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पुस्तक मेले में सबसे राजकमल प्रकाशन पर सबसे ज्यादा भीड़ थी। कई किताबें लेनी थी राजकमल प्रकाशन से। राजकमल प्रकाशन की 'पुस्तक मित्र योजना' से बहुत दिन किताबें मंगवाई। एक हजार रुपये की धरोहर राशि जमा करके सदस्य बने थे। साल में दो सौ रुपये की किताबें उपहार स्वरूप और किताबों पर 25 % डिस्काउंट । इधर काफी दिनों से पुस्तक मित्र योजना से किताबें मंगवाई नहीं। कई वर्षों उपहार राशि के बराबर भी किताबें मंगानी बाकी हैं।
राजकमल प्रकाशन के आनलाइन आर्डर में भुगतान व्यवस्था के पुराने अनुभव भी अच्छे नहीं रहे मेरे। कुछ वर्ष पहले 2000 रुपये का दो बार भुगतान हो गया। अभी उसका हिसाब बकाया है। अपन भी आलसी। लगता है कर लेंगे हिसाब भी। मंगा लेंगे किताबें। बात करने पर राजकमल के साथियों हमेशा डीटेल भेजने और किताबें भेजने की बात कही लेकिन हमारे आलस्य ने सबको धता बता दी।
पुस्तक मेले में घुमने के दौरान पता चला कि विनीत कुमार Vineet Kumar की किताब 'मीडिया का लोकतंत्र' आई है राजकमल प्रकाशन से। बहुत खोजी लेकिन मिली नहीं। पता चला अभी स्टाल पर आई नहीं है ! बाद में विमोचन हुआ किताब का लेकिन तब तक अपन लौट चुके थे मेले से।
राजकमल प्रकाशन में जब हम किताबें खोज , खरीद रहे थे उसी समय राजकमल प्रकाशन के लेखक मंच पर मैत्रेयी पुष्पा जी से बातचीत चल रही थी। बमुश्किल दस पन्द्रह लोग सामने बैठे सुन रहे थे। उससे कई लोग बातचीत से बेखबर, निर्लिप्त किताबें खरीद रहे थे। अगल-बगल से गुजर रहे थे। बातचीत के सवाल-जबाब भी ऐसे ही थे जो तमाम बार पढ़े-सुने जा चुके थे। अपन भी कुछ देर टहलते हुए घुमने लगे।
मेले में घूमते हुए सैफ से मुलाक़ात हुई। Saif Aslam Khan सैफ शाहजहांपुर से हैं। सैफ़ देश के जाने माने Illustrator, कार्टूनिस्ट और डूडल आर्टिस्ट हैं। मेरे शाहजहाँपुर से स्थानान्तरण पर उन्होंने जो स्केच बनाया था वह मेरे घर के ड्राइंग रूम में लगा है। शाहजहांपुर की कैंट की बेंच नंबर सात उनकी पसंदीदा बेंच हैं। इससे जुडी तमाम यादें वे साझा करते रहते हैं। अब तो सैफ और बेंच नम्बर सात का रिश्ता इस कदर अटूट हो चुका है कि सैफ का पता ही बेंच नंबर सात हो गया है।
सैफ और हम लोग मेले में टहल रहे थे तो एक स्टाल पर सैफ को सुधीर विद्यार्थी Sudhir Vidyarthi जी दिखे। भारतीय क्रान्तिकारियो के बारे में जितना लेखन और क्रान्तिकारियो को प्रतिष्ठा दिलाने का जितना काम सुधीर विद्यार्थी जी ने किया है उतना शायद ही किसी और लेखक ने किया हो। क्रान्तिकारियो से जुड़े अनेक संस्मरणों की किताबें है उनकी। बरेली से जुड़े संस्मरणों की उनकी किताब 'शहर आइना है' बहुत दिनों से लेने की सोच रहे थे। सुधीर विद्यार्थी जी जिस स्टाल पर थे वहां उनकी कई किताबें थी। हमने उनकी किताबें खरीदी। उनके आटोग्राफ भी लिए।
साथ में असगर वजाहत की किताब 'उम्र भर सफ़र में रहा' भी ली। असगर वजाहत जी खूब घूमें हैं और खूब किस्से लिखे हैं घुमक्कड़ी के। हफ्ते भर पहले संगत में अंजुम शर्मा से हुई बातचीत में इब्बार रब्बी जी ने असगर वजाहत जी की इस घुमक्कड़ी का जिक्र करते हुए कहा -'मुझे इस मामले में (घुमक्कड़ी) असगर वजाहत से जलन होती है।'
अपन को जलन तो नहीं अलबत्ता मन करता है कि असगर वजाहत जी Asghar Wajahat की तरह खूब घूमूं और उसके बारे में लिखूं। उम्मीद है कि जल्द ही घुमने और लिखने का सिलसिला शुरू होगा।
#पुस्तकमेला2024-8
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