नई जगह से सनीवेल पब्लिक लाइब्रेरी पास ही थी। करीब दस मिनट की दूरी। रास्ता सीधा। नाश्ता करके निकल लिए लाइब्रेरी।
रास्ते मे घर, मकान , सड़क के अलावा स्कूल भी मिले। एक स्कूल पब्लिक स्कूल था। चौराहे के एक कोने पर।
आगे एक और स्कूल दिखा। छोटे से मकान में। सजा हुआ था स्कूल। बाहर ही बच्चों के लिए काम के रजिस्टर भी रखे थे। हमने स्कूल देखने के लिए आफिस मे बात की। उन लोगों ने कहा –‘स्कूल देखने के लिए पहले से अनुमति लेनी होती है। आपने कोई अनुमति नहीं ली है इसलिए आपको हम स्कूल दिखा नहीं सकते।‘
हम आगे बढ़ गए। एक छुटके से घर मे इतने प्यारे अंदाज से वेलकम लिखा था। मन किया चले ही जाएँ घंटी बजाकर। स्वागत के लिए प्रस्तुत होकर करें- ‘बढ़िया चाय पिलाओ।‘ लेकिन पता था यह वेलकम लिखने के लिए है, अमल के लिए नहीं।
लाइब्रेरी के पास पहुंचकर खोजने के बहाने इधर-उधर टहलते रहे। कई लोगों से रास्ता पूछा। कई लोगों से बतियाए। एक घर के बाहर लाइब्रेरी से संबंधित कोई सूचना का कागज चिपका था। हमको लगा यही लाइब्रेरी है। खड़े हो गए वहीं। तब तक कोई अंदर से निकला। पूछा तो उसने बताया –‘लाइब्रेरी बगल मे है।‘
बगल मे पहुंचे तो बड़े से अहाते के बाहर तमाम लोग धूप मे पढ़ी कुर्सियों पर बैठे किताबें पढ़ रहे थे। एक महिला अपनी छोटी बच्ची को किताब के चित्र दिखाती हुई पढ़ा रही थी। कुछ लोग खाते-पीते हुए किताबों मे रमे हुए थे। लाइब्रेरी के बाहर ही एक किताब पढ़ते हुए आदमी की मूर्ति लगी हुई थी। मूर्ति मे आदमी बैठा हुआ हाथ मे बड़ा पाव टाइप का सैंडविच हाथ में लिए किताब पढ़ने मे मशगूल था। मूर्ति का आदमी मजदूर लग रहा था जो अपने काम के दौरान खाते हुए पढ़ाई कर रहा था। बहुत आकर्षक मूर्ति।
लाइब्रेरी के अंदर घुसते ही एक रैक पर कबाड़ के बने हुए कुछ सामान लगे हुए थे। वहाँ दिए विवरण के अनुसार मशहूर इंजीनियर सिड सिडेंसटीन (Sid Seidenstein) अपने रिटायरमेंट के बाद कबाड़ से कलाकृतियाँ बनाने का काम किया। अंग्रेजी में इसके लिए शब्द है –Bricolage जिसका मतलब है उपलब्ध सामग्री से निर्माण।
सिड करीब नब्बे साल की उम्र तक काम करते रहे (24 सितंबर, 1932 से -20 जुलाई 2022)। इन कलाकृतियों को बनाने की शुरुआत की कहानी बताते हुए सिड की पत्नी का ने बताया :
“एक दिन हम लोगों ने मार्डन आर्ट की शुरुआत का विज्ञापन देखा। विज्ञापन देखकर उन्होंने कहा:” ज्यादातर मार्डन आर्ट देखकर ऐसा लगता है जैसे कबाड़ को एक जगह रख दिया गया हो। मुझे लगता है कि मैं आम तौर पर फेंक दी जाने वाली सामान्य चीजों से बढ़िया कलाकृतियाँ बना सकता हूँ।“
इसके बाद सिड ने अपने गैराज में पुरानी चीजें इकट्ठा करके उनसे कलाकृतियाँ बनाने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे यह काम बढ़ता गया। दोस्तों ने अपने पास की तमाम प्रयोग की हुई चीजें सिड को देनी शुरू कीं और सिड ने तमाम कलाकृतियाँ बनाई।
वहाँ लगे नोटिस के अनुसार अगर किसी को कोई कलाकृति पसंद आती है तो वो उसे अपने साथ ले जा सकता था- मुफ़्त में। यह भी लिखा था कि अगर कोई कलाकृति टूट जाती है तो उसे गोंद से जोड़ ले। उन कलाकृतियों में कुछ पुरानी फ़्लापी से बनाई गई थीं, कुछ पुराने तारों से और तरह-तरह के कबाड़ से। हमने कोई कलाकृति वहाँ से ली नहीं। सोचा यह यहीं अच्छी हैं। हम ले जाएंगे तो अच्छी-खासी कलाकृति को कबाड़ मे ही बदल देंगे।
सिड की कलाकृतियाँ देखकर मुझे चंडीगढ़ में बना राक गार्डन याद आया। स्व. नेकचन्द जैन जी ने अपने वर्षों की अथक मेहनत से तमाम कबाड़ से इस उद्यान को खूबसूरत बनाया था।
