फ़ुरसतिया
हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै
Tuesday, January 04, 2022
जाड़े में धूप
जाड़े में धूप
आहिस्ते से आती है,
धीमें-धीमे सहमती हुई सी।
जैसे
कोई अकेली स्त्री
सावधान होकर निकलती है
अनजान आदमियों के बीच से।
धूप सहमते हुये
गुजरती है चुपचाप
कोहरे, अंधेरे और जाड़े के बीच से।
-अनूप शुक्ल
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