Thursday, May 12, 2022

सैर कर दुनिया की गाफिल

 


परसों आरव भारद्वाज , उनके पिता डॉ अतुल भारद्वाज , दादा आर. एस. भारद्वाज से मिलना हुआ। आरव अपने पिता, बाबा और उनके पारिवारिक मित्र जसपेर बलसारा के साथ मणिपुर के मोहरांग से दिल्ली की साइकिल यात्रा पर निकले हैं।
14 अप्रैल को मोहरांग से चलकर आठ प्रदेशों से होते हुए 10 मई को शाहजहांपुर पहुंचे साईकिल यात्री। मोहरांग से दिल्ली यात्रा का उद्देश्य नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125 जयंती के मौके पर उनके देश के लिए किए गए कार्यों को याद करते हुये उनके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करना है।
10 साल के आरव कक्षा 6 में पढ़ते हैं। पिता डॉ अतुल भारद्वाज दिल्ली में आर्थोपेडिशियन हैं। मम्मी डॉक्टर स्वाति भारद्वाज भी दिल्ली में डॉक्टर हैं। दादा आर.एस. भारद्वाज पेशे से वकील हैं। साथ में डॉ भारदाज के चाचा भी हैं। इसके अलावा पारिवारिक मित्र जसपेर भारद्वाज टूर एंड ट्रेवल (J.B.Tours and Travels) का काम करते हैं।
यात्रा का कार्यक्रम दादा और पिता की चाहत की जुगबन्दी से बना। बेटा आरव उत्साहित होकर इस यात्रा का हीरो बना। आरव अपने पिता डॉ अतुल भारद्वाज के साथ साइकिलिंग करते हैं। दादा और अन्य दो लोग कार में सपोर्ट सिस्टम के साथ रहते हैं। साथ में एक साइकिल और भी है वैकल्पिक उपयोग के लिए। रास्ते में अभी तक केवल एक बार ही साइकिल पंक्चर हुई। एक दिन औसतन 70-80 किलोमीटर साइकिल चला लेते हैं। 8 बार अभी तक एक दिन में सौ से ऊपर किलोमीटर साइकिल चलाई।
परसों शाम को मुलाकात हुई आरव और उनके घर वालों से। यात्रा के अनुभव की जानकारी ली। अधिकतर सुबह यात्रा कर लेते हैं। शाम को आराम। ठहरने की जगह पहले आमतौर तय कर लेते हैं। स्थानीय लोग , संस्थाएं सहयोग करती हैं। शाहजहांपुर में सेवानिवृत्त विंग कमांडर पी के गुप्ता जी ने सक्रिय सहयोग किया।
10 साल की उम्र में लंबी साइकिल यात्रा करके हीरो बन गया है आरव। हिम्मत ,जज्बा और उत्साह और घर वालों के सहयोग से 2500 किमी की यात्रा लगभग पूरी ही होने वाली है। अभी तक लगभग 2 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं इस यात्रा।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम से जुड़ी यात्रा के कारण जगह-जगह लोग स्वागत करते हैं। बच्चे के वजन से ज्यादा मालाएं हो जाती हैं, कभी-कभी। पूरा चेहरा मालाओं से ढंक जाता है। यात्रा के उद्देश्य और नेता जी जुड़ी घटनाओं के बारे में बताते हैं आरव। पिता साथ में सहयोग के लिए।
कल सुबह शाहजहांपुर से बरेली के लिए आरव और उनके परिवार के लोग। मार्निंग वॉकर ग्रुप के तमाम साथी इकट्ठा हुई। फूलमालाएं पहना कर विदा किया गया। हरदोई से शाहजहांपुर आये थे आरव। बरेली जाना था। चलते समय आरव को बोलना था -'आज हम शाहजहांपुर से बरेली जा रहे हैं।' बरेली की जगह दो बार हरदोई बोलने के बाद बरेली आया। जगहों के नाम आसानी से ज़बान पर चढ़ते कहाँ हैं।
कुछ लोग कुछ दूर तक भेजने गए आरव को। अपन बरेली मोड़ तक गए। वहां भूतपूर्व सैनिक संगठन के लोग एकत्र हुए थे भेजने के लिए। विदा करके हम लौट आये।
आज बरेली से मुरादाबाद के लिए निकलेंगे आरव और उनके परिवार के लोग। मुरादाबाद में आरव को उनकी मम्मी मिलेंगी। वे आगे फिर दिल्ली जाएंगे। 15 मई को यात्रा पूरी होंगीं।
आरव और उनके परिवार की साइकिल यात्रा के बहाने लगभग 39 साल पहले की साइकिल से भारत यात्रा की यात्रा आई। उस समय न तो संचार इतना सुगम था न ही अन्य सुविधाएं लेकिन फिर भी यात्रा हुई।
हम तो फिर भी सड़क और अन्य माध्यमों से घूमें। हमारे जो बुजुर्गवार दुर्गम रास्तों में घूमें, अनजान जगहों पर रहे उनके अनुभव तो और भी अनूठे रहे होंगे। तभी तो वे कहते हैं:
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल,
जिंदगानी फिर कहाँ?
जिंदगानी गर रही तो
नौजवानी फिर कहाँ।
तो कब निकल रहे हैं सैर पर? निकल लीजिए, जो होगा देखा जाएगा।
इस साइकिल यात्रा से जुड़ी फोटो और वीडियो आप इस पेज पर देख सकते हैं। देखिए अच्छा लगेगा।

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