परसों शाम को ड्राइवर ने अगले दिन मौसम ख़राब रहने की जानकारी दी थी। उसकी बात पर भरोसा करते हुए हमने कल बाहर जाना स्थगित कर रखा था। लेकिन जब सुबह हुई तो ड्राइवर की सूचना मौसम विभाग की सूचना की तरह ही ग़लत साबित हुई। सूरज भाई सुबह से ही अपनी टीम के साथ आसमान पर हाजिर थे। मौसम ख़ुशनुमा हो गया था।
वो तो कहो हमसे किसी ने पूछा नहीं । कोई पूछता -'मौसम कैसा है ?' तो हमारा जबाब होता -'आशिकाना।'
अमेरिका के मुक़ाबले कानपुर, लखनऊ के ठिठुरन वाले मौसम की खबर मिल रही थी। मन किया यहाँ से किलो-दो किलो मौसम कानपुर वहाट्सएप कर दें। लेकिन फिर याद आया कि अभी वहाट्सअप में मौसम ट्रांसफ़र का फ़ीचर नहीं आया। क्या पता कुछ दिन बाद आ जाए। जब तक नहीं आता तब तक ऐसे ही काम चलाया जाए ।
मौसम ठीक हो गया तो घूमने जाने का प्लान बनना शुरू हुआ। सैनफ्रांसिसको या फिर सैनहोजे के गुरुद्वारा में से कहीं एक जगह जाने की बात हुई। सैनफ्रांसिसको तीन साल पहले जा चुके थे। गुरुद्वारा देखा नहीं था। बड़ा नाम सुना था सो आख़िर में वहीं जाना तय हुआ।
फ़ोस्टर सिटी से सैनहोजे का गुरुद्वारा क़रीब 37.9 मील मतलब 61 किलोमीटर है। चल दिए।
इतवार की छुट्टी का दिन होने के कारण ट्रैफ़िक कम था। गाड़ी किसी भी लेन में चलाई जा सकती थी। अमेरिका में आम दिन में तेज स्पीड वाली लेन पर चलने के लिए अलग से टोल देना पड़ता है। टेस्ला जैसी बिजली से चलने वाले गाड़ियों को भी कम ईंधन खपत और पर्यावरण मित्र गाड़ी होने के चलते भी तेज गति वाली लेन में चलने की सुविधा होती है। इसके अलावा और कोई गाड़ी तेज गति वाली लेन में चलती पायी गयी तो उसके पैसे कट जाते हैं। अपने आप। सब गाड़ियाँ इसी तरह सड़क से जुड़ी होंगी।
तेज स्पीड पर लेन पर चलने के अलग पैसे की व्यवस्था देखकर एहसास हुआ कि यहाँ हर सुविधा का सम्बंध पैसे से है। सड़क पर चलने का पैसा, पार्किंग का पैसा, रेस्ट रूम का पैसा और भी न जाने किस-किस बात का पैसा।
मौसम अच्छा था। ख़ुशनुमा। सड़क बढ़िया। गाड़ी सड़क ऐसे चल रही थी जैसे नदी में नाव चल रही हो। गाड़ी तैरती हुई सी चलती लगी। कोई गड्ढा नहीं, कोई स्पीड ब्रेकर नहीं।
गुरुद्वारा पहुंचकर गाड़ी पार्किंग में खड़ी की गई। फ्री पार्किंग। गुरुद्वारा की इमारत भव्य। ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारा से देखने पर पूरा सैनहोजे दिखता है। ऐसे जैसे कोई हिल स्टेशन हो।
गुरुद्वारा का निर्माण 1984 से शुरू हुआ। शुरुआती परेशानियों से निपटते हुए पहला चरण 2004 में पूरा हुआ। खर्च आया -12 मिलियन डॉलर मतलब आज के करीब 100 करोड़ रुपये (98.50 करोड़) । इसके बाद निर्माण का दूसरा चरण अब पूरा हुआ और खर्च हुए 20 मिलियन डालर मतलब लगभग 165 करोड़। इतने पैसे का इंतज़ाम सिख समुदाय के लोगों ने मिलकर किया होगा लेकिन इस भव्य गुरुद्वारा के निर्माण का श्रेय तो शुरुआती लोगों स्व जीत सिंह बेनीवाल, तेजा सिंह और स्व बाबा प्यारा सिंह ओभी को दिया जाएगा। गुरुद्वारा उत्तरी अमेरिका का सबसे बड़ा गुरुद्वारा है।
गुरुद्वारा में प्रवेश करते ही इसकी साफ़-सफ़ाई और व्यवस्था से गुरुद्वारा के स्तर का अंदाज़ा लगता है। शुरुआत में ही जानकारी के लिए काउंटर, रेस्ट रूम, जूते रखने की मुफ़्त सेवा, सर पर बांधने के लिए रुमाल गुरुद्वारे की तरफ़ दिया जाता है। सर पर बांधने का नया रुमाल दिया जाता है। वापस आने पर उसको जमा कर दिया जाता है। उसको फिर साफ़ करके ही प्रयोग किया जाता है।
मुख्य सभागार में गुरूग्रंथ साहब रखे हैं। उनके ऊपर खड़े हुए चंवर डुलाते हुए ग्रंथी और पूजा करते हुए, कीर्तन सुनते हुए तमाम लोग। पूजा हाल में 2585 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। यह संख्या हाल में लिखी है। लोग गुरूग्रंथ साहब के सामने सर नवा कर वहीं प्रसाद ग्रहण करके फिर बैठकर कीर्तन सुन रहे थे। हम लोगों ने भी गुरु ग्रंथ साहब को प्रणाम करके, प्रसाद ग्रहण कर कुछ देर कीर्तन सुना और फिर लंगर हाल की तरफ़ गए।
