तंदूरी चाय का नाम सुना था। दर्शन हुए पिछले हफ़्ते। कानपुर के रास्ते में ढाबे पर चाय पीने को रुके। चाय जा आर्डर दिया। चाय वाले ने कुल्हड़ पास की अँगीठी से निकाला। कुल्हड़ गर्म था। चाय उसने कूल्हड़ में छान दी। कुल्हड़ गर्म था। चाय कुल्हड़ में पहुँचते ही बिलबिलाने लगी। फफोले जैसे पड़ गये चाय के। थोड़ी देर में चाय शांत हुयी तो उसने और चाय डाल दी कुल्हड़ में। इस बार वाली चाय कम बिलबिलाई। कूल्हड़ की गर्मी भी कम हो गयी होगी। कुछ देर में दोनों शांत हो गये।
चाय स्वादिष्ट थी। लेकिन यह भी लगा कि तंदूरी चाय के बहाने भट्टी की मिट्टी भी मिल गयी चाय में। तंदूरी चाय में तंदूर का स्वाद भी मिल गया।
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