कल इतवार था। इतवार को सुबह भी लगता है तसल्ली से सोकर उठती है। सुबह कई बार उठने का मन बनाते-बनाते भी हर इतवार की तरह देर से ही उठते। कोई भी काम टाल देने पर मुझे हमेशा कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब के शेर याद आते है:
तमाम काम अधूरे पड़े रहे मेरे
मैं जिंदगी पर बहुत एतबार (भरोसा)करता था।
बहरहाल एक बार फिर देरी हो जाने के बाद उठे। टहलने निकले। लान में धूप पेड़ , पत्तियों से गपिया रही थी। फूल हवा के झूले झूल रहे थे।
सड़क के किनारे गुलमोहर और अमलतास के पेड़ आपस में बतिया रहे थे। एक तरफ गुलमोहर, दूसरी तरफ अमलतास!
हवा के झोंके से उनके फूल हिलडुल जाते थे, कोई-कोई फूल कभी नीचे भी टपक जाता। जिस डाली, फुनगी से फूल गिरता वह सिहर जाती। कुछ देर में फिर पहले की तरह सहज होकर झूमने, हिलने लगती। पूरी कायनात ऐसे ही चलती है।
अम्बेडकर पार्क के पास चार बच्चे कुछ खोजते दिखे। पूछने पर बताया कि उनके तीन सौ रुपये खो गए थे। तीन सौ रुपये कहां से आये पूछने पर बताया -'आम के बगीचे से आम बीनकर बेचे थे। उसी के पैसे थे।'
तफसील से पूछने पर बताया बच्चों। पास के गांव में रहते हैं। सुबह चार बजे उठकर पेड़ों से गिरे आम बीनने निकले थे। कुछ रास्ते में बीने। बाकी बगीचे में। बगीचे में मालिक ने आम बिनवाये। बड़े खुद रख लिए। छोटे आम मेहनताने के तौर पर बच्चों को दे दिए। बच्चों ने सारे आम बेंच लिए। 300/- मिले। घर जाने के पहले झूला झूलने के लिए पार्क में आये। वहीं कहीं गिर गए।
झूला झूलने के लिए एक लड़के ने मना किया था। लेकिन बहुमत झूलने वालों का था। वहीं गिर गए पैसे।
आम क्या भाव बेचे पूछने पर बताया बच्चों ने -'तौल के थोड़ी बेचे। ऐसे ही ढेरी में बेंच दिए।'
छठवीं, सातवीं में पढ़ने वाले बच्चों के पिता कोई मिस्त्री का काम करते हैं, कोई खेती। 300/- खोने का दुख उनकी बातचीत में बार-बार आ रहा था। एक कह रहा था -'घर में मार पड़ेगी।'
बच्चों से बातचीत करते हुए बचपन में बिजली की दुकानों के बाहर पड़े तांबे के टुकड़े बीनकर कबाड़ वालों को बेचकर चवन्नी-अठन्नी कमाने के दिन याद आये।
आगे एक जगह दो महिलाएं गोद में बच्चे लिए खड़ी दिखीं। धूप में। पता चला उनमें से एक बच्ची की एक चप्पल कहीं गिर गयी थी। उनको यहां उतारकर मोटरसाइकल वाला चप्पल खोजने गया है।
महिलाएं देवरानी, जेठानी हैं। जेठानी पांच साल सीनियर है। मोटरसाइकिल वाला अपनी पत्नी, भाभी और दो बच्चों को साथ लेकर शहर जा रहा है। खरीदारी के लिए।
बातचीत करते हुए देवरानी बताती है -'हमाये ससुर नौकरीं करते थे। अब पेंशन मिलती है।'
कहाँ नौकरीं करते थे नहीं बता पाई। बाद में उसके पति ने बताया -'सिंचाई विभाग में काम करते थे।'
देवरानी-जेठानी में लड़ाई होती है कि नहीं ? पूछने पर दोनों हंसने लगीं। देवरानी ने उल्टा मुझसे पूछा -'देवरानी-जेठानी क्या लड़ने के लिए ही होती हैं?'
हमारे पास इसका कोई जबाब नहीं था। किसी के पास नहीं होगा।
कुछ देर में मोटरसाइकिल वाला वापस आ गया। चप्पल कहीं मिली नहीं। एक जो मिली वह दूसरी तरह की थी।
मोटरसाईकल पर देवरानी-जेठानी अपने बच्चों समेत बैठ गईं। कुल मिलाकर पांच लोग बैठे थे। बिना हेलमेट के सवार को पहले टोंकने का मन हुआ। लेकिन फिर मन को बरज दिया।
खुशी-खुशी जाते किसी को टोकने से क्या फायदा। कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो मन अलग से खराब हो और सोचें -'टोंकना नहीं चाहिए था।'
जिंदगी पर एतबार बड़ी चीज है।
है कि नहीं ?
https://www.facebook.com/share/p/S6D2zyrrukD6CaeT/
No comments:
Post a Comment