Friday, August 05, 2022

पहलगाम में एक भला आदमी



पहलगाम टैक्सी स्टैंड पर चाय पीने के बाद काउंटर पर आए। टैक्सी के लिए काउंटर पर एक बार फिर पता किया। अरु वैली और बेताब वैली दोनों के लिए एटीआस 2050 रुपये में उपलब्ध थी। हमने गाड़ी लाने के लिए बोल दिया। अकेले ही जाने का विचार था।
हमने गाड़ी के लिए बोल तब तक वहीं खड़े एक परिवार ने साझा गाड़ी का प्रस्ताव किया। परिवार में तीन लोग थे। मियां-बीबी और उनके साथ बच्ची। हमने उनके साथ चलना फौरन स्वीकार कर लिया। 2050 रुपए की जगह 500 रुपए में यात्रा बुरा प्रस्ताव नहीं था। हमारे चलने का पहले उन्होंने यह भी प्रस्ताव किया –‘एक सवारी और ले लेते हैं।‘
एक सवारी और लेने का मतलब खर्च और सस्ता। हमने कहा –‘इस गाड़ी में पाँच लोग ठीक से बैठ नहीं पाएंगे। चार ही ठीक हैं।‘ उन्होंने मेरी बात मान ली। मैंने भुगतान कर दिया। उन्होंने मुझे 1500 रुपए दे दिये। हम आगे बैठ गए। वे तीनों पीछे बैठ गए। गाड़ी अरु वैली के लिए चल दी।
पहलगाम से अरु वैली करीब 12 किलोमीटर दूर है। अरु नदी निकलती है यहां से। यह लिद्दर की सहायक नदी है। इसी के नाम पर गांव और घाटी का नाम पड़ा। यहाँ कश्मीर घाटी के सबसे बड़े ग्लेशिएर Kolahoi का बेस कैंप है। इसके अलावा अरु गाँव तारसर-मारसर Tarsar झील , Marsar झील , हरभगवान झील और कैटरीनाग Katrinag घाटी जाने के लिए भी बेस कैंप है। लगभग 20 झीलें हैं अरु घाटी के आसपास। जाड़े में बर्फ जमने पर यहां स्कीइंग होती है।
रास्ते में बातचीत के दौरान पहलगाम के अनुभव साझा हुए। ‘घोड़े के कितने पैसे दिए’ पर बात हुई। हमने बता दिये जो रेट लिखे थे वहाँ वो दे दिए। सुनते ही शर्मा जी ने फौरन कहा-‘आप भले आदमी हैं।‘
‘भले आदमी कहने का मतलब’ - बेवकूफ आदमी हुआ। यह उन्होंने सीधे-सीधे न कहते अच्छे शब्दों में कहा। यह मेरे लिए नई बात नहीं थी। पहले भी तमाम लोग कहते रहे हैं –‘आप असल में भले आदमी हैं। सबको अपने जैसा समझते हैं। सबसे अच्छा व्यवहार करने की कोशिश करते हैं।‘ कुल मिलाकर उनके कहने का मतलब यही होता है –‘आप बेवकूफ आदमी हैं।‘
आगे खुलासा करते हुए शर्मा जी ने बताया कि वे लोग तय डर से आधी खर्चे में घुड़सवारी करके आए हैं। यह भी बताया उन्होंने कि उनको भी वही दाम बताए थे घोड़े वाले ने लेकिन उन्होंने मोलभाव करके आधे दाम पर तय किया और घूमकर आए।
हम बहुत देर तक और बहुत दूर तक यह बात सोचते रहे कि तय दर से आधे में कैसे घोड़ेवाला राजी हुआ। फिर याद आया कि पहलगाम में आरिफ़ ने बताया था कि उनके घोड़ों के नंबर चार-पाँच दिन में आते हैं। ऐसे ही किसी दिन में जब कोई काम नहीं होगा तब कोई घोड़े वाला मजबूरी में मान गया होगा। हमको अपने ज्यादा पैसे देने से ज्यादा यह बात खलती रही कि किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर उससे दाम कम कराये गए और इसको अपने पुरुषार्थ के रूप में देखा गया। लेकिन बाजार का यही रूप है। मांग और आपूर्ति का नियम।
