Sunday, July 31, 2022

खुशियों का बगीचा-निशात बाग



शालीमार बाग देखते हुए काफी टहल लिए थे। शाम भी हो गई थी। मन किया अब बाकी कल देखेंगे लेकिन फिर याद आया कि श्रीनगर में दो ही दिन रुकना है। दो दिन में पूरा श्रीनगर नाप लेना है। देख लेना है। टाइम टेबल बनाकर होमवर्क करने जैसा अंदाज है यह। लेकिन समय की सीमा के चलते करना पढ़ता है।
अगला बाग निशात बाग था। बहुत खूबसूरत, बहुत शानदार। निशात बाग का अर्थ होता है- खुशियों का बगीचा। देखकर सही में मन खुश हो गया। दिल बाग-बाग हो गया।
निशात बाग को सन 1634 में बनवाया मुगल महारानी नूरजहां के बड़े भाई अब्दुल हसन आसफ खां ने बनवाया था। बताते चलें कि इसके पहले 1619 में मुगल बादशाह जहांगीर अपनी बेगम को खुश करने के लिए शालीमार बाग बनवा कर उनको भेंट दे चुके थे। उसकी देखादेखी ही नूरजहां के भाईजान ने निशात बाग बनवाया होगा।
निशात बाग जब बना तब मुगल बादशाह शाहजहाँ गद्दीनशीन थे। बाग को बनवाने वाले अब्दुल हसन रिश्ते में उनके ससुर थे। उनकी बेटी मुमताज महल शाहजहाँ की बेगम थीं। बाग की खूबसूरती से शाहजहाँ बहुत खुश हुए होंगे और उनके मन में तमन्ना रही होगी कि यह खूबसूरत बाग उनके ससुर उनको भेंट कर देंगे। तमन्ना क्या ऐसा सुना जाता है कि शाहजहाँ ने तीन बार इस बात की मंशा जाहीर की। लेकिन उनके ससुर साहब ने ऐसा नहीं किया। बादशाह शाहजहाँ को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने बगीचे में पानी की सप्लाई रुकवा दी। बाग सूखने लगा।
बादशाह शाहजहां द्वारा उनको भेंट न किए जाने पर बाग की पानी की सप्लाई रुकवा देने का काम उसे तरह का है जैसे किसी कालोनी का मेन्टीनेंस देख रहे किसी को परेशान करने की मंशा से किसी के घर की मरम्मत न कराएं पानी रोक दें, बिजली काट दें, सीवर लाइन चोक करवा दें। मनमानी का ये शाही अंदाज सदियों पुराना है।
शाहजहाँ का यह अंदाज उसी तरह का था कि जैसे लड़के वाले लड़की वालों से जिंदगी भर भेंट-उपहार की आशा लगाए रहते हैं। गनीमत है कि निशात बाग भेंट न देने पर मुमताज महल को परेशान करने के किस्से नहीं मिलते। हुए भी होंगे तो उस समय दहेज विरोधी कानून बना नहीं था। महारानी कहाँ एफ़ आई आर दर्ज करवातीं?
पानी की सप्लाई रुक जाने से निशात बाग उजाड़ होने लगा। पानी बादशाह ने रुकवाया था तो बेचारे अब्दुल हसन साहब करते भी क्या ! सुनते हैं एक दिन उदास निशात बाग में एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे। उनको उदास देखकर उनके वफादार नौकर ने शालीमार बाग से निशात बाग आने वाली पानी की सप्लाई खोल दी। पानी की आवाज सुनकर अब्दुल हसन ने घबड़ाकर नौकर से पानी की सप्लाई बन करनें को कहा। उनको डर था कि उनका दामाद बादशाह अपनी हुकूमअदूली से खफा होकर न जाने क्या बवाल करे?
