भावना प्रकाशन से निकलने के बाद सेतु प्रकाशन गए। हमने पुस्तक मेले में जाने से पहले मोटा-मोटी कई किताबों की लिस्ट बनाई थी दिमाग में । इनको खरीदना है। उनमे से कुछ याद रहा , बहुत कुछ छूट गया।
सपना भट्ट से करीब आठ साल पहले से परिचय है। फेसबुक के माध्यम से। उनकी कवितायें पढ़कर तारीफ़ करते थे। लगता था कि ये भी फेसबुकिया अंदाज में कवितायें 'बनाती' हैं। वैसे भी कविता के बारे में अपन की समझ ऐसी-वैसी ही है। कविताओं के यादगार अंश व्यंग्य लेखों के पञ्च वाक्यों सरीखे लगते हैं। कविताओं के याद रह जाने वाले अंश/विम्ब पढ़कर लगता है कि क्या बिम्ब है। क्या सोच है। यह हमको क्यों नहीं सूझता।
बाद में सपना भट्ट की कविताओं की ख्यात नाम लोगों ने तारीफ़ की तो उनकी कविताओं के कद का उंचा हो गया। लगा कि ये तो ऊँची वाली कवितायें लिखती हैं। फिर उनका कविता संग्रह आया - 'चुप्पियों में आलाप।' तो उनकी कविताओं के बारे में राय और उम्दा हो गयी। वो बात अलग कि उनका पहला कविता संग्रह लेने का विचार आजकल करते-करते रह गया। जब दूसरा कविता संग्रह खरीदा तब याद आया कि पहला तो लेना बाकी है। ध्यान भी नहीं आया कि किस प्रकाशन से आया था। लिहाजा बाद में कल आनलाइन खरीदा। २६ फरवरी को आयेगा।
सपना भट्ट की कविताओं पर तो कोई कविता का जानकार ही ठीक से लिख सकता है। अपन तो बस ऐसे ही कुछ कह सकते हैं। प्रेम, स्त्री अस्मिता और समाज में स्त्रियों की स्थिति उनकी कविता के प्रमुख विषय हैं। लगभग हर कविता में कोई न कोई अंश ऐसा है जिसे उद्धरित किया जा सकता है लेकिन केवल अंश उद्धरित करने से कविता पूरी नहीं होती। कविता 'किसकी याद आती है' का अंश है :
" चूल्हे की याद आती है
दाल सिझाने, भात पसाने के वक्त
किताब पढ़ते हुए हाथ जला जला लेने की याद आती है
खेतों की याद आती है
धान रोपने फसल काटने की याद आती है
सत्रहवें बरस
उस लडके की दी हुई चिट्ठियों की याद आती है
फिर बरबस बहुत सी गालियों की याद आती है
उस फ़ौजी की याद आती है
जिससे व्याह के लिए इनकार कर दिया मां ने
अपनी जात और कुल मर्यादा की खातिर"
जीवन से जुडी तमाम यादों का जिक्र करते हुए जो सपना कविता के अंत में वह बात लिखती हैं जिसको कहने के लिए ही शायद यादों का ताना-बाना बुना गया था :
"मुझे मेरे डोले से लगकर रोती-बिलखती
मुझ पर खील दाल चावल वारती
मूर्छित होती अपनी माँ की याद नहीं आती
पितृ सत्ता के स्त्री रूप की याद आती है...."
स्त्री को देवी बताकर उनके साथ होते अन्याओ के खिलाफ अपनी बात कहते हुए सपना लिखती हैं:
"देखना !
हम सब औरतें एक दिन देवालयों में देवियों की उपाधि ठुकराकर
युगों से पथराई प्रतिमाओं से बाहर निकल आयेंगी
हम देवत्व की नहीं मनुष्य की संज्ञा के लिए लड़ेंगी।"
मां और पापा को समर्पित कविता संग्रह की कई कविताओं में माँ- पिता मौजूद हैं । वे लिखती हैं :
"मैंने दुःख नहीं कहे पिता से विवाह के बाद
पिता ने ही निरखकर
एक दिन मुझसे कहा
कि बेटियों के अकले रोने
और गुमसुम रहने से पिताओं की उम्र कम होती है।
और सच में
पिता उम्र से बहुत पहले चले गए
मैं क्या करती !
रोने और गुमसुम रहने कब किसका जोर चलता है ..."
