Monday, August 01, 2022

शंकराचार्य मंदिर जहां से पूरा श्रीनगर दिखता है



श्रीनगर जाते समय मित्रों ने शंकराचार्य मंदिर जाने की सलाह दी थी। बताया –‘यहां से पूरा श्रीनगर दिखता है।‘
दोस्तों की बात मानते हुए सुबह डल झील देखने के बाद शंकराचार्य मांदिर देखने गए। गाड़ियां मंदिर से करीब दो-सौ मीटर पहले रोक दी जाती हैं। शायद आगे सड़क संकरी होने के कारण। कुछ दूर पैदल चलाने के बाद वहां पहुंचे जहां से सीढ़ियाँ शुरू होती हैं। सुरक्षा के जवान तैनात थे वहां। चेकिंग के बाद आगे बढ़े।
मंदिर बहुत पुराना है। अलग-अलग जानकारी मिलती है इस बारे में। एक जानकारी के अनुसार राजा गोपादात्य ने 371 ई. पूर्व इसका निर्माण करवाया था। एक और जानकारी के अनुसार सम्राट अशोक के पुत्र जलूका ने 200 ईपूर्व इसका निर्माण करवाया था। मंदिर ऊंचाई पर है। समुद्र तल से 1100 फुट ऊंचाई पर। लेकिन ऊंचाई का एहसास तो सीढ़ियों के चढ़ने से होता है। 243 सीढ़ियाँ हैं। डोंगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनवाई थीं।
जब सीढ़ियां चढ़कर जाने में लोग हाँफ जाते हैं तो उसके पहले क्या होते होंगे। बिना सीढ़ियों के मंदिर बनने में कितनी मेहनत लगी होगी इसका अंदाज ही लगा सकते हैं।
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आगे बढ़े। शुरू में जल्दी-जल्दी कोशिश की चढ़ने की। कुछ सीढ़ियाँ बाद ही हाँफ गए। सांस तेज हो गई। सांस तेज तो संतुलन बनाने के लिए अपन धीमे हो गए। धीमे हुए तो फिर रुक भी गए। सीढ़ियों के दोनों तरफ चौड़ी सीमेंट की चबूतरा टाइप रेलिंग बनी थी। लोग जगह-जगह बैठकर सुस्ता रहे थे। हम भी सुस्ताए कई बार।
करीब पचास सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक जगह एक बुजुर्ग सरदार जी किताबों की दुकान लगाए दिखे। आरती संग्रह, भजन संग्रह और आम लोगों की रुचि की किताबें। पूजा आदि से संबंधित सामग्री भी थी। पास ही शौचालय भी था। लोग सहज ही उस जगह रुक कर किताबें और पूजा सामग्री देख, खरीद रहे थे। देखकर लगा –‘बाजार हर जगह अपनी जगह बना लेता है। जहां इंसान है , वहाँ बाजार है।‘
कुछ देर वहां ठहरकर आगे बढ़े। दस-दस सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ठहरकर थोड़ा सुस्ता लेटे। आसपास के नजारे और लोगों को देख लेटे। फिर आगे बढ़ लेते।
लोग ऊपर चढ़ते हुए फ़ोटो खिंचा रहे थे। कुछ लोगों के हमने भी खींचे। फ़ोटो खींचने के बहाने उनसे बात भी करने का मौका मिलता। यात्रियों में अधिकतर वे लोग थे जो अमरनाथ यात्रा के लिए या तो आए थे या वहां से वापस लौट रहे थे। एक बुजुर्ग जोड़ा अकेले-अकेले फ़ोटो खिंचा रहा था। हमने उनका मोबाइल लेकर उनके फ़ोटो खींचे। उनको पास-पास, सटाकर खड़ा करते हुए। क्षण भर की झिझक के बाद उन्होंने ‘जोड़े की तरह’ फ़ोटो खिंचवाए। हमको धन्यवाद भी दिया।
सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर पहुंचे तो मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए बोर्ड लगा था। जानकारी के अनुसार:
