पिछले हफ्ते बुराहनपुर जाना हुआ। खंडवा स्टेशन तक ट्रेन से। फिर गाड़ी से। ट्रेन खंडवा के पहले तक कुछ देरी से चल रही थी। हमने आधे घण्टे पहले सामान समेटना शुरू किया। तसल्ली से। सोचा था ट्रेन के स्टेशन पहुंचने तक सब समेट लेंगे। आराम से उतर लेंगे।
अभी हम सामान समेट ही रहे थे कि पता चला गाड़ी स्टेशन पर खड़ी हो गयी। हमें लगा कोई और स्टेशन होगा। पता किया तो मालूम हुआ कि खंडवा स्टेशन आ गया। गाड़ी दो मिनट रुकती है खंडवा पर। हमें लगा देर की तो ट्रेन में ही रह जाएंगे। अदबदा के कम्बल ओढ़कर, कपड़े समेटकर और मोबाइल, घड़ी , पर्स, किताबें इधर-उधर लादकर उतर गए। प्लेटफार्म पर खड़े होकर कुछ देर सांस लेते रहे। यह सोचते रहे कि सकुशल उतर गए।
उतरने के बाद ट्रेन देर तक खड़ी रही। हम कुछ देर ट्रेन को देखते हुए सांसे लेते रहे। हमको हड़बड़ा के तसल्ली से खड़ी ट्रेन मुस्करा जैसा रही थी। गोया हमसे मौज लेने के बाद पूछ रही हो -'कहो कैसी रही?' हम क्या बोलते। चुपचाप खड़े रहे। कुछ देर बाद फिर गए डब्बे के अंदर देखने कि कोई सामान तो नहीं छूट गया। लौटकर खरामा-खरामा बाहर आये।
प्लेटफार्म पर कुछ बच्चे ताश खेल रहे थे। पैसे भी थे उनके पास । शायद जुआ खेल रहे थे। हमने फोटो लिया तो मुंह छिपा लिया। एक बच्चा सरकता हुआ प्लेटफार्म पर टहल रहा था। वहीं एक महिला इस सबको देखते हुए स्वेटर जैसा कुछ बिन रही थी।
प्लेटफार्म पर उतरने से पहले एक लड़की कॉरिडोर में बैठी कुछ लिखती दिखी। पास जाकर देखा तो वो वह ड्राइंग जैसा कुछ बना रही थी। हमने बात करने की कोशिश की तो चुप हो गयी। स्केच जैसी ड्राइंग भी छिपा सी ली।
बाहर आये तो दो चेन लगाने वाले दिखे। पता चला ये स्टेशन पर चेन रिपेयर और बूट पालिश का काम करते हैं। बैग, सूटकेस की चेन खराब हो जाती है तो उसको रिपेयर करते हैं। बताया कि सालों से यह काम कर रहे हैं। हमको थोड़ा अचरज लगा कि चेन रिपेयर के काम से नियमित रोजगार कैसे चल सकता है।
चेन रिपेयर वाले चेन तो खुले में रखे थे लेकिन बूट पालिस का सामान लकड़ी के बक्से में रखे थे। पूछने पर बताते होंगे।
उन लोगों ने बताया कि रोज 300-400 रुपये कमाई हो जाती है। कोरोना काल में अलबत्ता हाल खराब रहे। स्टेशन पर सन्नाटा रहा कोरोना काल में।
खंडवा के प्रसिद्द लोगों के बारे में पूछने पर सबसे पहले नाम लिया किशोर कुमार का। कई किस्से सुनाए उनसे जुड़े। उनकी अंतिम यात्रा का किस्सा बयान किया। पूछने पर माखन लाल चतुर्वेदी जी के बारे में भी बताया। एक और धूनी वाले बाबा जी की जानकारी भी दी उन्होंने। बाबा जी ने जीवित समाधि ले ली थी।
खंडवा के किस्से सुनते हुए गाड़ी आ गई। हम बुरहानपुर चल दिए।
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