लंगर हाल में लोग पंगत ज़मीन पर में बैठे लंगर छक रहे थे। एक तरफ़ बुजुर्गों और विकलांग लोगों के लिए बैठने की व्यवस्था की। हम लोगों ने भी लंगर छका। खाने में कढ़ी, सब्ज़ी, रोटी, चावल और खीर थी।सादा और स्वादिष्ट भोजन। खाने के बाद चाय, बिस्कुट ,पकौड़ी भी खा रहे थे लोग। खाने की व्यवस्था के लिए अनेक स्वयंसेवक सेवादार लोग मौजूद थे। खाने के बाद थाली साफ़ करने की भी व्यवस्था थी। वहाँ भी सेवादार लोग लगे थे। खाने का इतना साफ़-सुथरा इंतज़ाम देखकर मन खुश हो गया। यह भी लगा कि कभी-कभी हमको भी सेवा का काम करना चाहिए।
लंगरहाल में सूचनापट पर गुरुद्वारे से सम्बंधित सूचनायें प्रसारित होती जा रहीं थी। लोग लंगर की व्यवस्था के लिए क्या-क्या सामान दे सकते हैं, गुरुद्वारा को पारदर्शिता के लिए प्रथम घोषित किया गया है , आदि सूचनाएँ।
वहीं हाल में एक काउंटर पर सिख बच्चों की शिक्षा की सहायता के लिए जानकारी दी जा रही थी। सहायता के उद्धेश्य निम्न हैं:
1. यह प्रयास करना कि हर शिख बच्चा कालेज जा सके और स्नातक हो सके।
2. कालेज जाने वाले युवाओं को भविष्य के लिए सहायता प्रदान करना।
3. कालेज जाने वाले एवं मेधावी छात्रों के माध्यम से छोटे बच्चों को पढ़ाई में सहायता प्रदान करना।
इस उद्धेश्य की पूर्ति के लिए गुरुद्वारा कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह ढिल्लन (बॉब ढिल्लन) की अपील वहाँ आने वालों लोगों को वितरित की जा रही थी। बॉब ढिल्लन 17 साल की उम्र में पंजाब से अमेरिका आये थे। शुरुआती दौर में पढ़ाई के लिए ढाबों, रेस्तरां में काम करते हुए अपना कैरियर शुरू करने वाले बॉब ढिल्लन आज सैन होजे की प्रमुख हस्तियों में हैं।
गुरुद्वारा की गतिविधियों का विस्तार से विवरण गुरुद्वारा की साइट में मौजूद है।
सैन होजे सिख गुरुद्वारा का विवरण जानने के लिए गुरूद्वारा की साइट देखिए: https://sanjosegurdwara.org/
लौटते समय सिख गुरूद्वारा के कम्युनिटी बोर्ड पर तरह-तरह की सूचनाएं देखने को मिली। किसी को कामचाहिए तो किसी को कामगार, कोई घर की खोज में है तो कोई घर किराए पर देने को तैयार है। बच्चे की देखभाल के लिए नैनी की मांग वाले तो कई विज्ञापन दिखे।
एक लड़का मेलबर्न आस्ट्रेलिया से स्टूडेंट वीजा पर आया है।उसके पास अपनी कार है। उसको काम चाहिए, नकद पैसे पर। इसके लिए वह दिन या रात कभी भी काम करने को तैयार है। काम देने वाले की सुविधा के वह शिफ्ट होने के लिए तैयार है। अपना पता और फोन नम्बर छोड़ा हुआ था उसने। क्या पता उसको अब तक कुछ काम मिल गया हो।
एक लड़के ने अपने लिए लड़की के लिए भी विज्ञापन दिया था।
घर से शाकाहारी खाने की सुविधा देने की सूचना भी लगी थी। किसी को सहायक की आवश्यकता थी तो किसी को काम की।
एक कोने में लोगों ने अपने विजिटिंग कार्ड लगाए हुये थे।
कुल मिलाकर गुरुद्वारा सिख समाज की अनेक आवश्यकताओं को पूरा करने का माध्यम बना हुआ है।
हर धर्म के पूजास्थल कहीं न कहीं अपने समाज की सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
बाहर आकर हम लोगों ने अपना सर पर बांधने वाला रुमाल जमा किया। जूते वापस लिए और बाहर आ गए।
बाहर आकर हम लोगों ने गुरुद्वारे के आसपास खूब सारे फोटो लिए। ऊपर से पूरा सैन होजे दिख रहा था। गाड़ियां , सड़कें और मकान का सुंदर कोलॉज। एक तरफ हरी पहाड़ियां देखकर ऐसा लग रहा था मानों किसी हिल स्टेशन में आ गए हों।
फोटोबाजी के बाद हम लोग वापस घर के लिए चल दिये।
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