लेकिन जब इस घटना के बारे में बादशाह शाहजहाँ को पता चला तो उसने नौकर और अपने ससुर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। बल्कि निशातबाग की पानी की सप्लाई चालू करवा दी। हो सकता है उनकी बेगम मुमताज महल ने भी कहा हो शाहजहाँ से –‘आपने मेरे पापा के बगीचे की पानी की सप्लाई क्यों रोक दी? फौरन चालू करवाइए उसे?’ उसकी बात मानकर ही शाहजहाँ ने अपना हुकूम वापस ले लिए हो।
अधिकार भाव से संचालित, मन माफिक काम न होने पर, नुकसान पहुंचाने वाले इस भाव से मनुष्य तो क्या देवता भी अछूते नहीं है। व्रत न करने पर पारिवारिक अहित, संपत्ति हरण और फिर व्रत करने पर सब कुछ बहाल हो जाने के किस्से इसकी पुष्टि करते हैं।
बहरहाल जो हुआ हो लेकिन आज के दिन निशात बाग में पानी की सप्लाई चालू है और श्रीनगर का यह सबसे बड़ा बाग मात्र 24 रुपए के टिकट पर आम जनता के देखने के लिए उपलब्ध है।
निशात बाग के पीछे एक झरना बहता है जिसका नाम गोपितीर्थ है। बगीचे में पानी इसी झरने से आता है। बगीचे में फूलों की दुर्लभ प्रजातियाँ , चिनार और सरू के पेड़ हैं। यह बगीचा इस इलाके का सबसे बड़ा सीढ़ीदार उद्यान है।
बगीचे में घुसते ही हर तरफ खूबसूरती ही खूबसूरती दिखी।
हर तरफ हसीन नजारे। सामने डल झील , ऊपर आसमान में सूरज भाई। झील में नावें और सड़क पर कारें तैर रही थीं। सीढ़ीदार बगीचे में जैसे-जैसे आगे (बाग के पीछे की ओर) बढ़ते गए, सामने का नजारा खूबसूरत लगता गया। हर दस बीस कदम आगे बढ़ते हुए लगता इसे भी धर लो कैमरे में, उसका भी वीडियो बना लो। अभी लिखते समय सबको देखते हुए फिर से निशात बाग की खूबसूरती को महसूस कर रहा हूँ।
बगीचे में लोग उसकी खूबसूरती को निहारते और उससे भी अधिक उसके साथ फ़ोटो खिंचाते दिखे। एक महिला अपने बच्चे के साथ सेल्फ़ी ले रही थी। उसे के बगल में दूसरी मोहतरमा दोनों कैमरा पकड़कर फ़ोटो लेते दिखीं। दिखीं। यहाँ भी कश्मीरी ड्रेस के साथ फ़ोटो खिंचाने का इंतजाम था। रास्ते के दोनों तरफ रेलिंग और जंजीर लगी हुई थी ताकि इधर-उधर से बगीचे में जाने की इच्छा रखने वालों से फूल महफूज रहें। परिवार समेत आए लोगों के बच्चे खेलते हुए मजे ले रहे थे।
बाग के सबसे ऊपर के हिस्से में तमाम लोग आराम से बैठे , बतिया रहे थे। कुछ पंजाबी परिवार के लोग खूब जोर-जोर से बातें करते हुए हंस रहे थे। उनमें से कुछ लोग मोबाइल पर कुछ देखता-दिखाता भी जा रहा था। ये मोबाइल आजकल इंसान के साथ अपरिहार्य संगति बन गया है। क्या पता कल को बिना मोबाइल के इंसान को इंसान मानने से ही मना कर दिया जाए। मोबाइल रहित व्यक्ति को ‘मोबाइल दिव्यांग’ घोषित करते हुए उसके लिए कुछ अलग नियम बन जाएँ।
एक आदमी नमाज पढ़ते हुए भी दिखा। सबकी सलामती की दुआ मांग रहा होगा।
वहां दो मुस्लिम लड़कियां बुरके में एक-दूसरे की फ़ोटो खींचती दिखीं। उनको आपस में एक-दूसरे की एक-एक करके फ़ोटो खींचते देखा हमने कहने की सोची –‘लाओ हम तुम्हारा साथ में फ़ोटो खींच दें। लेकिन फिर यह सोचकर कि ऐसा कहने पर वे बच्चियाँ हमको ही न खींच दें , हमने नहीं कहा।
वहीं दो खूबसूरत से लड़के आपस में फ़ोटोबाजी कर रहे थे। उनसे बात करने की मंशा से हमने उनके फ़ोटो उनसे कहकर उनके मोबाइल से खींचे। उनमें से एक बच्चे ने मुझसे कहा –‘लाओ मैं भी आपका फ़ोटो खींच देता हूँ।‘
फ़ोटो खींचने के लिए उसने मुझे एकदम किनारे खड़ा कर दिया। पीछे पूरा निशात बाग, सड़क और सड़क पार का खूबसूरत नजारा और इस खूबसूरती को और खूबसूरत बनाता आसमान था। जिस जगह मुझसे खड़े होने को बच्चे ने कहा उस जगह कीचड़ हो गया था। फिसलने पर दस फुट नीचे गिरने का डर मन में लिए हम खड़े हुए। फिर भी डर गया तो बैठ गए वहीं। बच्चे ने हालांकि कहा भी –‘आप चिन्ता न करें। कुछ नहीं होगा।‘ लेकिन कहना उसका काम , करना(डरना) हमारा काम। हमने डरते हुए फ़ोटो खिंचाया। इसके बाद हमने साथ में भी खिंचाया।
बाद में उस बच्चे से बात हुई। हमने उससे सवाल-जबाब करते हुए मोबाइल उसके सामने किया तो उससे मंजे हुए, अभ्यस्त इंटरव्यू देने वाले की तरह कहा –‘आप पूछो जो पूछना हो! ‘ रैपिड फायर स्टाइल में सवाल-जबाब कुछ इस तरह हुए :-
सवाल : आप क्या करते हैं।
जबाब: मैं ट्रक चलाता हूँ।
सवाल: कब से ट्रक चला रहे हो?
