारी देते हुए सामान कलेक्शन के लिए सूचना दे रहे थे। आर्मी गेट कोरोना के समय से कोरियर के लिए बन्द हो गया है। इससे लोगों को भले परेशानी होती हो लेकिन कोरियर वालों को आराम हुआ है। अंदर जाकर मकान-दर/मकान भटकना नहीं पड़ता। सामान आने की सूचना देकर गेट पर कलेक्शन के लिये बुला लेते हैं। कोई-कोई तो सामान गेट पर रखवा लेते हैं। इसके बाद आते-जाते हुए कलेक्टकर लेते हैं सामान।
कोरियर का सामान लिए बच्चा मोटरसाइकिल से उतरा। कुछ सामान आगे कंगारू के बच्चे की तरह सम्भाले हुए बाकी ज्यादातर सामान पीठ पर पर्वतारोहियों की तरह लादे हुए था बालक। बेंच पर बैठकर बैग से सामान निकालते हुए नियमित सामान मंगाने वालों के बारे में कुछ-कुछ जानकारी भी देते जा रहे थे। अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि कम्पनियों की डिलीवरी करने आये थे कोरियर।
'ये चिरायंध आदमी है। सामान पे आन डिलीवरी पर मंगवाता है लेकिन डिलीवरी कभी नहीं लेता। या तो मोबाइल स्विच ऑफ आता है या कहता है कि बाहर हैं बाद में आना।'
नाम सुनकर दूसरे कोरियर डिलीवरी वाले ने बताया। अरे इसको आई डी तो हमारे यहां हमने डिलीट करवा दी। कभी सामान नहीं लेता। अब हमारी साइट से 'पे आन डिलीवरी' पर सामान नहीं ले सकता। बहुत चिरकुट है।
हमने सोचा कि कहीं किसी भले आदमी को चिरकुट न कह रहे हों। इस अन्याय को रोकने के लिहाज से अपने सामने उनसे फोन मिलवाया। फोन बंद था। कोरियर ब्वाय के वक्तव्य की रक्षा हुई। हम गलत साबित हुए।
'ये डॉक्टर मैडम तो आज लेंगी नहीं सामान। आज इतवार है। अस्पताल बन्द होगा। कल अस्पताल में ही लेंगी डिलीवरी। कभी गेट पर आती नहीं सामान कलेक्ट करने।'
'ये मैडम भी फैक्ट्री में ही लेती हैं डिलीवरी। आज नहीं लेंगी सामान।'
इसी तरह अन्य कई नियमित ग्राहकों के बारे में जानकारी इकट्ठा है इनके दिमाग में। बातचीत के दौरान साझा करते जा रहे थे बालक।
'आपके मोबाइल नम्बर में ओटीपी आया होगा। बता दीजिए।'- एक ग्राहक से पूछा बालक ने।
'कोई ओटीपी नहीं आया है मोबाइल में।' -उधर से झल्लाती हुई आवाज आई।
बालक ने फिर बताया कि इस मोबाइल पर आया होगा देखिए। देखा गया तो पता चला वह मोबाइल दूसरा था जिस पर आया था ओटीपी। बताया तो फिर बालक ने बताया कि जो ओटीपी बताया वह गलत है। तीसरी कोशिश में मामला वेरिफाई हुआ। यह तो तो तब जब फोन मिल गया और बात हो गयी। न मिला होता फोन तो क्या होता।
पता चला कम्पनियां 8000 रुपये देती हैं महीने भर के सामान की डिलीवरी के। कनवेयन्स के लिए 3 रुपया प्रति किलोमीटर अलग से। महीने में 1000 डिलीवरी से अधिक होने पर 5000 रुपये का इंसेंटिव अलग से। यह अलग बात कि इंसेंटिव कभी मिलता नहीं क्योंकि जैसे ही किसी के 1000 सामान होने लगते हैं किसी के वैसे ही कम्पनी किसी और कोरियर ब्वाय को उस लाइन में जोड़ देती हैं ताकि इंसेंटिव न देना पड़े।
'लकड़ी लगाने से कम्पनियां कभी नहीं चूकती'- बालक ने इंसेटिव बचाने के प्रयासों पर अपनी राय जाहिर की।
डिलीवरी का काम साइड बिजनेस के रूप में अच्छा है। कोरोना काल में जब सब जगह काम ठप्प हो रहे हैं तो कोरियर का काम चल रहा है यही अच्छा है।
3-4 घण्टे में निपट जाता है काम। के कभी-कभी देर भी हो जाती है। जैसे किसी को दस बजे फोन करो और वह जबाब दे दो बजे आना डिलीवरी के लिए तो इंतजार करना होता है।कभी-कभी शाम भी हो जाती है।
'इसके साथ पुलिस की भरती की तैयारी भी चल रही है।पढ़ाई प्रैक्टिस दोनों जारी हैं।' -एक बालक ने बताया। इसके बाद सामान की डिलीवरी के लिए डीएम कम्पाउंड चला गया। थोड़ी देर में डिलीवरी करके आया तब तक दूसरे बालकों से बतियाये।
उन बालकों में से एक से पढ़ाई के बारे में पूछा तो बताया -' सब पढ़ाई कर चुके हैं।'
सब का मतलब पूछने पर बताया -'बी ए, एम ए. , कम्प्यूटर डिप्लोमा, एक्सल, टैली और भी कुछ डिग्री। लेकिन काम नहीं मिला कहीं पढ़ाई के हिसाब से तो कोरियर का काम कर रहे हैं।
बताने के बाद मूंछे ऐंठते हुए आराम करने लगे अनूप सिंह। पता चला पास ही गांव है। खेती है। शादी हो गईं। बच्चा भी है।
इसके बाद नौकरी पर अपना ज्ञान भी दिया अनूप सिंह ने। नौकरी चाहे 40000 हजार की हो लेकिन होती तो नौकरी ही है। आदमी दूसरे के अधीन रहता है। इसके मुकाबले अपने काम में भले चार पैसे कम मिलें लेकिन आदमी किसी का गुलाम तो नहीं रहता। दो आदमियों को रोजगार अलग से देता है।
हमारे बारे में पूछते हुए कहा अनूप सिंह ने -'आप फैक्ट्री में काम करते हो। स्टाफ में होंगे। वहां अभी दरबान की ठेके में भर्ती हुई है। 12000 रुपये मिलते हैं। हम आपसे कहें वहां लगवा दो तो अभी आप कहोगे पता करेंगे। कुछ दिन बाद कहोगे -हो नहीं पाया। हर जगह यही हाल है।
हमने तर्क दिया किसी को हटाकर लगवाने की बात तो ठीक नहीं न।
वही तो। लेकिन देखिए आजकल पढ़ाई के हिसाब से काम कहाँ मिलता है। इसीलिये नौकरी की बजाय अपना काम करना बढ़िया। बेफिक्री से मूंछो पर ताव देते हुए बोले -अनूप सिंह।
हमारे कहने को कुछ बचा भी नहीं था। हम अच्छा चलते हैं कह कर चले आये।
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