सुबह सड़क पर मिले ये भाई जी। नाम बताया राजू। साथ में इनके बड़े भाई राकेश भी थे। राजू को रोककर उनसे बतियाने लगे। राकेश आगे निकलकर इंतजार करने लगे।
राजू-राकेश बाल खरीदने का काम करते हैं। गली-मोहल्ले घूम-घूमकर बाल खरीदते हैं। कीमत 2000 रुपये किलो। बाल खरीदकर शहर में थोक खरीद वालों को देते हैं। दो बड़े खरीदार हैं शहर में। वे बालों को आगे कोलकता भेजते हैं। वहां बालों से विग बनाने का काम होता है।
दस साल से कर रहे बाल खरीदने का काम। पहले बालों की जगह चूरन, चटपट चीजें देने का चलन था। अब बर्तन देने का चलन है। दिन भर में हजार -डेढ़ हजार रुपये करीब के बाल मिल जाते हैं। खाने-पीने भर की कमाई हो जाती है।
बाल की खरीद के अलावा गर्मी में आइसक्रीम बेचने का काम करते हैं। और भी एकाध काम बताए राजू ने जो वे रोजी-रोटी के लिए करते हैं। गरीबी इंसान को कमाई के मामले में ऑल राउंडर बना देती है।
साइकिल पर लाउडस्पीकर के उपयोग के बारे में भी बताते हुए विज्ञापन सुनाया। पेन ड्राइव पर विज्ञापन बजने लगा। शुरुआत गाने से -'ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आंखे।' गाने के बाद बालों की कीमत -एक किलो के 2000 रुपये, आधा किलो के 1000 रुपये, दो सौ ग्राम के 400 रुपये। बाल भी वे वाले जो कंघी करते हुए गिरते हैं। जो लोग बाल झड़ने की समस्या से परेशान हैं उनको यह सोचना चाहिए कि उनके सर से बाल नहीं, पैसे झड़ रहे हैं।
बाल की विग बनती हैं तो उसमें अलग-अलग लोगों के सर के बाल लगते होंगे। एक ही विग में लगे बाल अलग-अलग धर्म, जाति के लोगों के होते होंगे। जो लोग आपस में एक दूसरे को देखना, छूना नहीं पसन्द करते हों, हो सकता है उनके सर के बाल एक ही विग में सटे हुए रहते हों। बालों की बिग सर्वधर्म सद्भाव की प्रतीक है।
राजू तसल्ली से बतिया रहे थे। इस बीच उनके बड़े भाई राकेश भी अपनी साइकिल आगे खड़ी करके आ गए। फोटो खींची तो सावधान मुद्रा में खड़े हो गए गोया हमारे कैमरे में राष्ट्रगान बज रहा हो।
बालों के विग की बात से याद आया कि हमारे एक दोस्त ने हमारे बालों की बनावट देखकर पूछा था -'क्या आप विग लगाते हो?'
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