सिड की कलाकृतियाँ देखने के बाद हमने लाइब्रेरी देखी। बहुत बड़ी है लाइब्रेरी। तमाम भाषाओं की किताबें वहाँ मौजूद थीं। जगह –जगह लोगों के पढ़ने के इंतजाम के लिए कुर्सियाँ, कंप्यूटर और अन्य सुविधाएं मौजूद थीं। रिसर्च वाले सेक्शन में फोटोकापी की सुविधा भी मौजद थी।
जगह-जगह किताबों से संबंधित उद्धरण भी लगे हुए थे। एक जगह लिखा था –‘There is no such word as a dirty word. Nor is there a word so powerful, that it’s going to send the listener to the lake of fire upon hearing it’ –Frank Zappa ( गंदा शब्द जैसी कोई चीज नहीं होती। न ही कोई शब्द इतना शक्तिशाली होता है कि सुनने वाले को आग की झील में फेंक दे –फ्रेंक जप्पा )।
किताबों पर प्रतिबंध से संबंधित एक उद्धरण इस तरह था- ‘Banning books give us silence when we need speech. It closes our ears when we need to listen. It makes us blind when we need sight- Stephen Chossky (किताबों पर प्रतिबंध लगाने हमको आवाज की आवश्यकता के समय मौन मिलता है। जब हमको सुनने की जरूरत होती है तब हमारे कान बंद हो जाते हैं। दृष्टि की आवश्यकता के समय दृष्टिहीन हो जाते हैं- स्टीफेन चास्की)
तमाम तरह की किताबें देखते हुए उनको उलट-पलट कर देखा। कोई अंश देखकर लगा इसे पढ़ना चाहिए। उसी समय ऋतिक रोशन की पिक्चर ध्यान आई जिसमें वह किताब को हाथ में लेते ही पूरी पढ़ लेता है। लगा काश ऐसी शक्ति होती। लेकिन फिर लगा कि ऐसी शक्ति होने से किताब को मजे लेकर पढ़ने का सुख नहीं मिलता। हर चीज के दूसरे पहलू भी होते हैं।
आर्टिस्ट कैसे बने (Be the Artist) में समय प्रबंधन की महत्ता बताते हुए लिखा था –‘अपने समय की हिफाजत इस तरह करो जैसे अपने बटुए की करते हो।‘ हमको लगा कि यह बात तो सही है लेकिन बटुआ और समय की हिफाजत करना अभी तक सीख कहाँ पाए।
लाइब्रेरी में जगह-जगह लोग पढ़ते हुए दिखे। पूरी लाइब्रेरी घूमने पर हिन्दी की कोई किताब नहीं दिखी। हमने काउंटर पर मौजूद लाइब्रेरियन से पूछा तो वह खुद चलकर उस हिस्से मे ले गई जहां रैक में हिन्दी की किताबें लगी हुईं थीं। हिन्दी व्यंग्य की किताबें खोजीं तो केवल आलोक पुराणिक Alok Puranik जी की दो किताबें – ‘नेता बनाम आलू’ और ‘लव पर डिकाउंट’ दिखीं। इसके अलावा लतीफ़ घोंघी की किताब- ‘मेरे मौत के बाद’ , नीरज व्यास की –‘नेता चिड़िया घर में’, कैलाश चंद्र की –‘नंगों का लज्जा प्रस्ताव’ एक हास्य व्यंग्य का गुलदस्ता मौजूद था। इन किताबों के साथ कुछ और प्रमुख किताबों के अलावा व्रत कथाओं और पूजा-पाठ से संबंधित किताबें काफी दिखीं।
हिंदी व्यंग्य के खलीफा लोग शायद इस बात को नोट करें और अपनी किताबों के प्रचार-प्रसार के लिए कमर कसें।
लाइब्रेरियन से बातचीत के बाद जानकारी मिली कि इस लाइब्रेरी को देखभाल के लिए पंद्रह लाइब्रेरियन मौजूद रहते हैं।
लौटते समय सस्ते में बिकने वाली किताबें भी देखीं। तरह-तरह की किताबें देखकर मन ललचाया कि ले लें। लेकिन फिर ली नहीं। एक किताब का शीर्षक था –Encyclopedia of Horrifica’ पलटते हुए देखा इसमें तमाम डरावने किस्सों के बारे में जानकारी दी गई थी।
लाइब्रेरी के एक हिस्से में लाइब्रेरियन को कम्यूटर ट्रेनिंग की व्यवस्था दिखी। क्लास चालू थी। सीखने वालों में फास्टर सिटी लाइब्रेरी की जेमा भी दिखी।
लाइब्रेरी में कुछ घंटे बिताकर लौटते हुए लगा कि काश ऐसी व्यवस्थित लाइब्रेरी अपने यहाँ भी होतीं। लेकिन लगने और सोचने से कुछ होता होता तो बात ही क्या थी! सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होता। करने से होता है। अपने यहाँ मौजूद लाइब्रेरी चलती रहें, बंद न हों यही बहुत है।
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