बहरहाल, आसपास के सौन्दर्य को निहारते हुए आगे बढ़े हम लोग। लिडडर नदी हमारी बाईं तरफ थी। कभी सड़क के एकदम पास, कभी थोड़ा दूर। उसकी बलखाती, इठलाती खूबसूरती देखते ही रहने का मनकर रहा था। बाईं तरफ खूबसूरत हरे-भरे पहाड़ भी थे। पहाड़ लगता था नदी की खूबसूरती को देखकर स्तब्ध होकर उनको एकटक निहारते खड़े हो गए हों। पेड़ों के बीच चलती हवा उनको हिलाने-डुलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन पहाड़ उस सबसे बेखबर एकटक नदी के सौन्दर्य को निहारते खड़े थे।
कई जगह रास्ते के फ़ोटो और वीडियो लिए। कुछ देर में हम अरु घाटी पहुँच गए। ड्राइवर ने एक घंटे का टाइम दिया घूमने का और गाड़ी स्टैंड पर ले गया।
हम लोग आगे बढ़े। एक छोटा सा खूबसूरत सा पार्क था वहां। गेट पर कुछ लोग अपनी गाड़ियों में स्थानीय सामान बेंचने के लिए वहां मौजूद थे। लेकिन ग्राहक कम ही दिख रहे थे वहाँ।
पार्क एक अंदर शर्मा परिवार घूमने और यादें सँजोने में लग गया। अपन वहीं मौजूद एक झालमूडी के पास बैठकर उससे बतियाने लगे। वो भी खाली था, हम भी खाली। बातें हुई खूब।
राजकुमार नाम है उनका। 53 साल उम्र। भागलपुर के रहने वाले। तीन बच्चे हैं। दो बेटी एक बेटा। एक बेटी की शादी हो गई। दामाद पलम्बर है। जानपहचान में शादी हुई। भागलपुर में ही रहते हैं सब लोग। यहां बीस-पचीस साल पहले आए थे। फिर यहीं बस गए रोजी –रोटी के लिए। किराये पर रहते हैं। जब घर जाते हैं , सब सामान ऐसे ही छोड़ जाते हैं। कोई सामान चोरी नहीं होता। रोज सुबह पहलगाम से आते हैं , शाम को चले जाते हैं। पहलगाम में सब लोग जानते हैं। अभी लाख-दू लाख रुपया का जरूरत हो, फौरन मिल जाएगा। व्यवहार है अपना।
राजकुमार ने अपने धंधे के गुर भी बताए। बताया अभी लोग कम आ रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के कारण। नहीं तो इतना टूरिस्ट आता है कि दम मारने का फुरसत नहीं होता। अभी फ्री हैं तो आपसे बात कर रहे हैं। टूरिस्ट का टाइम होता तो जबाब नहीं देते बात का।
इस बीच हमने एक प्लेट झालमूडी बनवाया और खाते हुए बात करते गए राजकुमार से। लोगों के मोलभाव करने की आदत और उससे निपटने के किस्से भी सुनाए राजकुमार ने। बताया-‘कोई बोलता है चालीस में नही बीस रुपया में लगाओ। हम कहते हैं ले लेओ। फिर हम जो कोन बनाते हैं वो पतला कर देते हैं। आधा झालमूडी आता हैं उसमें। जो आपको अभी साथ रुपये में दिए न वही तीन कोन में करके बीस –बीस में दे देते हैं। वो समझता है हम सस्ता करा लिए लेकिन हम तो उतना में ही बेचते हैं। कोई घर से थोड़ी खिलाएंगे किसी को। कभी-कभी मिर्च भी तेज कर देते हैं। ग्राहक काम खाकर ही दाम देकर चला जाता है।‘
राजकुमार से बात करके लगा हम किसी मैनेजमेंट गुरु से बात कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि यहां जितना भी खाने-पीने का सामान बेंचने वाला लोग है वो सब ज्यादातर बिहार , यूपी से है। लोकल माल बेंचने वाला सब कश्मीर का है ज्यादातर।
करीब एक घंटे बाद शर्मा जी अपने परिवार के साथ टहल के आ गए। हम वापस चल दिए।
रास्ते में बातचीत के दौरान पता चला कि शर्मा जी की बेटी अभी 12 वीं में है। आगे चलकर पायलट बनना चाहती है। बेटा सीए की तैयारी कर रहा है। इसीलिए आया नहीं साथ में घूमने। शर्मा जी भी एक पब्लिक सेक्टर कंपनी में चार्टेड एकाउंटेंट हैं।
अरु वैली से वापस होकर हम बेताब घाटी की तरफ चल दिए।

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