गुलमर्ग से पहलगाम के लिए नाश्ता करके निकल लिए। गुलमर्ग में रहने का इंतजाम आर्मी की एक कॉटेज में था। बड़ा, शानदार कमरा, हीटर, पढ़ने की मेज, ड्राइंगरूम,डायनिंग स्पेश और किचन के अलावा सबसे आर्कषक पहलू कमरे में रखी किताबें थीं। पाओलो कोहलो की किताबें, ईराक युध्द से जुड़ी किताब और सेना से जुड़ी किताबें। किताबें सब अंग्रेजी में। पढ़ तो नहीं पाए लेकिन मन किया ऐसी जगह पर हफ्ते-पन्द्रह दिन रहा जाए।
गुलमर्ग से निकले थे करीब साढ़े दस बजे। थोड़ी ही देर में हाइवे नम्बर 44 पर आ गए। देश का सबसे लंबा हाइवे। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु को जोड़ने वाले इस राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लम्बाई 4112 किलोमीटर है।
हाइवे के दोनों तरह केसर के खेत हैं। केसर की खेती नवम्बर में होती है। फिलहाल खेत साफ दिख रहे थे।
ड्राइवर ने रास्ते में कहवा पिलाने की बात कही। एक जगह गाड़ी खड़ी की। वहां मौजूद सीआरपीएफ के जवान ने मना कर दिया। बोला -'इस जगह 2 गाड़ी की परमिशन थी। पहले ही यहां 5-6 गाड़ियां खड़ी हैं। यात्रा के समय इससे ज्यादा गाड़ियां खड़ी करने की अनुमति नहीं।'
ड्राइवर ने कहा-'साहब को कहवा पिलाना है।'
जवान ने कहा-'आगे की दुकान पर ले जाओ। वहां गाड़ी खड़ी करने की जगह है।'
यह कहने के बाद उसने मुझे भी अपनी मजबूरी बताई कि यात्रा के कारण ऐसा करना जरूरी है।
ड्राइवर लगभग बेमन से आगे बढ़ा। आगे 'जमीदार केसर किंग' की दुकान मिली। शानदार दुकान में केसर, कहवा, शिलाजीत की ढेर सारी पैकिंग लगी हुई थी।
कहवा आया। पिया। बताया कि 11 मसालों को मिलाकर बनाया जाता है कहवा। तमाम फायदे हैं। एक चम्मच कहवा में चार कप बनते हैं। मीठे के लिये शहद या चीनी मिलाते हैं। केसर के भी कई गुण बताये। दाँत के नीचे दबाने पर कड़वा लगे वही असली केसर है। शिलाजीत मर्दानगी की दवा के रूप में प्रसिद्ध है लेकिन सबसे जरूरी उपयोग इसका जोड़ों के दर्द में होता है।
कुछ लेने का मन न होते हुए भी कुछ ले ही लिया। 200 ग्राम कहवा 1050 रुपये का, पांच ग्राम केसर 1500 रुपये की और 50 ग्राम शिलाजीत 1600 रुपये की।
दुकान की फोटो ली। वीडियो भी बनाया। चलते समय कुछ सूखे मेवे टाइप भी उठा लिए। दुकान के मालिक से बातचीत होने लगी। मालिक का नाम जलालुद्दीन खांडे है। मूलतः अफगानिस्तान के रहने वाले थे इनके पूर्वज। तीन चार पीढ़ी पहले आये कश्मीर। पठान लोग हैं। पठानों में भी खांडे जाति के हैं जलालुद्दीन।
दुकान 1920 से है। दो बेटे हैं जलालुद्दीन के। बड़ा बेटा पुणे और दूसरी जगह काम देखता है। छोटा लोकल काम देखता है। छोटा बेटा फुटबाल का खिलाड़ी भी है। बेटे को उसके खेल के लिए सम्मानित किये जाते हुए कुछ फोटो भी थे काउंटर पर ही। कई प्रमाणपत्र आदि भी थे।
अफगानिस्तान का जिक्र आने पर मैंने सहज रूप में कहा -'आजकल तो अफगानिस्तान के हालत बड़े खराब हैं। तालिबान ने कब्जा कर रखा है।'
इस पर जलालुद्दीन जी ने कहा -'तालिबान जबसे आये हैं वहां के हालात सुधरे हैं। पहले सब गड़बड़ था। अब ठीक हो रहा है।'
हमने तमाम तालिबानी क्रूरताओं और महिलाओं के प्रति उनके रवैये का जिक्र करते हुए पूछा-'तालिबान ठीक कैसे कर रहे हैं? लड़कियों को पढ़ने नहीं दे रहे। जरा-जरा सी बात पर हिंसा कर देते हैं।'
इस पर शांत किंतु दृढ़ तरीके से जलालुद्दीन जी ने मुझे बताया कि वे जो कर रहे हैं धरम के हिसाब से कर रहे हैं। लड़कियों को पढ़ने में कोई पाबंदी नहीं लेकिन अलग पढ़ें और ठीक कपड़ों में पढ़ें। फुटबाल खेलें लेकिन शरीर ढंककर।
यह भी बताया कि करजई और उसके पहले गनी धर्म के खिलाफ काम और व्यवहार कर रहे थे। अभी सब ठीक हो रहा है।
65 साल के जलालुद्दीन के दोनों बेटों की शादी ही चुकी है। दादा कहने वाली एक लड़की और एक लड़का है घर में। हमने पूछा -'अपनी जिंदगी से खुश हैं वो?'