-गोपद्री नामक पहाड़ी पर स्थित यह शिव मंदिर मूलत: ज्येष्ठेश्वर को समर्पित था।
-अद्वैतवाद के महान प्रणेता शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध इस पहाड़ी से श्रीनगर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
-मंदिर का वितान एवं शाहजहाँ ने 1644 ई में बनवाए।
-मंदिर का वितान मूलरूप से अंडाकार था जो कंजूर पत्थरों से बनवाया गया था।
-शैलीगत विशेषताओं के आधार पर मंदिर को छठी-सातवीं शताब्दी का माना जा सकता है।
भारतीय पुरातत्व विभाग की सूचना के अनुसार मंदिर छठी-सातवीं शताब्दी का माना जा सकता है। दीगर जानकारियों के अनुसार यह 371 ईपूर्व/200 ई पूर्व बनवाया गया मंदिर। मतलब आठ सौ ,हजार साल का अंतर इसके निर्माण के समय में। जो हो हमारे लिए बहुत पुराना है, यही बहुत है।
मंदिर में जाने के निर्देश के अनुसार चमड़े का सामान नहीं ले जाना था। हमने बेल्ट उतार कर बैग में रखी। बिग और जूता वहीं रैक में रखकर मंदिर पहुंचे। पर्स अलबत्ता जेब में पीछे रखे रहे। यह मानते हुए कि पर्स चमड़े का नहीं होगा और होगा भी तो पीछे है।
हम लोग अपनी सुविधा के अनुसार नियमों की अवहेलना के शानदार तर्क गढ़ने में उस्ताद होते हैं।
मंदिर में बहुत भीड़ नहीं थी लोगों की। लोग आराम से दर्शन कर रहे थे। वहीं मंदिर के प्रांगण में खड़े होकर फ़ोटो खिंचा रहे थे। जोड़े से आए लोग ज्यादा और तरह-तरह के पोज में। सेल्फ़ी भी खूब ली जा रही थी।
कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर का गर्भ गृह था। उसमें शिवलिंग स्थापित था। उसके दर्शन करके लोग मंदिर के चारों तरफ घूमते हुए फ़ोटो ले रहे थे। पूरे श्रीनगर का दृश्य दिख रहा था वहाँ से। डल झील के सीन भी दिख रहे थे। मकान एक-दूसरे से गले मिलते हुए दिख रहे थे।
वहीं एक परिवार के लोग उत्साहित होकर फ़ोटो ले रहे थे। हमने उनकी फ़ोटो ली तो उन्होंने हमको भी साथ लेकर फ़ोटो लिए।
मंदिर से नीचे वह छोटा मंदिर भी था जहां आदि गुरु शंकराचार्य ने आकार तपस्या की थी। छोटे से कमरे में स्थित मंदिर में झुककर घुसे। कुछ देर वहां बैठे। हम आज आए यहां जब तमाम लोग साथ हैं। शंकराचार्य जी सैकड़ों साल पहले आए होंगे तब यहां कोई उनके अलावा पता नहीं होगा भी या नहीं। कितने दिन यहां रहे होंगे। सब कयास का विषय।
शंकराचार्य तपस्या स्थल को देखने के बाद फिर वापस हो लिए। आहिस्ते-आहिस्ते। रास्ते में मिलने वाले लोग पूछते जा रहे थे –‘अभी कितनी सीढ़ियाँ और हैं ? कितना समय लगेगा?’
नीचे उतर कर वहां स्थित पानी की टंकियों में से एक में पानी पिया। जिन लोगों ने टंकियाँ लगवाई थी उनके नाम लिखे थे। पुण्य सीधे उनके खाते में जा रहा होगा। एक टंकी में पानी था नहीं। उनका पुण्य का खाता कुछ देर के लिए सस्पेंड हो गया होगा।
शंकराचार्य मंदिर देखने के बाद बाकी बचे हुए बाग देखने के लिए बढ़ गए।

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