माँ को याद करते हुए लिखी कविता में सपना लिखती हैं :
"मायके जाने पर
देखती हूँ तुम्हारी बिस्तर
जिस पर पहले आयोडेक्स और गाढे तेल की
महक वाला तकिया हुआ करता था
अब उस पर करीने से चादर बिछी रहती है
मेरी आँखे धुंधला गयी हैं या
तुम ही दीवार पर लगी तस्वीर में नहीं हो अपनी
तुम्हारे मोटे कांच
और सुनहरी कमानी वाला
चश्मा भी तो कहीं नहीं मिलता
कितना चिल्लाती थी हम पर
आओ फिर से बरज दो
चौके में चली आयी हूँ चप्पलें पहनकर "
माँ को याद करते हुए आगे लिखती हैं:
"एक मजे की बात बताऊँ
तुम्हारी परम घसियारिन सहेली
गीता आंटी के नकली दांतों का सेट
हँसते ही जब तब बाहर आ गिरता है
तुम देखती तो कितना हंसती
वहां कौन है तुम्हारी सहेली
किससे चिढती हो!
किसे देती हो पहाडी गालियाँ
किसे अपने उबाऊ न भजन सुनाती हो "
तुम दो बरस बाद जाती
तो देख पाती
कितनी सुन्दर कविताएँ लिखने लगी है मेरी बेटी तुम पर"
संग्रह की कविताएँ तीन भागों में संकलित हैं-'थोड़ी सी उम्मीद', 'निर्जन पगडंडियों से गुजरते हुए' और 'मैं अनगिनत दिशाओं से'। समकालीन रचनाकारों स्वदेश दीपक और अनीता वर्मा को याद करते हुए लिखी कविताएँ इन रचनाकारों से सपना के आत्मीय जुड़ाव बताती हैं।
रचनाकारों से जुड़ाव का बात पसंदीदा किताबो तक जाता है। मनोहर श्याम जोशी का उपन्यास 'कसप' सपना भट्ट का पसंदीदा उपन्यास है। उपन्यास के नायक के लिए इस्तेमाल शब्द 'लाटा' उनकी माँ पर लिखी कविता में इस तरह आता है:
"इतना तरस गयी हूँ तुम्हारी आवाज को
कि दायें मकान वाली सुमन फूफू से कहती कि मुझे
लाटी कहकर पुकारा करें "
कविता संग्रह में प्रेम से जुड़े अनेक मनोहारी, आत्मीय, मार्मिक बिम्ब हैं। 'तुम्हारी और आ रही हूँ' कविता का अंश है :
"प्यार मेरे
ऐसी कौन दिशा है जो तुम तक नहीं जाती ?
मेरा लजीला मुख आज
तुम्हारे चमकीले सूर्य के उजास से प्रकाशित है
मैं अनगिनत दिशाओं से तुम्हारी और आ रही हूँ"
'मन की एकलौती कामना' कविता में आशा भरा इंतजार है। कामना के पूरा होने का विश्वास कितना पक्का है :
"एक सदी में एक बार आने वाला वह क्षण
निमिष भर को जब ठिठकेगा कंठ में तुम्हारे
तभी तुम्हारे होंठो पर धर दूंगी
अपने तरसे हुये मन की एक्लौती कामना
सगरी देह को कान बनाकर सुनूंगी
तुम्हारी आवाज में मनचीता स्वीकार
कि सुन पगली
प्यार करता हूँ तुझसे !"
कविता संकलन पलटते हुये पहले पृष्ठ की सूचना भी पढी जो इस प्रकार है:
"इस पुस्तक की बिक्री से प्राप्त राशि का 0.5% "बालिका शिक्षा अनुदान कोष" में जायेगा। किताब के दाम 275 रुपये हैं। मतलब एक रुपया कुछ पैसे एक किताब की बिक्री पर "बालिका शिक्षा अनुदान कोष" में जायेगा। आन लाइन किताब की खरीद का लिंक टिप्पणी बक्से में दिया है।
एक साधारण पाठक की निगाह से सपना भट्ट की कवितायें पढना खुशनुमा अनुभव रहा। सपना भट्ट को उनके कविता संंकलन के लिये बधाई। शुभकामनाये।
पुस्तक का नाम: भाषा में नहीं
रचयिता: सपना भट्ट Sapna Bhatt
प्रकाशक: सेतु प्रकाशन
पृष्ठ : 167
कीमत : रुपये 275
आनलाइन खरीद का लिंक:टिप्पणी बक्से मे
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