उन्होंने कहा -'हां मैं पूरी तरह खुश हूं। सब जिम्मेदारी पूरी हो गई हैं।'
अफगानिस्तान जाने के सवाल पर बोले-'दादा जी गए थे। इसके बाद कोई नहीं गया। न कोई आगे इरादा।'
कहवे के पैसे की बात पर बोले जलालुद्दीन -'हम कहवे के पैसे नहीं लेते। दादा जी ने मना किया था।'
एक बार और कहा मैंने पैसे लेने के लिए तो उन्होंने एक कप कहवा और पिलाया।
सारी बातचीत पर सोचते हुए लगा कि जिसके पास ताकत होती है वह अपने तर्कों के आधार पर अपने काम को सही ठहरा लेता है। उसके अनुयायी भी उसी की बात को सही मानते हैं। अमेरिका ने भी इराक को मनगढ़न्त तर्कों के आधार पर बर्बाद कर दिया। इसके पहले जापान के दो शहरों की आबादी की सदियों के लिए बर्बाद कर दिया। स्टालिन को तमाम दुनिया तानाशाह कहती है, वहीं उसको सही ठहराने वालों की भी कमी नहीं।
चलते समय हमने गले मिलकर फोटो खिंचाई। जलालुद्दीन जी ने कुछ आलू बुखारे दिए। हम दुकान से निकल आये।
बाहर गाड़ी के पास ही काले, चीकट कपड़ों में एकदम फटेहाल व्यक्ति दिखा। जमीदार केसर किंग की दुकान के एकदम सामने इतना फटेहाल इंसान दुकान के नाम का एकदम उल्टे भाव पैदा कर रहा था। विद्रूप सच।
थोड़ी ही दूर पर आगे एक जगह दिखाते हुए ड्राइवर ने बताया -'यहाँ पुलवामा अटैक हुआ था।' आगे एक जगह दिखाई जहां क्रिकेट के बल्ले का काम होता है।
चलते हुए भूख लग आई थी। पहलगाम से पहले एवरग्रीन रिजॉर्ट में रुके। ड्राइवर ने खाने के लिए साथ आने से मना किया। बोला -'ड्राइवरों के लिए अलग होता हैं यहां। पैसा नहीं पड़ता। आप अंदर खा लीजिए। मैं ड्राइवरों के इंतजाम में वाले हिस्से में खा लेता हूँ।'
वेटर से यह बात पूछी तो उसने पुष्टि की। वेटर बिजनौर के अजय थे। आठ-नौ साल से यहां काम कर रहे। खाने-रहने का इंतजाम होटल से ही होता है। आठ-नौ महीने बाद एकाध महीने में घर जाते हैं।
'घर से इतनी दूर काम कर रहे हो' के जबाब में अजय ने कहा -'पेट और परिवार के लिए सब करना होता है।'
होटल के बाहर छत पर सुरक्षा जवान तैनात दिखे। अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिहाज से सब इंतजाम हैं।
हम लोग पहलगाम के लिए बढ़ लिए। पहलगाम हमारा इंतजार कर रहा है।
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