होटल के जिस कमरे में ठहरे थे उसकी खिड़की से बौद्ध स्तूप दिखता है। बुकिंग के समय ही एक विकल्प के रूप में मौजूद है -स्तूप की तरफ का कमरा। हालांकि पहले कभी आये नहीं थे लेकिन बताया दोस्तों ने तो वही बुक कराया था।
सुबह नींद जल्दी ही खुल गयी। सफर में अकसर ऐसा होता। जितनी भी देर से सोएं, जग जल्दी ही जाते हैं। उठकर खिड़की के पास आये। सामने स्तूप दिख रहा था। अच्छी तरह से देखने के लिए खिड़की खोलकर देखने के लिहाज से खोली तो कड़-कड़ की आवाज हुई। झांककर देखा तो खिड़की में कांच की फोल्डिंग कीलें सरीखी लगी थीं। खिड़की खोलते ही खुल गईं कीलें। 4-5 इंच लम्बी होंगी कीलें। खासतौर पर बनवाई गईं होंगी।
खिड़की पर इन कांच की कीलों का कारण बाद में समझ आया। शायद कबूतरों को खिड़कियों पर बैठने से रोकने के लिए यह इंतजाम किया गया हो। कबूतर खिड़की पर बैठकर अपने परिवार सहित गुटरगूं करते हुए बीट करके होटल गन्दा न कर पाएं इसलिए कांच की कीलों की बैरिकेटिंग टाइप की गई होगी।
सामने दिखते स्तूप पर कोई पहरेदारी नहीं थी। उसके ऊपर तमाम कबूतर दीगर पंक्षियों के साथ मस्ती और मजे से उड़ते हुए शायद होटल को चिढ़ा रहे थे कि देख बेट्टा यहां और खुली जगह है हमारे लिए। एक तुम्ही नहीं हो बैठने के आसरा हमारा।
कमरे में केतली पर पानी गरम करके चाय बनाई। पीकर चल दिए स्तूप देखने। पांचवीं मंजिल पर कमरा था। लिफ्ट से उतरे। उतरकर डाइनिंग हाल होते हुए बाहर आये। स्विमिंग पूल के बगल से गुजरते हुए पगडंडी नुमा रास्ते से होते हुए होटल के पिछवाड़े पहुंचे। वहां गेट पर दरबान था। उससे स्तूप का रास्ता पूछा और निकल लिए बाहर।
गेट के बाहर सड़क पर आते ही चहलपहल भरा जनजीवन दिखने लगा। लोग सड़क पर तेजी से, तसल्ली और हड़बड़ाते हुए आते जाते दिखे। घरों के सामने बैठे, खड़े लोग दिखे। एकाध गाय दिखी। बच्चे स्कूल जाते दिखे। स्कूल जाते बच्चे अकेले भी दिखे और साथ में भी। समूह में भी। इतनी सुबह स्कूल जाते बच्चे देखकर अच्छा लगा और हल्का ताज्जुब भी हुआ कि यहाँ स्कूल इतनी सुबह शुरू हो जाता है।
ज्यादातर बच्चे स्कूल यूनिफार्म में थे। खूबसूरत, प्यारे, चहकते, चमकते बच्चे। बतियाते, गपियाते। एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखे जाते। कुछ बच्चे साइकिल और मोटरसाइकिल पर भी जा रहे थे लेकिन ज्यादातर पैदल ही थे। किसी भी देश, समाज में स्कूल जाते बच्चे देखना सबसे अच्छे अनुभवों में से एक होता है।
गली में दुकानें ज्यादातर बन्द थीं। एकाध जनरल स्टोर उनींदे से आँख मूँदते हुए खुल रहे थे। कोई-कोई चाय की दुकान भी चहकती दिखी।
स्तूप की गली के मुहाने पर ही सब्जियों के ठेले लगे थे। जमीन पर भी दुकाने लगीं थीं। सबसे पहली ठेलिया पर एक महिला आलू और दीगर सब्जियां ठेलिया पर सजा रही थी। पीठ पर बच्चे लादे हुयी थी। पीठ पर बच्चा लादने का जुगाड़ शायद इंसान ने कंगारू से सीखा होगा। कंगारू सामने रखता है बच्चा। इंसान पीठ पर।
आगे गली में तमाम लोग बंद दुकानों के चबूतरे पर बैठे बौद्ध धर्म से संबंधित सामग्री बेचते दिखे। एक बौद्ध बीच सड़क पर बने खंभे के पास बैठा एक चपटा डमरू की तरह का बाजा बजाते हुए सामने रखी किताब से कुछ बाँचता जा रहा था। मंत्रोच्चार की तरह। बुद्ध धर्म की कोई सीख रही होगी। वह अपने काम में इतना तल्लीन था कि उसको डिस्टर्ब करने की हिम्मत नहीं हुई।
वह इंसान न जाने कितने समय ऐसा कर रहा होगा। उसकी जिंदगी में न जाने कितने उतार-चढ़ाव आए होंगे। कैसे उसने इस तरह पूजा करना और यह जिंदगी चुनी होगी इस सबके बारे में मुझे कुछ अंदाज नहीं। लेकिन अपने आप में उसकी जिंदगी एक महाआख्यान रही होगी। हरेक का जीवन अपने में एक अनलिखा महाआख्यान होता है।
आगे बढ़ने पर देखा कि कई जगह छोटे-छोटे दीपक बड़ी सी चौकोर ट्रे में रखे हुए हैं। किसी में कुछ कम किसी में कुछ ज्यादा। शायद स्तूप में पूजा के लिए इन दीपकों को ले जाते हैं। आगे मंदिर के सामने तो पूरी-पूरी ट्रे इन दीपकों से भरी दिखी। बहुत खूबसूरत था इन दीपकों को देखना।
स्तूप के सामने पहुँचने पर देखा कि सैकड़ों लोग स्तूप की परिक्रमा कर रहे थे। परिक्रमा करते हुए स्तूप की चहारदीवारी में लगे चक्र को घुमाते जा रहे थे। जगह -जगह हवन सामग्री से हवन हो रहा था। स्तूप के ऊपर पक्षी मजे उसे उड़ते हुए आनंदित हो रहे थे।
वहीं स्तूप के सामने बने मंदिर सी सीढ़ियों पर तमाम लोग बैठे चाय पी रहे थे। हमने भी एक चाय ली। महिला एक बड़े कंटेनर में चाय लिए सबको चाय पिला रही थी। 20 रुपए की एक चाय। चाय पीकर हमने महिला की फ़ोटो लेने के लिए पूछा। वह कुछ कहे तब तक साथ के आदमी ने बरज दिया -'नहीं, फ़ोटो नहीं लेना का।'
हम अपना मोबाइल नीचे करते तब तक चाय वाली महिला ने साथ के पुरुष की बात काटते हुए ह कहा -'ले लो फ़ोटो।' आदमी बेचारा चुप दूसरी तरफ देखने लगा। महिला सामने देख रही थी। हमने उसकी फ़ोटो ली। उसको दिखाई। उसने मुस्कराते हुए कहा -'बढ़िया है।'
हम भी खुश होकर आगे बढ़ गए। यह नेपाल की एक खुशनुमा सुबह की शुरुआत थी।
https://www.facebook.com/share/p/Fkt4YRCbJtjwDa3L/
No comments:
Post a Comment