कहीं बाहर जाने पर सबसे बड़ी चुनौती खाने की होती है। 3 साल पहले जब अमेरिका गए थे तो न्यूयार्क की सड़कों पर घण्टों शाकाहारी खाने के लिए भटकते रहे थे। जब एक पंजाबी ढाबा मिला था तो जो सुकून मिला था उसका बयान मुश्किल है। महसूस ही किया जा सकता है उसे।
नेपाल में खाने की तो कोई समस्या नहीं हुई। शाकाहारी खाना आराम से होटल में और बाहर भी मिला। इसी क्रम में कुछ नए अनुभव भी हुए।
भोजन की तलाश में भटकते हुए कई ढाबे दिखे। एक जगह जलेबी जैसी कोई चीज बनती देखी। पता चला यह सेल रोटी है। नेपाल का खास व्यंजन।
पहली बार नाम सुना था सेल रोटी। घुस गए दुकान में। छुटकी सी दुकान। बाहर समोसा, पकौड़ी जैसी चीजों के साथ सेलरोटी बन रही थी। चाय तो सदाबहार पेय पदार्थ है भारत की तरह नेपाल में भी।
सेल रोटी बनने की विधि देखी। चावल के आटे को में शक्कर या कोई और मीठा मिलाकर एक कुप्पी नुमा बर्तन में डालकर जलेबी की तरह कड़ाही में तलते हैं। पकौड़ी की तरह तलकर खाने के लिए तैयार हो जाती है रोटी। जलेबी से इस मायने में अलग होती है कि जलेबी को तलने के बाद उसको मीठा करने के लिए चासनी में डाला जाता है। जबकि सेल रोटी में मीठा उसके आटे में ही मिला होता है। कहीं-कहीं मसाला भी मिलाते हैं।
सेलरोटी के बारे में पढ़ते हुए जानकारी मिली कि सेल रोटी बनने की शुरुआत 800 साल पहले हुई नेपाल में। पहले इसमें मीठा नही और मसाला नहीं मिलाते थे। बाद में इसके स्वरूप में बदलाव आता गया और आज के रूप में पहुंची इसको बनाने की विधि।
सेल रोटी का नाम नेपाल में पैदा होने वाले चावल के प्रकार सेल से जुड़ा है। अपने यहां भी चावल का एक नाम सेल्हा चावल सुनते हैं। एक और जानकारी के अनुसार नेपाल में नए साल के मौके पर बनाये जाने के कारण इसका नाम साल से होते हुए सेल हो गया। अब तो यह साल भर बनती है और दुकानों में समोसे, पकौड़ी की तरह सर्वसुलभ है।
दो-दो सेलरोटी खाने के बाद चाय पी गईं। इतने में ही तृप्त हो गए। लंच हो गया।
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