जबाब: चार साल से।
सवाल: लाइसेंस कब मिला?
जबाब: लाइसेंस मिल मुझे 2018 में।
सवाल :पढ़ाई कितने तक की?
जबाब : पढ़ाई टवेल्थ (12 वीं) तक।
सवाल :ट्रक क्यों चलाने लगे?
जबाब : ऐसे ही , शौक था।
सवाल : कहां-कहां ट्रक चलाते हैं ?
जबाब: दिल्ली, दिल्ली जाते हैं।
सवाल: कितने दिन में दिल्ली पहुँच जाते हैं ?
जबाब: दो-तीन लग जाते हैं।
सवाल: यहां कश्मीर में कहां रहते हैं ?
जबाब: यहां मैं रहता हूँ बड़गाम में।
सवाल : आज छुट्टी थी ?
जबाब: हाँ, आज छुट्टी थी इसी लिए आज घूमने आया।
यह कहने के बाद उसने मुझसे कहा –यहां का व्यू दिखाओ। कितना मस्त व्यू आ रहा है कश्मीर का। कहते हुए उसने मेरे मोबाइल का कैमरा सामने की तरफ कर दिया। सामने, नीचे निशात बाग के फव्वारे और सामने खूबसूरत डल झील दिख रही थी। हमने कहा-‘हां बहुत मस्त व्यू आ रहा है कश्मीर का।‘
कश्मीर का व्यू दिखाने के बाद बच्चे ने कैमरा मेरी तरफ करके पूछा-‘कितना अच्छा लगा अंकल आपको यहां?’
हमने कहा –‘बहुत अच्छा लगा।‘
बच्चे ने कहा – ‘बहुत अच्छा लग रहा है न ! मजा आया ! बहुत बढ़िया।‘
इसके बाद उससे कुछ और बातें करके बच्चा अपने दोस्त के साथ चला गया।
बच्चा बहुत खूबसूरत था। बातचीत में आत्मविश्वास और बराबरी का एहसास। व्यवहार में अपनापा। कश्मीर में जगह-जगह मैंने ऐसे बच्चे देखे। दसवीं-बारहवीं तक पढ़ाई किए बच्चे। अधिकतर ड्राइवरी या होटल में काम करने वाले। खूबसूरती ऐसी कि सीधे फिल्मों में हीरो की तरह लांच कर दिए जाएँ।
वहीं पर एक फल वाला फल बेंच रहा था। हमने भाव पूछे तो उसने पहले मुझे एक फल थमा दिया –‘पहले खाकर देखो फिर खरीदना।‘
हमने खाया और पाव भर तौलवा भी लिए। खाते रहे अगले दिन तक एक-एक करके।
लौटते समय बगीचे में दो छोटे बच्चे बगीचे में खेलते दिखे। एक घुटे हुए सर वाला बच्चा दूसरे बच्चे को आगे धकियाते हुए ले जा रहा था। रेल के इंजन और एक डिब्बे की तरह। थोड़ी देर में आगे वाले बच्चे के पैर से जूता निकल गया। बच्चे रुक गए। पीछे वाला बच्चा आगे वाले बच्चे के पाँव में जूता पहनाने लगा। जब तक वह अपना काम पूरा कर सके, बच्चे की मम्मी उसको उठाकर ले गई।
फव्वारे का पानी फिसलापट्टी के झूले पर झूलता सा नीचे बह रहा था। पानी को झूला झूलते हुए फिसलते हुए पानी में मिलना जरूर अच्छा लग रहा होगा। इसीलिए पानी में मिलते हुए किलकिल-किलकिल कर रहा था।
बाहर निकलते हुए फिर से पूरा बाग एक बार भरपूर निगाहों से देखा। दुबारा भी देखा। चलते-चलते फिर से देखा। फ़ोटो लिए, विडियो बनाया और बाहर निकल आए।
बाहर एक बीच की उम्र के बुढ़िया के बाल बेंचते दिखे। बताया कि आई टी आई किए हैं इंस्ट्रूमेंटेशन में। टेलीफोन का हर काम जानते हैं। देखकर बता देंगे क्या खराबी है और ठीक भी कर देंगे। लेकिन जहां काम करते थे वह पैसा समय पर नहीं देता था इसलिए काम छोड़ दिया। अपना काम करते हैं। इसमें आमदनी अनिश्चित है लेकिन काम में किसी के भरोसे तो नहीं।
शाम हो गई थी। सामने डल झील पर नावें इठलाती हुई टहल रहीं थीं। ड्राइवर साहब आ गए थे। हम वापस चल दिए होटल की तरफ!

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